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Rail Yatra: भारतीय रेल का हाफ टिकट, आधा किराये पर फुल परेशानी वाली यात्रा

What is Half Ticket Rule? भारतीय रेल में हाफ टिकट पर यात्रा करने का कोई मतलब नहीं है। अगर आप आधा किराया देकर यात्रा करते हैं तो दो में से एक यात्री या दोनों को परेशानियां उठानी पड़ती है। और यदि बर्थ या सीट लेते हैं तो पूरा किराये का भुगतान करना पड़ता है। ऐसे में उपभोक्ताओं को आर्थिक दंड उठाना पड़ता है।

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Half Ticket rule in railway

ट्रेन में हाफ टिकट पर यात्रा करना मुश्किलों भरा। (फोटो: IANS)

Half Ticket Rail Yatra: 1962 में एक फिल्म आई थी हाफ टिकट (Half Ticket Movie)। यह एक हास्य और भरपूर मनोरंजक फिल्म थी। इस फिल्म का नायक कॉलेज में पढ़ने वाला एक मसखरा नौजवान है। उसकी आदतों से तंग आकर उसके पिताजी उसे घर से निकाल देते हैं। पॉकेट में पैसे बहुत कम थे तो वह तरकीब भिड़ाता है और हाफ टिकट पर ट्रेन यात्रा करता है। यहां सिनेमा का जिक्र करने का मकसद आम लोगों को मिलने वाली राहत को बताना है। जी हां, रेलवे टिकट(Railway Ticket) का आधा किराया वसूल कर 12 साल तक के बच्चों को पूरा बर्थ देकर यात्रा कराती थी। यह व्यवस्था आज भी है लेकिन आधे किराए के बदले में बर्थ नहीं मिलता है। आइए जानते हैं कि क्या थी हाफ टिकट की व्यवस्था और आज की तारीख में यात्रियों को क्या परेशानियां पेश आ रही हैं?

वर्ष 2016 में ही हाफ टिकट की व्यवस्था बदली

Railway me half ticket age limit : भारतीय रेलवे (Indian Railway) ने 9 साल पहले 160 साल पुरानी हाफ टिकट की व्यवस्था खत्म कर दी। दरअसल केंद्र सरकार ने 2016 में हाफ टिकट की यात्रा में बर्थ देना बंद कर दिया। अगर 5 से 12 वर्ष के बच्चों को ट्रेन में यात्रा करना हो और उसे बर्थ या सीट चाहिए तो टिकट का पूरा पैसा भरना पड़ेगा। आधे टिकट यानी आधे किराया में ट्रेन में यात्रा की अनुमति तो है लेकिन चेयरकार में उसे अपने अभिभावक या मां-पिता की गोद में बैठकर जाना होगा। स्लीपर और एसी क्लास में हाफ टिकट यानी आधे किराए वाले बच्चों को अपने साथ चलने वाले मां-पिता या अभिभावक के साथ बर्थ शेयर करना होगा।

हाफ टिकट की यात्रा बनी परेशानी का सबब

how much age for half ticket in railway? आनंद विहार से भागलपुर (Anand Vihar to Bhagalpur) के लिए विक्रमशिला एक्सप्रेस (Vikramshila Express Train) ट्रेन में थर्ड एसी का किराया 1457 रुपये है लेकिन हाफ टिकट लेने के लिए 760 रुपये का भुगतान करना पड़ता है। दोनों स्टेशनों के बीच की दूरी करीब 1156 किलोमीटर के करीब है और ट्रेवलिंग टाइमिंग 16 घंटे 25 मिनट है। इस टिकट पर सिर्फ ट्रेन में बोर्डिंग तो कर सकते हैं लेकिन उसकी या वह जिसके साथ यात्रा कर रहा होगा दोनों की यात्रा परेशानियों का सबब बन जाएगी। आइए आपको बताते हैं कि कैसे बढ़ती है परेशानी?

वजन, लंबाई और कमर की गोलाई से मुश्किलों का लगाएं अंदाजा

मेडिकल साइंस के हिसाब से सामान्य तौर पर 5 साल के बच्चे का औसत वजन 17-20 किलोग्राम और लंबाई 105-112 सेंटीमीटर हो सकती है। वहीं 12 वर्ष के लड़कों का औसत वजन 37-47 किलोग्राम और लंबाई 140-160 सेंटीमीटर तक हो सकती है। वहीं 12 वर्ष की लड़कियों का औसत वजन 38-42 किलोग्राम और लंबाई 148 सेंटीमीटर तक हो सकती है। पांच साल के स्वस्थ बच्चों की कमर 52 सेमी तक होनी चाहिए। वहीं भारतीय रेल के एसी थ्री टीयर के बर्थ की चौड़ाई 60 से 64 सेंटीमीटर होती है। अब ऐसे में एक बर्थ पर दो लोग यात्रा करें तो किसी को आराम नहीं मिल सकता। एक यात्री ने आपबीती सुनाते हुए कहा कि मेरा बेटा 8 साल का है। मैंने हाल ही में इस ट्रेन में यात्रा करने के बाद भविष्य के लिए ऐसा करने से तौबा कर लिया।

चेयरकार ट्रेन में क्या आती है परेशानियां?

नई दिल्ली से चलकर भोपाल जाने वाली शताब्दी (New Delhi Bhopal Shatabdi) में चेयरकार का सामान्य किराया 1,325 रुपये है जबकि इस ट्रेन में 5 से 11 साल तक के बच्चों की टिकट का नाम चाइल्ड फेयर है। इसका किराया 836 रुपये है। इस ट्रेन को नई दिल्ली से भोपाल पहुंचने में 8 घंटे 40 मिनट लगता है। क्या इतनी अवधि तक 5 से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को गोद में बिठाया जा सकता है? इसका जवाब नहीं ही होगा। 5 साल से जैसे, जैसे बढ़ती उम्र के बच्चे होंगे, परेशानी उतनी ही बढ़ती जाएगी।