
Sarvepalli Radhakrishnan
Happy Teacher's Day: भारत में शिक्षक दिवस (Teacher's Day) हर साल 5 सितंबर को मनाया जाता है। यह भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्मदिन है। वहीं, दुनिया भर में 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मनाया (World Teacher's Day) जाता है। यूनेस्को ने साल 1994 में इस दिन को शिक्षक दिवस घोषित किया था। शिक्षक समाज के लिए बहुत अहम योगदान देते हैं। वे ज्ञान देते हैं। आलोचनात्मक सोच का विकास करते हैं। छात्रों और अभिभावकों को प्रेरित करते हैं और रोल मॉडल के तौर पर काम करते हैं।
शिक्षक दिवस 1962 से ही प्रतिवर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन शिक्षकों को सम्मानित करने और समाज में उनके अमूल्य योगदान को पहचानने के लिए समर्पित है। साथ ही यह दिन शिक्षा के महत्व और हमारे जीवन को आकार देने में शिक्षकों के प्रभाव की भी याद दिलाता है। शिक्षक हमारे अस्तित्व का आधार हैं। हमें जिम्मेदार नागरिक बनाते हैं। आज के संदर्भ में, शिक्षक दिवस का महत्व और भी अधिक हो गया है।
शिक्षक दिवस हेतु आयोग की एक अधिसूचना के अनुसार “शिक्षक पर्व मनाने के पीछे का विचार युवा दिमाग और राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका तथा शिक्षण पेशे की गरिमा और शिक्षकों के योगदान को स्वीकार करना है।” चाणक्य ने स्पष्ट कहा है “शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।” समाज में शिक्षक की महत्वता को रेखांकित करते हुए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है कि “समाज में अध्यापक का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बौद्धिक परम्पराएँ और तकनीकी कौशल पहुँचाने का केंद्र है और सभ्यता के प्रकाश को प्रज्वलित रखने में सहायता देता है।” कोठारी आयोग ने भी अध्यापकों को ‛राष्ट्र-निर्माता’ की संज्ञा दी है।
पहले के समय में शिक्षकों की भूमिका सिर्फ शिक्षा देने तक ही सीमित नहीं थी बल्कि वे छात्रों के व्यक्तित्व को विकसित करने, उन्हें जीवन के लिए तैयार करने और समाज में सकारात्मक योगदान करने में मदद करते थे। पर आज परिस्थितियाँ इससे उलट हैं। आज के समय में शिक्षकों के समर्पण और अटूट प्रतिबद्धता की स्वीकारोक्ति कम हुई है। छात्रों को सामाजिक मूल्यों से जोड़ने में मदद करना बेमानी हुआ है। साथ ही शिक्षा, शिक्षक और सहयोग की ज़रूरत पर सवालिया निशान भी लगा है। शिक्षक दिवस पर शैक्षणिक संस्थान सामान्यतः शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने और शिक्षण पेशे का जश्न मनाने में समय व्यतीत कर देते हैं। जबकि वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में चिंतन, मनन व मंथन की आवश्यकता उत्पन्न हो गई है।
किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है इसलिए आज हमारे समक्ष कई प्रश्न हैं। जैसे- हमारे समाज को मद्देनजर रखते हुए कैसी शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए? बदलते समय व परिवेश में शिक्षक की क्या भूमिका होनी चाहिए? विविधता और असमानता वाले भारतीय समाज में शिक्षा व्यवस्था को कैसे समावेशी बनाया जाए? आदि।
हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश ढाँचे पर आधारित है। इसकी संरचना औपचारिक है व इसकी शुरुआत उपनिवेशवाद के दौर में हुई। भारत में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना भी ब्रिटिश प्रणाली के अनुरूप हुई। 1835 में मैकाले के कथन से ही ब्रिटिश शिक्षा नीति का औपनिवेशिक चरित्र स्पष्ट होता है। उसने कहा, “हमें एक ऐसा वर्ग पैदा करना चाहिए जो हमारे और करोड़ों लोगों के बीच जिन पर हम शासन करते हैं। दुभाषिये (interpreter) का काम कर सके- ऐसे व्यक्तियों का वर्ग जो रंग और रक्त से भारतीय हों, किंतु रुचियों, विचारों, नैतिकता और बुद्धि में अंग्रेज़ हों।”
