
International Women's Day Special Story: आजादी के पहले भारतीय समाज में महिलाओं की शिक्षा पर काफी सीमित ध्यान दिया जाता था। हालांकि, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं ने शिक्षा के महत्व को समझा और इसके लिए कई आंदोलन चलाए। फिर भी, इस समय तक भारत में महिलाओं के लिए शिक्षा का स्तर काफी निम्न था। ऐसे समय में जब पूरा देश अंग्रेजों का गुलाम था, उस दौरान बंगाल की कादंबिनी गांगुली ने चिकित्साशास्त्र के क्षेत्र में अपूर्व कामयाबी हासिल की। आइए जानते हैं कादम्बिनी गांगुली की सफलता और प्रेरणा की कहानी।
कादंबिनी गांगुली भारत की पहली महिला डॉक्टर थी। उनका जन्म 1861 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था। जिस समय केवल पुरुष ही मेडिकल की पढ़ाई करते थे उस समय कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने वाली वह पहली महिला थीं। नके पिता देश के पहले महिला अधिकार संगठन के सह संस्थापक थे।
कादम्बिनी का जन्म 1862 में एक उच्च जाति के बंगाली समुदाय में हुआ था जो महिलाओं की शिक्षा का विरोध करता था। कादम्बिनी ने इसका विरोध किया और सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ कर मेडिकल फील्ड में अपने लिए जगह बनाई। वह 1883 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए की उपाधि प्राप्त की और भारत में ग्रेजुएशन करने वाली पहली महिला बनीं थी।
कादंबिनी की उपलब्धियों की बात करें तो उनके पास कई उपलब्धियां हैं। दक्षिण एशिया में यूरोपीय चिकित्सा में शिक्षा लेने वाली वह पहली महिला डॉक्टर बनीं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ीं और कांग्रेस सत्र के मंच पर आने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने मुंबई की आनंदीबाई जोशी ओर कुछ अन्य महिला डॉक्टर्स के साथ मिलकर महिलाओं के लिए भारत में एक सफल चिकित्सा पद्धति का बीड़ा उठाया था।
गांगुली ने 1892 में वह ब्रिटेन गईं और वहां जाकर डबलिन, ग्लासगो और एडिनबर्ग से आगे की ट्रेनिंग ली। वहां से लौटने के बाद उन्होंने स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में अपना करियर शुरू किया। वह कलकत्ता के लेडी डफरिन अस्पताल में काम करने लगीं और आखिर तक वहीं प्रैक्टिस जारी रखा।
कादंबिनी गांगुली की शादी प्रमुख ब्रह्म समाज नेता द्वारकानाथ से हुई थी। द्वारकानाथ की पहली पत्नी का शादी के कुछ साल बाद ही निधन हो गया था। इसके बाद उनकी शादी कादंबिनी से हुई। अपनी शादी के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया और उनके फैसले के लिए उन्हें काफी विरोध भी देखा गया था। वह आठ बच्चों की मां थीं और उन्होंने अपनी शिक्षा और बच्चों के पालन-पोषण के साथ-साथ घरेलू काम भी करने पड़ते थे।
डॉक्टर एक ऐसा पेशा है जिसमें रात में मरीजों से मिलना जरूरी था जिसकी वजह से उन्हें कई आलोचना का सामना करना पड़ा था। यहां तक कि एक पॉपुलर रीजनल अखबार ने उन्हें वेश्या तक कह डाला था। उन्होंने हार नहीं मानी और पति के साथ मिलकर इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।
कादंबिनी गांगुली ने अपने अंतिम दिनों तक डॉक्टर के रूप में सेवा दी। 3 अक्टूबर 1923 को उनका निधन हो गया। आज उनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। पिछले साल गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया था।
Updated on:
05 Mar 2025 12:22 pm
Published on:
05 Mar 2025 11:27 am
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