इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अविवाहित पक्षकारों को इसकी अपेक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है।
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इस तरह के अधिकार को देखते हुए यदि विधायिका ने उन दो स्थितियों की बराबरी नहीं करने का फैसला किया है, जिनके भीतर पक्षकारों को रखा गया है तो ऐसी स्थिति में क्या न्यायालय कानून के अपवाद 2 की संवैधानिकता की जांच कर सकता है।
इस सवाल के जवाब में जॉन ने पीठ को बताया शादी में यौन संबंधों की अपेक्षा करना गलत नहीं है, लेकीन यदि पत्नी इससे पीछे हट जाती है तो पति बातचीत या सिविल उपाय अपना सकता है। जॉन ने कहा कि अपेक्षा का मतलब यह नहीं हो सकता कि पति पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाए जाएं। ये पूरी तरह गलत है। कानून इसकी इजाजत नहीं देता।
जॉन ने पीठ को ये भी बताया कि मैरिज में यौन संबंधों की अपेक्षा से पति अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध नहीं बना सकता है। उन्होंने कहा कि यह मामला अपेक्षा के बारे में नहीं है बल्कि उस व्यक्ति के बारे में है जो अपनी पत्नी पर अपने अधिकार का प्रयोग करता है।
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बता दें कि न्यायालय ने आईपीसी की धारा 375 में दिए गए उस अपवाद को रद्द करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की थी, जिसमें पति को 15 साल से अधिक उम्र की पत्नी को सहमति के बगैर यौन संबंध बनाने पर दुष्कर्म के अपराध से संरक्षण देता है।