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‘लड़की होकर क्या कर लेगी’ का इन शेरनियों ने दिया जवाब, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाक आतंकियों के दांत खट्टे कर रचा इतिहास

Indo-Pak Border Report: ‘ऑपरेशन सिंदूर' में बीएसएफ की सात महिला जवानों ने साबित कर दिया कि महिलाएं कॉम्बैट रोल में किसी से कम नहीं। इन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि महिलाएं युद्धभूमि में भी पुरुषों के बराबर हैं।

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हमारी शेरनियांः सीमा पर बहादुरी की मिसाल (Photo- Patrika)

Indo-Pak Border Report: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में बीएसएफ की सात महिला जवानों ने साबित किया कि महिलाएं भी सीमा पर दुश्मन को करारा जवाब देने में सक्षम हैं। ओडिशा की अम्बिका और गौरी, झारखंड की सुमी, बंगाल की स्वप्ना और पंजाब की मंजीत-मलकीत ने गोलियों के बीच मोर्चा संभाला और टीम को लीड किया। इन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि महिलाएं युद्धभूमि में भी पुरुषों के बराबर हैं। बीएसएफ की यह पूरी महिला टीम अग्रिम मोर्चे पर तैनात होकर भारत की ताकत बनी। आइए, मिलते हैं इन जांबाज़ बेटियों से-

अम्बिका बेहेरा (पुरी, ओडिशा):

घर से विरोध मिला, पर हार नहीं मानी। जब पुलिस या सुरक्षा बल में जाने की बात की तो मां ने साफ मना कर दिया था। सवाल था, 'तू लड़की है, इतना दूर कैसे जाएगी? शादी करवाएंगे, फिर तू कहां रहेगी?' आज तीन भाषाएं जानती हैं और गर्व से देश की सेवा कर रही हैं।

सुमी जेस (रांची, झारखंड):

‘लड़की होकर क्या कर लेगी?’ सुनने वाली सुमी अब गांव की शान हैं। कहती हैं- 'हम हर जिम्मेदारी निभा सकते हैं।'

स्वप्ना राठ (मेदिनीपुर, बंगाल):

दो बहनों के साथ एक सामान्य परिवार में पली-बढ़ी। स्टेट पुलिस के बजाय बीएसएफ चुना। ऑपरेशन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कहती हैं- 'दुश्मन को उसकी भाषा में जवाब दिया।'

गौरी तिर्केय (सुंदरगढ़, ओडिशा):

नौ भाई-बहनों में अकेली कमाने वाली। गौरी कहती हैं, 'लोग कहते थे, कर पाओगी? मैंने जवाब दिया- हां, जरूर करूंगी। जो वादा घर से करके आई थी, उसे युद्धभूमि में पूरा किया। आज मां-बाप मुझ पर गर्व करते हैं, और मुझे खुद पर भी।'

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मंजीत और मलकीत कौर (पंजाब):

ये दो सीनियर महिला कॉन्स्टेबल्स उस अग्रिम मोर्चे पर थीं, जहां से दुश्मन को करारा जवाब दिया गया।
इन्होंने न सिर्फ मोर्चा संभाला, बल्कि टीम को लीड भी किया। गोलियों के बीच डटी रहीं।

पूरी दुनिया को दिया जवाब

महिला जवानों ने पूरे इलाके को कुशलता से संभाला और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। यह सिद्ध कर दिया कि महिलाएं न सिर्फ पुरुषों के बराबर हैं, बल्कि कई मामलों में उनसे बेहतर भी प्रदर्शन कर सकती हैं। भारत ही नहीं, विदेशों में भी यह बहस चलती रही है कि महिलाओं को कॉम्बैट रोल में शामिल किया जाए या नहीं, लेकिन हमारी बहादुर महिलाओं और बीएसएफ ने इस सवाल का उत्तर पूरे विश्व को दे दिया है।
-आइजी शशांक आनंद, बीएसएफ जम्मू फ्रंटियर

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भारतीय सेना और महिला कॉम्बैट रोल का इतिहास

वर्ष: मील का पत्थर
1992: भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं की स्थायी भर्ती शुरू
2016: एयर फोर्स में पहली बार महिला फाइटर पायलट
2020: सुप्रीम कोर्ट का स्थायी कमीशन देने का ऐतिहासिक निर्णय
2023-24: बीएसएफ में अग्रिम मोर्चे पर पूरी महिला टीम की तैनाती