scriptMarital Rape: क्यों पति की जबरदस्ती को रेप के कानून में लाना आवश्यक है? दिल्ली हाई कोर्ट में छिड़ी बहस | Why legalising Marital Rape is important? debate in Delhi High court | Patrika News

Marital Rape: क्यों पति की जबरदस्ती को रेप के कानून में लाना आवश्यक है? दिल्ली हाई कोर्ट में छिड़ी बहस

Published: Jan 15, 2022 02:07:44 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति राजीव शकधर और राजीव सी हरि शंकर की खंडपीठ के समक्ष न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने अपनी दलील पेश की। इसमें उन्होंने कहा कि ‘क्या वो मानते हैं कि एक आदमी को अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती करने का जन्मसिद्ध अधिकार मिल जाता है?

Delhi High Court

Delhi High Court

दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई जारी रखी। इस दौरान अपवाद को खत्म करने के समर्थन में एक न्याय मित्र (Amicus Curiae) ने सवाल किया कि आज के समय में एक पत्नी को रेप को रेप कहने के अधिकार से वंचित करना सही है? वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कोर्ट के समक्ष कई अहम सवाल रखें जिसने कोर्ट को भी इसपर विचार करने के लिए विवश कर दिया। राजशेखर राव ने सवाल किया कि आखिर रेप को रेप कहना गलत कैसे है? अब इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जनवरी को की जाएगी।
बता दें कि मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली याचिकाओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव को न्यायमित्र नियुक्त किया गया है। न्याय मित्र मैरिटल रेप पर फैसला लेने में दिल्ली हाई कोर्ट की मदद कर रहा है।

पति को जबरदस्ती करने का अधिकार क्यों?

न्यायमूर्ति राजीव शकधर और राजीव सी हरि शंकर की खंडपीठ के समक्ष न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने अपनी दलील पेश की। इसमें उन्होंने कहा कि ‘क्या वो मानते हैं कि एक आदमी को अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती करने का जन्मसिद्ध अधिकार मिल जाता है? विधायिका ये नहीं कहती है कि एक आदमी अपनी पत्नी पर हमला नहीं कर सकता, उसके साथ यौन शोषण नहीं कर सकता, लेकिन ऐसा लगता है कि एक आदमी अपनी पत्नी से रेप कर सकता है और रेप से जुड़े कानून से आसानी से बच भी सकता है।’

यह भी पढ़ें : वैवाहिक बलात्कार के मामले में कानूनी बदलाव जरूरी


रेप को रेप कहने के अधिकार से वंचित क्यों रखा जाए?

वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने आगे कहा, ‘क्या कोई ये दलील दे सकता है कि ये तर्कसंगत, न्यायोचित और निष्पक्ष है कि किसी पत्नी को आज के समय में रेप को रेप कहने के अधिकार से वंचित रखा जाए, बल्कि उसे आईपीसी की धारा 498ए (विवाहित महिला से क्रूरता) के तहत राहत नहीं मांगनी चाहिए।’

अगली सुनवाई 17 जनवरी को

दरअसल, इस मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस हरीशंकर के उन सवालों का जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून ये नहीं कहता कि रेप के मामले में न कहने का अधिकार शादी के बाद एक पत्नी के लिए कैसे बदल सकता है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस हरिशंकर ने कहा कि प्रथमदृष्ट्या में उनकी राय है कि इस मामले सहमति कोई मुद्दा ही नहीं है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी।

यह भी पढ़ें : Marital Rape पर दिल्ली हाईकोर्ट – शादी के बाद भी ना कहने के अधिकार से महिलाओं को कोई वंचित नहीं कर सकता

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो