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‘नोटा’ मौजूद है तो निर्विरोध चुनाव कैसे? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा हलफनामा

Supreme Court: लोकसभा-विधानसभा चुनाव में किसी सीट पर एक ही उम्मीदवार होने पर भी यदि मतदाता के पास नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प मौजूद है तो संबंधित प्रत्याशी का मतदान कराए बिना निर्विरोध निर्वाचन कैसे हो सकता है?

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Supreme Court: लोकसभा-विधानसभा चुनाव में किसी सीट पर एक ही उम्मीदवार होने पर भी यदि मतदाता के पास नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प मौजूद है तो संबंधित प्रत्याशी का मतदान कराए बिना निर्विरोध निर्वाचन कैसे हो सकता है? एक जनहित याचिका (पीआईएल) में उठाए गए इस सवाल का सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करेगा। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन.कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सोमवार को इस मामले में केंद्र सरकार से जवाबी हलफनामा मांगा है। सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि पीआइएल में बहुत ही तार्किक मुद्दा उठाया गया है।

याचिकाकर्ता ने दिया ये तर्क

पीआईएल में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 53(2) तथा संबंधित चुनाव संचालन नियमों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि ये प्रावधान उम्मीदवारों की संख्या और सीटों की संख्या बराबर होने पर निर्वाचन अधिकारी को मतदान कराने से रोकते हैं, यानी अकेले उम्मीदवार का निर्विरोध निर्वाचन होता है। इन प्रावधानों से मतदाता 'नोटा' चुनने के मौलिक अधिकार से वंचित होता है।

19 मार्च को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल के मामले में 2013 में निर्णय दिया था कि ईवीएम पर नोटा विकल्प चुनकर नकारात्मक वोट डालने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित है। इस मामले पर 19 मार्च को आगे सुनवाई होगी।

सूरत में हुआ था निर्विरोध चुनाव

पिछले लोकसभा चुनाव में गुजरात की सूरत सीट पर भाजपा का इकलौता उम्मीदवार मैदान में होने के कारण उसे बिना मतदान के निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया था। देश में अब तक लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 258 लोग निर्विरोध सांसद या विधायक बने हैं।

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