
चांद पर उतरने के बाद भारत एक और इतिहास रचने जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का सूर्य के अध्ययन के लिए भेजा गया आदित्य एल-1 मिशन शनिवार को हेलो आर्बिट लैग्रेंज-1 पर स्थापित किया जाएगा। इसके लिए इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एवं कमांड नेटवर्क (इसट्रैक) में तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। सौर वेधशाला आदित्य एल-1 पर निरंतर निगाह रखी जा रही है। शनिवार शाम 4.02 बजे एक छोटे से मैनुवर के बाद उसे कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा। अभी तक सिर्फ अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और नासा के सहयोग से यूरोपीय एजेंसी (इएसए) ने सूर्य पर मिशन भेजा है।
सूर्य की एक परिक्रमा 178 दिनों में करेगा पूरी
इसरो के मुताबिक, सौर वेधशाला आदित्य को लैग्रेंज-1 पर स्थापित करने के लिए शाम 4.02 बजे पर 440 न्यूटन वाली तरल एपोगी मोटर फायर की जाएगी। लगभग 4 मिनट बाद आदित्य लैग्रेंज-1 की कक्षा की ओर अग्रसर होगा। लगभग 4.15 बजे वह सामान्य रूप से लैग्रेंज-1 कक्षा में चक्कर लगाना शुरू करेगा। यह लगभग 2 लाख किमी गुणा 6 लाख किमी वाली अंडाकार कक्षा होगी। इसमें आदित्य एल-1 सूर्य की एक परिक्रमा 178 दिनों में पूरी करेगा। इस कक्षा में उपग्रह अगले 5 सालों तक विभिन्न प्रयोगों को अंजाम देगा। वैज्ञानिकों को भरोसा है कि भले ही यह मिशन 5 साल के लिए भेजा गया है लेकिन इसकी सेवाएं अगले 10 वर्षों तक मिलती रहेंगी।
काल्पनिक बिंदु, चुनौतियां बड़ी
इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि समान्यत: किसी उपग्रह को किसी ग्रह की कक्षा में स्थापित करना आसान होता है। क्योंकि, वह ग्रह के गुरुत्वाकर्षण में आकर उसकी कक्षा में प्रवेश कर जाता है और उसके चारों तरफ चक्कर लगाना शुरू कर देता है। इस मिशन में लैग्रेंज-1 एक काल्पनिक बिंदु है जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल सामान्य रूप से लगते हैं और उपग्रह को उसी बिंदु के चारों ओर चक्कर लगाना है। इसरो ऐसा पहली बार कर रहा है लेकिन, वैज्ञानिकों के हौसले बुलंद है।
डेढ़ दशक पहले बने थी योजना
सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य मिशन लॉन्च करने की योजना वर्ष 2009 में बनी थी। तब इस मिशन को केवल एक पे-लोड सौर-कोरोनोग्राफ के साथ पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजने की योजना थी। लेकिन, वर्ष 2014 में मंगलयान की सफलता के बाद अंतर्ग्रहीय मिशन में इसरो का आत्मविश्वास बढ़ा और तकनीकी क्षमता भी बढ़ी। उसके बाद प्रोफेसर यूआर राव के सुझाव पर आदित्य मिशन में और पे-लोड लगाने और उसे धरती से 15 लाख किमी दूर लैग्रेंज-1 पर स्थापित करने का फैसला हुआ।
यूआर राव के सुझाव पर बदली मिशन की रूपरेखा
वर्ष 2015 में 7 पे-लोड के साथ मिशन को अंतिम रूप दिया गया और उसके बाद तेजी से काम शुरू हुआ। लेकिन, कोरोना के कारण मिशन की तैयारियों पर असर पड़ा और लगभग दो से ढाई साल तक काम प्रभावित हुआ। अंतत: चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के कुछ ही दिनों बाद 2 सितम्बर 2023 को मिशन लांच किया गया। कुछ मैनुवर के बाद यह आदित्य 18 सितम्बर को धरती की कक्षा से बाहर निकल सूर्य के रास्ते पर चल पड़ा। मिशन लांच होने के 126 दिन बाद 6 जनवरी शाम 4 बजे इसे सूर्य और पृथ्वी के बीच लैग्रेंज-1 पर स्थापित किया गया जाएगा। यह धरती से लगभग 15 लाख किलोमीटर और सूर्य से लगभग 14 करोड़ 85 लाख किलोमीटर की दूरी पर रहते हुए सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाएगा। इस बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी दोनों के गुरुत्वाकर्षण बल समान रूप से लगते हैं।
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आदित्य एल-1 से सूर्य का अध्ययन क्यों?
सूर्य विकिरण अथवा उसके प्रकाश से उत्सर्जित ऊर्जावान कण धरती के चुंबकीय क्षेत्र के कारण पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाते। धरती का वायुमंडल एक सुरक्षा कवच का काम करता है और हानिकारक विकिरण को रोकता है। इसलिए सूर्य से निकलने वाले इन ऊर्जावान कणों का अध्ययन धरती पर स्थापित उपकरणों के जरिए नहीं हो सकता। ये अध्ययन पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर हो सकते हैं। सौर तूफानों और सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन लैग्रेंज-1 से संभव हो सकेगा जो पृथ्वी की चुंबकीय प्रभाव से काफी दूर है।
मिशन का मुख्य वैज्ञानिक उद्देश्य
- सौर कॅरोना के अति तप्त होने की वजह को समझना।
- सौर तूफानों और उसकी गति को समझना। ताकि सौर तूफानों की भविष्यवाणी हो सके।
- सौर युग्मन और सूर्य के वायुमंडल की गतिशीलता को समझना।
- सौर हवाओं के प्रसार को समझना।
Updated on:
06 Jan 2024 12:49 pm
Published on:
06 Jan 2024 07:41 am
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