
न्याय मिलने में देरी न्याय से वंचित करने के समान है, यह उक्ति सुनते बरसों हो गए लेकिन लेकिन देश की निचली अदालतों में मजिस्ट्रेटों और जजोंं के हजारों खाली पदों के कारण न्याय में देरी की इस समस्या का समाधान होता नहीं दिखता। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में जिला एवं अधीनस्थ न्यायपालिका के करीब 20 फीसदी से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। देश भर में कुल करीब 25000 पदों में से 5238 पद (Judge Vacancies) खाली हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में कुल 3700 में से 973 पद रिक्त हैं जो देश में सबसे ज्यादा है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात में भी कमोबेश यही हालात हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि निचली अदालतों में ज्यादातर मुकदमे गरीब, ग्रामीणों और आम आदमी के छोटे-छोटे अपराधों-विवादों से संबंधित होते हैं। इनमें फैसलों में देरी से आम आदमी को समय, श्रम और भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। साथ ही परोक्ष रूप से न्यायपालिका पर भरोसे पर भी सवालिया निशान उठता है। गौरतलब है कि देश की अधीनस्थ अदालतों में 22 अक्टूबर 2024 तक 4.49 करोड़ मुकदमे लंबित हैं।
अधीनस्थ अदालतों में पद भरने के प्रयास किए जाते हैं लेकिन कभी बजट की समस्या, कहीं परीक्षा प्रक्रिया में देरी या अदालती विवाद के कारण अपेक्षित भर्ती समय पर पूरी नहीं हो पाती। कई राज्यों में राजनीतिक कारणों से या प्रशासनिक इकाइयों में बदलाव (नए जिले-तहसील बनाना) से नई अदालतें खोल दी जाती हैं लेकिन नए मजिस्ट्रेट या जज तत्काल नहीं मिल पाते। इससे रिक्तियों की संख्या बढ़ जाती है। जजों के पद खाली रहने का मतलब यह नहीं कि आम लोगों के मुकदमे या उन पर सुनवाई रुक जाती है। दरअसल हर कोर्ट की एक लिंक या वैकल्पिक अदालत होती है। मूल अदालत में जज का पद रिक्त होने पर लिंक कोर्ट में सुनवाई होती है लेकिन पहले से मुकदमों के बोझ से दबी अदालतों के पास अतिरिक्त काम आने से अंतत: मुकदमों के निस्तारण में विलंब होता है। इससे आम वादियों को नुकसान होता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से लेकर देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ तक मुकदमों के निस्तारण में देरी और उसके खतरों के बारे में चिंता जता चुके हैं लेकिन निचली अदालतों में मजिस्ट्रेटों-जजों के खाली पद इस चिंता को कम करने के बजाय बढ़ा ही रहे हैं। पिछले दिनों राष्ट्रपति मुर्मु ने न्यायिक अधिकारियों के सम्मेलन में अपनी चिंता जाहिर करते हुए खुले तौर पर कहा था कि मुकदमेबाजी की थकान के कारण लोग अपने मामले वापस ले लेते हैं। सीजेआइ चंद्रचूड़ ने गत माह एक कार्यक्रम में कहा कि लोगों के लिए अदालत की प्रक्रिया ही सजा बन जाती है और वे अदालतों से दूर जाना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश - 973 गुजरात - 535 बिहार - 483 तमिलनाडु - 339 राजस्थान - 320 मध्यप्रदेश -319 महाराष्ट्र -250 कर्नाटक -244 झारखंड -203 छत्तीसगढ़ -195 हरियाणा-217 जम्मू और कश्मीर- 100 ओडिशा - 267 प.बंगाल एवं अंडमान-निकोबार - 242 तेलंगाना - 115 आंध्र प्रदेश - 74 केरल -66 अरुणाचल प्रदेश - 11 असम -25 दादरा एवं नगर हवेली - 1 दिल्ली -81 गोवा-10 हिमाचल प्रदेश - 19 लद्दाख-8 लक्षद्वीप -2 मणिपुर - 13 मेघालय - 43 मिजोरम - 29 नगालैंड-10 पुडुचेरी -19 पंजाब - 73 सिक्किम - 12 त्रिपुरा - 24 उत्तराखंड - 28
Updated on:
24 Oct 2024 02:54 pm
Published on:
24 Oct 2024 01:52 pm
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