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पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्याकांड: मौत के बाद भी चैन नहीं, अस्थिकलश तोड़ कर फेंका

Journalist Mukesh Chandrakar murder case: पत्रकार मुकेश चंद्राकर की अस्थियां मुक्तिधाम में रखी गईं थीं, वहां से 50 मीटर दूर कलश टूटा हुआ मिला।

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पत्रकार मुकेश चंद्राकर की अस्थियों को भी नहीं छोड़ा गया। मुक्तिधाम में जहां उनकी उनकी अस्थियां रखी गईं थीं, वहां से 50 मीटर दूर कलश टूटा हुआ मिला। मुकेश की हत्या बर्बरता पूर्वक की गई थी। अब अस्थियों के साथ भी छेड़छाड़ होने से बीजापुर समेत समूचे बस्तर के पत्रकारों और परिजनों में आक्रोश है। उन्होंने बीजापुर के एसपी जितेंद्र यादव से शिकायत की है। एसपी ने कहा कि बीजापुर थाना प्रभारी के नेतृत्व में टीम मामले में जांच कर रही है। सीसीटीवी फुटेज देख रहे हैं। कोई भी क्लू मिलता है तो आरोपियों तक पहुंच सख्त कार्रवाई की जाएगी। बीजापुर के ही ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के सड़क निर्माण घोटाले को उजागर करने वाले मुकेश चंद्राकर की 1 जनवरी को बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उनका शव सेप्टिक टैंक में फेंक दिया गया था।

अस्थिकलश नहीं मिलने पर घबराए परिजन

चार जनवरी को बीजापुर के मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। मुकेश की अस्थियों को मिट्टी के कलश में रख मुक्तिधाम के ही एक पेड़ पर टांग दिया गया था। 13 जनवरी को जब मुकेश के परिजन अस्थियों को विसर्जन के लिए ले जाने पहंचे तो पेड़ पर वह कलश नहीं था। कलश नहीं मिलने पर परिजन घबरा गए। जब कुछ दूर तक तलाश की गई तो देखा कि अस्थियां जमीन पर पड़ी हुई थीं और कलश टूटा पड़ा था। फिर परिजनों ने नए कलश में अस्थियों को डाला और तेलंगाना के कालेश्वर रवाना हुए जहां गोदावरी नदी में मुकेश की अस्थियों को प्रवाह किया जाएगा। बता दें कि छत्तीसगढ़ में बस्तर, प्रदेश का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ नक्सली खतरा कम हुआ है। इसके बावजूद यहाँ पत्रकारिता करने में खतरा बढ़ता ही जा रहा है। इसका कारण है भ्रष्टाचार।

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भ्रष्ट ठेकेदारों और नेताओं का गठजोड़ लगातार हो रहा मजबूत

दरअसल नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए केंद्र सरकार एलडब्ल्यूई मद के तहत विकास कार्यों के लिए बड़ी मात्र में पैसे देती है। इन पैसों की बंदरबांट के लिए भ्रष्ट ठेकेदार, अफसर और नेताओं का गठजोड़ काम कर रहा है और लगातार मजबूत हो रहा है। इसकी बानगी नक्सल प्रभावित इलाकों में हो रहे निर्माण कार्यों में देखी जा सकती है। बस्तर के मिरतुर–गंगालूर, दोरनापाल–जगरगुंडा, तथा बारसूर–पल्ली मार्ग पर बनी सड़कें इसका बड़ा उदाहरण है । इन सड़को की यदि जांच की जाए तो पाएंगे कि इन सभी सड़को का निर्माण उनकी प्रारंभिक लागत से कई गुना अधिक दर पर हुआ है। भ्रष्टाचारियों ने इन निर्माण से सैकड़ों करोड़ रुपए हजम कर लिए है। मुकेश चंद्राकर ने सड़क निर्माण में हो रहे भ्रष्टाचार को ही उजागर किया था, जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई। इस घटना ने यह दिखाया है कि बस्तर की विपरीत परिस्थितियों में पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। भूपेश बघेल की सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने का दावा किया था। वह कागजी आश्वासन साबित होकर रह गया। नए सीएम विष्णुदेव साय ने भी इस कानून को प्रदेश में लागू करने का आश्वासन दिया है। पर, राज्य को अभी इस पर अमल का इंतजार ही है।