-विकास सिंह
Ground Report: भगवान राम का वनवास 14 साल में खत्म हुआ, लेकिन कश्मीरी पंडितों का वनवास 35 साल से जारी है। 1990 के भयावह दौर में जब आतंक की आंधी ने कश्मीर घाटी को लहूलुहान किया, तब हजारों कश्मीरी पंडित अपने ही वतन से बेघर हो गए। आज दशकों बाद जब कश्मीर में हालात बदलते दिख रहे हैं, मंदिरों में फिर से घंटे बजने लगे हैं और घाटी में बहती हवा थोड़ी शांत लगती है- तो सवाल उठता है- क्या अब ‘घर वापसी’ का समय आ गया है?
कश्मीरी पंडित कहते हैं, 'हम लौटना चाहते हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर।' आंखों में आंसू हैं, पर दिल में अब भी उम्मीद है। 'हमें पड़ोसी के रूप में बंदूकधारी नहीं, राष्ट्रभक्त चाहिए।' यह सिर्फ वापसी नहीं, न्याय और सम्मान की पुनर्प्राप्ति की जद्दोजहद है। सरकार सिर्फ नीति निर्माण में नहीं, घर वापसी में भी जमीन पर साथ निभाए, कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे। कश्मीरी पंडितों की माइग्रेंट कॉलोनी, जगती कॉलोनी जम्मू में रहने वाले लोग वैली में घर वापसी तो करना चाहते हैं, लेकिन सुरक्षा को लेकर वे सबसे अधिक चिंतित हैं।
जगती कॉलोनी के कश्मीरी पंडितों का सवाल है कि वे किसके भरोसे अपने घरों को लौटें? कौन उनके और उनके परिवार की गारंटी लेगा? अभी कोई सांसद या मंत्री उनसे मिलने तक नहीं आता। किसी जिम्मेदार चेहरे को उनकी घर वापसी से जुड़े मुद्दों व दिक्कतों पर बात करने के लिए आगे करना होगा। उधमपुर से सांसद और मंत्री जितेंद्र सिंह बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
कश्मीरी पंडितों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा है। अगर वे इसमें इनवॉल्व होंगे तो उन्हें अपने घर वापसी में आसानी होगी। आर्टिकल 370 बिना किसी हिंसा और पत्थरबाजी के हट सकता है तो कश्मीरी पंडितों की घर वापसी भी उसी तरह मजबूती से हो सकती है। बस ज़रूरत है केंद्र और राज्य सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति की।
भूषण लाल भट्ट सिलिगाम, अनंतनाग के रहने वाले हैं। जगती कॉलोनी में अपने परिवार - पत्नी और बेटे के साथ साल 2010 से रह रहे हैं। कहते हैं, 'हम अपने घर लौटने को तैयार हैं लेकिन अपनी शर्तों पर। हम कश्मीरी हैं और कश्मीरी ही बनना चाहते हैं। हम इस सरकार के खिलाफ नहीं हैं। इससे नाराज हैं लेकिन, इसी सरकार से भरोसा भी है। हम यासीन मलिक या महबूबा मुफ्ती को पड़ोसी नहीं बनाना चाहते। जो मन से पाकिस्तानी हैं, हम उनके साथ नहीं रह सकते।'
भूषण लाल भट्ट कहते हैं कि कश्मीर में बढ़ते टूरिज्म से सबसे अधिक फायदा कश्मीरी मुस्लिमों को हुआ। अगर हम वापसी करते हैं तो वहां के कट्टरपंथी सोच रखने वाले कुछ लोग क्या हमारे साथ बिजनेस शेयर करेंगे? सरकार हमें इसकी गारंटी दिलाए कि हमारे वहां बसने के बाद रोजगार और बिजनेस में हमें धर्म के आधार पर किसी तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
भूषण लाल भट्ट कहते हैं कि हमारी पुश्तैनी जमीनों, अखरोट के बागों और खेतों को कश्मीर के लोगों द्वारा सस्ते दामों में बेचे जाने का दबाव बनाया जाता है। करोड़ों की जमीन का सौदा लाखों में होता है। मैंने पूछा कि रजिस्ट्री होती है? जवाब मिला – नहीं, सिर्फ एफिडेविट पर हमसे साइन कराया जाता है कि आपने कितने रुपयों में इनको जमीन बेची है।
बिट्टू जी भट्ट, इचिकूट गांव, बडगाम जिले के रहने वाले हैं। बिट्टू कहते हैं कि हम अभी जिंदा हैं तो हम कश्मीर वापसी के लिए आवाज उठा रहे हैं। हमारे बच्चे बाहर रहकर पढ़ाई करते हैं। लंबे समय तक ऐसा ही चला तो हमारे बच्चे अपना हक़ मांगना छोड़ देंगे।
पवन कोल, जैनापोरा गांव, शोपियां जिले के रहने वाले हैं। वे नाराजगी में कहते हैं कि कश्मीर में अपने घर वापसी के लिए अगर हमारा हिंदू होना गुनाह है तो हम मुस्लिम या सरदार बनने के लिए भी तैयार हैं। कम से कम वहा सेफ तो रहेंगे। पवन अपनी पुश्तैनी मकान की फोटो दिखाते हुए कहते हैं कि वहां मेरा घर है, 5 एकड़ में अखरोट का बागान है लेकिन उसको देखने वाला कोई नहीं है। घर खंडहर हो चुका है। मैं जब वहां देखने जाता हूं तो आंखों से आंसू निकल आते हैं। अपना घर, अपना ही होता है। मजबूरी है वरना कौन चाहता है कि वह सरकार के दिए हुए एक कमरे के क्वार्टर में रहे?
Updated on:
22 Jun 2025 12:14 pm
Published on:
22 Jun 2025 07:25 am