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हिमाचल प्रदेश का ऋण 1.03 लाख करोड़ तक पहुंचने का अनुमान, क्या लाभकारी योजनाएं हैं हिमाचल प्रदेश के वित्तीय संकट का कारण?

Himachal Pradesh Financial Crisis: हिमाचल प्रदेश वित्तीय संकट से गुजर रहा है। सरकार के पास विधायकों को फंड देने के लिए पैसे तक नहीं है। साथ ही विधायकों की वेतन वृद्धि भी रुकी हुई है। हिमाचल सरकार के अनुसार पैसों की कमी के चलते ही प्रदेश में पंचायती चुनावों को स्थगित किया गया था।

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वित्तीय संकट से गुजर रहा हिमाचल प्रदेश (Photo-ians)

Himachal Pradesh Debt: हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को 11 दिसंबर, 2025 को तीन साल पूरे हो गए है। इस दौरान मुख्यमंत्री सुक्खू ने दावा किया कि भाजपा सरकार द्वारा छोड़ी गई वित्तीय गड़बड़ी ही प्रशासन की प्राथमिक चुनौती बनी हुई है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने इस महीने की शुरुआत में ही विधानसभा को सूचित किया था कि सरकार के पास विधायकों को देने के लिए फंड नहीं है, जिससे वे अपने क्षेत्र में विकास कार्य कर सकें। विधायकों को फंड की तीसरी किस्त के लिए इंतजार करना होगा। साथ ही विधायकों को बढ़े हुए वेतन के लिए भी कुछ महीनों का इंतजार करना होगा।

पंचायती चुनाव को करना पड़ा था स्थगित

सुक्खू सरकार ने पंचायत चुनावों को स्थगित करने के पीछे पैसों की कमी को एक बड़ा कारण बताया था। इसके बाद भाजपा की भी प्रतिक्रिया आई थी। भाजपा ने हिमाचल सरकार पर चुनावों से बचने का आरोप लगाया था। इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ का हवाला देते हुए, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में कहा था कि राज्य में ग्राम पंचायत चुनाव आयोजित करने के लिए लगभग 100 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। साथ ही इन चुनावों को कराने के लिए लगभग 55,000 सरकारी कर्मचारियों को जुटाने की भी आवश्यकता है।

राज्य भारी कर्ज के दबाव में


नए ऋणों के परिणामस्वरूप, 2025-26 में हिमाचल प्रदेश का ऋण 1.03 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) का 40.5% है। यह राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM) के तहत निर्धारित सीमा से अधिक है। इस नियम के अनुसार हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा लिए जाने वाले ऋण की अधिकतम सीमा 90,000 करोड़ रुपये है।

सरकारी खजाने पर 35.70 करोड़ का बोझ


स्थानीय क्षेत्र विकास निधि योजना (MPLADS) के तहत, प्रत्येक विधायक अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान चार किस्तों में 2.10 करोड़ रुपये का फंड पाने का हकदार होता है। हिमाचल प्रदेश में 68 विधायक हैं। अगर इन विधायकों को एकमुश्त किस्त (Lump-Sum Payment) से भुगतान किया जाए तो सरकारी खजाने पर 35.70 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। साथ ही सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की घोषणा की थी, लेकिन अपने आर्थिक संकट के कारण बाद में इसे वापस ले लिया गया था।

सरकार का भाजपा पर आरोप


हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने प्रदेश में वित्तीय संकट का कारण केन्द्र सरकार को बताया था। उन्होंने कहा था कि हिमाचल एक समृद्ध राज्य नहीं है। यहा प्राकृतिक आपदाएं हर साल आती हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि BJP को राज्यों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए। साथ ही उन्होंने BJP को विपक्ष शासित और भाजपा शासित प्रदेशों के बीच भेदभाव करने की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठने के लिए कहा था। उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार को हिमाचल प्रदेश की उसी तरह सहायता करनी चाहिए जैसे वह अन्य राज्यों की सहायता करती है।
इन आरोपों के चलते भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री विपिन सिंह परमार ने राज्य की वित्तीय बदहाली को लेकर कांग्रेस के आरोपों को झूठा बताया था।