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बेबी बूमर्स से लेकर अल्फा-बीटा तकः अब बिहार के युवा तय कर रहे हैं राजनीति का एजेंडा

बिहार चुनाव में इस बार नेताओं की जुबान पर वही शब्द हैं, जो वोटर बोल रहे हैं। 'जेनरेशन जेड' ने अपने मुद्दे राजनीतिक भाषणों में ठूंस दिए हैं।

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दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोटिंग होगी

दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोटिंग होगी

 बिहार चुनाव में इस बार नेताओं की जुबान पर वही शब्द हैं, जो वोटर बोल रहे हैं। 'जेनरेशन जेड' ने अपने मुद्दे राजनीतिक भाषणों में ठूंस दिए हैं। अब अगर कोई नेता रोजगार, पलायन, शिक्षा संस्थान या उद्योगों की बात नहीं करता, तो मानो उसने चुनावी जंग हार दी। मंच पर चढ़ते ही नेता को अब यही चार वादे दोहराने पड़ते हैं—पलायन रोकेंगे, रोजगार देंगे, शिक्षण संस्थान खोलेंगे और उद्योग लगाएंगे।

जेनरेशन-जेड और अल्फा पीढ़ी दोनों सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय हैं। उन्होंने चुनाव को मुद्दा-आधारित बना दिया है। प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज के नारे और अभियानों ने युवाओं का ध्यान खींचा है, जो इस बार त्रिकोणीय संघर्ष का मुख्य केंद्र बन रहा है।

18 से 19 साल के नए वोटर चार लाख से अधिक

बिहार की कुल आबादी में 7.4 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, जिनमें लगभग 1.80 करोड़ युवा शामिल हैं। चुनाव आयोग के अनुसार, 20 से 29 वर्ष के बीच के 1.66 करोड़ और 18 से 19 वर्ष के 14 लाख से अधिक वोटर हैं।

जहानाबाद जैसे दक्षिण बिहार के कोचिंग हब में युवा स्पष्ट कह रहे हैं—'कॉलेज ही नहीं हैं पढ़ने को, विधानसभा में बताइए किसने क्या काम किया?' गया के मिर्जा गालिब कॉलेज की छात्रा सुरैया कहती हैं, 'लड़के तो पढ़ने बाहर चले जाते हैं, पर लड़कियां ऐसा कदम मुश्किल से दो प्रतिशत ही उठा पाती हैं। पढ़ाई का अवसर तभी मिलेगा जब अपने इलाके में नौकरी की गारंटी हो।'

नेताओं के वादों में अब युवाओं की जुबान

जेनरेशन-जेड (1997–2010) के एक करोड़ से अधिक युवा अब वोटर बन चुके हैं। यह पीढ़ी रोजगार, पलायन रोकने, उद्योग और कौशल आधारित इंटर्नशिप की मांग पर अडिग है।

दिल्ली में पढ़ रहे विश्वास पांडेय कहते हैं, 'घर छोड़कर जाने की सजा हम भुगत रहे हैं। मां-बाप का ख्याल नहीं रख पाते, बीमारी में सेवा नहीं कर सकते। परिवार को साथ लेकर भटकना हमारी नियति क्यों बने?' इसी दर्द का असर है कि अब महागठबंधन और एनडीए—दोनों खेमों के नेताओं के भाषणों में यही मुद्दे हावी हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने औरंगाबाद की सभा में कहा, 'नीतीश सरकार ने बिहार को मजदूर का ठप्पा दे दिया है, हम इंडस्ट्री लाएंगे।' वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार दोहरा रहे हैं कि 'अब बिहार में जंगलराज नहीं, रोजगार का दौर आएगा।'

मीटिंग में कम, सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रियता

बिहार के कार्यकर्ता भी युवा हैं। हालांकि वे रैलियों में मौजूद रहते हैं, लेकिन असली सक्रियता सोशल मीडिया पर दिख रही है। युवा अब खुलकर अपनी मांगें रख रहे हैं—संक्षेप में, 'बात मुद्दे की हो, बकवास की नहीं।'

बेबी बूमर्स से लेकर बीटा जेनरेशन तक की फिक्र

1946 से 1996 के बीच जन्मे बेबी बूमर्स, एक्स और वाई पीढ़ी अब अपने मुद्दों से पीछे हट चुकी है। शेरघाटी के लखन सिंह कहते हैं, 'हम तो सब झेल चुके हैं, पर अब की पीढ़ी क्यों झेले? इन्हें बिहार में ही काम मिले, यही इंतजाम होना चाहिए।'

अब सिर्फ वर्तमान पीढ़ी नहीं, बल्कि 2010 से 2024 की अल्फा और 2025 के बाद की बीटा जेनरेशन की चिंता भी जुड़ी है—'हमारे पोते कम से कम गांव में रह सकें, उन्हें बिहार छोड़कर न जाना पड़े।'