
बेटी को दीक्षा दिलाने से रोकने के लिए पिता ने कोर्ट में मां के खिलाफ याचिका दी (फोटो- एआई जनरेटेड)
गुजरात के सूरत में एक जैन व्यक्ति ने अपनी सात साल की बेटी को साध्वी बनने से रोकने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पिता ने फैमिली कोर्ट से अपनी बेटी की कस्टडी की मांग करते हुए यह दावा किया है कि उसकी पत्नी उसकी इच्छा के विरुद्ध उनकी बेटी को दीक्षा दिला रही है। याचिका के अनुसार, यह शख्स और इसकी पत्नी पिछले एक साल से अलग रह रहे हैं।
पिता ने 1890 के 'गार्जियंस एंड वार्ड्स एक्ट' के तहत याचिका दायर करते हुए कोर्ट से कहा कि उसकी बेटी के हितों की रक्षा के लिए उसे उसका कानूनी अभिभावक नियुक्त किया जाए। बुधवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए जज एस. वी. मंसूरी ने इस व्यक्ति की पत्नी को नोटिस जारी कर उससे 22 दिसंबर तक जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता की पहचान समीर शाह के रूप में हुई जो कि शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग का काम करता है। अडाजन के रहने वाले शाह ने कोर्ट को बताया कि 2012 में उसकी शादी हुई थी और उसके दो बच्चे हैं। बार-बार होने वाले झगड़ों से परेशान होकर 2024 में उसकी पत्नी दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली गई थी। तब से वह लोग सूरत के नानपुरा में पत्नी के माता-पिता के पास रह रहे हैं।
शाह ने बताया कि उसके और उसकी पत्नी में बेटी को दीक्षा दिलाने को लेकर काफी समय से मतभेद चल रहे थे। शाह की पत्नी फरवरी 2026 में मुंबई में होने वाले एक बड़े सामूहिक समारोह के दौरान बेटी को दीक्षा दिलाने की बात पर अड़ी हुई थी, लेकिन शाह चाहते थे कि बेटी बड़ी होने के बाद अपनी समझ से दीक्षा लेने का फैसला ले। इसी बात को लेकर पत्नी नाराज थी और अप्रैल 2024 में बच्चों को लेकर अपने मायके चली गई थी।
उसने शाह से कहा कि वह घर तभी लौटेगी जब वो बेटी को दीक्षा दिलाने की बात से सहमत होगा। लेकिन बाद में पत्नी ने शाह की सहमति के बिना ही बेटी को दीक्षा दिलाने का फैसला ले लिया। याचिका के अनुसार, शाह को समाज के एक व्हाट्सऐप ग्रुप के जरिए दीक्षा समारोह की जानकारी मिली और उसी मैसेज में उसने अपनी बेटी का नाम दीक्षा लेने जा रहे लोगों की सूची में देखा। शाह ने आगे कहा, दीक्षा समारोह के बारे में पता चलने के बाद मैंने अपने ससुर से और समाज के बड़े लोगों से मेरी बेटी को साध्वी बनने से रोकने का अनुरोध किया लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी।
शाह ने कोर्ट में कहा कि, सिर्फ 7 साल की होने के चलते मेरी बेटी यह फैसला नहीं ले सकती है। उसने आगे कहा कि उसकी पत्नी उनकी बेटी को जबरदस्ती धार्मिक सभाओं में ले जाती थी। एक बार पति की मर्जी के बिना उसने बेटी को अहमदाबाद में एक धार्मिक गुरु के आश्रम में उनके साथ अकेला भी छोड़ दिया था। इसके बाद अब बच्ची को दीक्षा दिलाने का फैसला लेने के बाद पत्नी ने बेटी को मुंबई में एक जैन भिक्षु के आश्रम में छोड़ दिया। जब वह अपनी बेटी से मिलने वहां पहुंचा तो उसे बेटी से मिलने भी नहीं दिया गया। शाह ने कोर्ट में बेटी के दीक्षा लेने की प्रक्रिया को रोकने की अपील करते हुए दोनों बच्चों की कस्टडी उसे दिए जाने का अनुरोध किया है।
Published on:
11 Dec 2025 11:39 am
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