स्वतंत्र भारत ने सभी स्तरों पर शिक्षा में बहुआयामी विकास किया लेकिन गुणात्मक विकास की बजाय परिमाणात्मक विकास ज्यादा हुआ। विभिन्न समय में विभिन्न आयोग बने, शिक्षा से संबंधित बैठकें होती रही परंतु कुछ स्थितियों जस की तस बनी हुई हैं व आजादी के 75 साल बाद भी स्थितियों में खास परिवर्तन नहीं आ पाया है। विचार, नवाचार, नैतिक व सामाजिक मूल्यों, संसाधनहीनता की स्थिति में हम कैसे अपने शैक्षणिक तस्वीर में आमूलचूल परिवर्तन ला सकते हैं? यह एक यक्ष प्रश्न के रूप में हमारे सामने खड़ी मुख्य चुनौती है।
वैश्वीकरण के इस दौर में हमारा समाज एक अज्ञात भविष्य में गोते लगाता दिखाई देता है। बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधनों के साथ देश को अलग स्तर की मेहनत की जरूरत है। 21 वीं सदी के अनुकूल भारतीय शिक्षा व्यवस्था की संरचना को विकसित करना भी दुरूह दिख रहा है। आज भी हमारा प्रमुख उद्देश्य बच्चों को सिर्फ साक्षर बनाना है जबकि हमें उनमें सामाजिक, चारित्रिक और भावनात्मक कौशल का समुचित विकास करना होगा।
वर्तमान में भारत में 1000 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं जिनमें 54 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 416 राज्य विश्वविद्यालय, 125 डीम्ड यूनिवर्सिटी, 361 निजी विश्वविद्यालय, 159 राष्ट्रीय महत्व के शोध संस्थान, जिनमें अनेक आईआईटी एवं आईआईएम शामिल हैं। उपरोक्त संस्थानों में यदि कॉलेजों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो यह लाखों में पहुँचती है। लेकिन इतने शैक्षणिक और शोध संस्थानों तथा मानव संसाधन की प्रचुरता के बावजूद भारत में अभी ‛ज्ञान संस्कृति’ का विकास और विस्तार तीव्र गति से नहीं हो पाया है। हमारी बौद्धिक संपदा का व्यवहारिक उपयोग भी नाकाफी है। शिक्षा का बाजारीकरण हो रहा है। आज शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, प्रबंधन आदि एक लाभकारी उद्योग बन गए हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार 26% से अधिक भारतीय अभी भी निरक्षर हैं, जो कि बहुत ही डरावना आँकड़ा है। एक राष्ट्र के रूप में हमारी महात्त्वकांक्षाएँ इससे ज्यादा की माँग करती है। कोरोना काल की चुनौतियों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था के समक्ष कई सवाल उत्पन्न किए। इस संकट से जाना जा सका कि हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था को कितना तकनीकी कुशल बनाने की जरूरत है। साथ ही चारित्रिक संवेगों पर कार्य करने की भी आवश्यकता महत्वपूर्ण है। एक शिक्षक को रंग, रूप, ऊँच, नीच, गरीब अमीर, जाति, धर्म, लिंग आदि भेदों से ऊपर उठकर कार्य करना होगा।
वर्तमान समय में विद्यार्थियों के संदर्भ में एक शिक्षक की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण होती जा रही है क्योंकि उसे न केवल बच्चों का बौद्धिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक विकास करना है बल्कि सामाजिक, चारित्रिक, एवं सांवेगिक विकास भी करना है। रचनात्मक पहलू पर जोर देना होगा। प्रयोग करना, खुद करके सीखना, फेल होने का जोखिम लेना, पुस्कालय का अधिकाधिक उपयोग, कला, खेल आदि में पूर्ण सहयोग, शिक्षा की स्वन्त्रता बेहद आवश्यक क्षेत्र हैं। शिक्षा व्यवस्था के संदर्भ में आज महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और डॉ. अंबेडकर (Dr. Bheem Rao Ambedkar) के विचार भी बेहद प्रासंगिक हैं। जहां गांधी के ‛सर्वोदयी समाज’ में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान था, वहीं डॉ अंबेडकर शिक्षा को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बराबरी का महत्वपूर्ण हथियार मानते थे। शिक्षक दिवस को आज के संदर्भ में महत्वपूर्ण बनाएं व शिक्षक की भूमिका को देश के हितों के अनुरूप व्यवस्थित करें।
(पूनम भाटिया, राज. उ. प्रा. विद्यालय, बंबाला, सांगानेर शहर, जयपुर, राजस्थान में प्रधानाध्यापक हैं। यह लेख उनके निजी विचार हैं।)
Updated on:
05 Sept 2024 11:15 am
Published on:
05 Sept 2024 11:12 am
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