
न्यायाधीश शेखर कुमार यादव (फाइल फोटो)
Hate Speech Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर राज्यसभा में प्रक्रिया तेज होती दिख रही है। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ इस प्रस्ताव पर कार्रवाई करते हुए एक उच्चस्तरीय जांच समिति गठित कर सकते हैं। यह प्रस्ताव दिसंबर 2023 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में जस्टिस यादव द्वारा दिए गए कथित विवादास्पद बयान के बाद लाया गया है। बयान में उन्होंने कहा था कि यह हिंदुस्तान है और देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा, जिस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी।
महाभियोग की प्रक्रिया के तहत विपक्षी दलों के 55 सांसदों ने छह महीने पहले सभापति धनखड़ को ज्ञापन सौंपा था। नियमों के अनुसार, राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों और लोकसभा में 100 सांसदों के समर्थन से ही महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इस बीच, सभापति कार्यालय की ओर से सांसदों को दो ईमेल भेजे गए, जिसमें उनसे हस्ताक्षर सत्यापन की अपील की गई। धनखड़ ने राज्यसभा में 21 मार्च को जानकारी दी कि 55 में से एक सदस्य के हस्ताक्षर दो बार पाए गए थे, और वह खुद उनके हस्ताक्षर होने से इनकार कर चुके हैं।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह गलती केवल कागज़ी प्रक्रियाओं के दौरान भ्रम के चलते हुई थी। विपक्ष के सूत्रों के अनुसार तीन सेट तैयार किए गए थे, जिनमें से एक पर यह गलती हो गई। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक हस्ताक्षर अमान्य हो भी जाए, तो भी आवश्यक न्यूनतम संख्या 50 बनी रहती है, इसलिए प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जा सकता है। विपक्ष लगातार जस्टिस यादव के बयान को लेकर कार्यवाही की मांग कर रहा है और राज्यसभा पर दबाव बना रहा है।
न्यायाधीश जांच अधिनियम के तहत अगर सभापति को प्रस्ताव पर्याप्त और गंभीर लगता है, तो वे जांच समिति का गठन कर सकते हैं। समिति रिपोर्ट के आधार पर ही तय किया जाएगा कि महाभियोग की प्रक्रिया को संसद में आगे बढ़ाया जाए या नहीं। यह मामला न्यायपालिका की निष्पक्षता और संविधान सम्मत आचरण को लेकर भी अहम माना जा रहा है।
Published on:
10 Jun 2025 10:06 am
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