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Lok Sabha Elections 2024 : कर्नाटक में राष्ट्रवाद, जातीय समीकरण और गारंटी कार्यक्रमों को तरजीह, सूखे से त्रस्त किसानों के हालात पर चर्चा नहीं

Lok Sabha Elections 2024 : कर्नाटक में इस बार भी राष्ट्रवाद, हिंदुत्व व जातीय समीकरण को मुख्य हथियार के रूप में आजमाया जा रहा है। राज्य के अधिकांश तालुक सूखे के कारण गंभीर संकट में हैं। पढ़िए राजीव मिश्रा की विशेष रिपोर्ट...

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Lok Sabha Elections 2024 : कर्नाटक की सत्ता के केंद्र कर्नाटक विधानसौधा (विधानसभा) के ठीक सामने लगभग 120 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले कब्बन पार्क की हरियाली और उसमें खिले गुलाबी फूल बेहद आकर्षक दिखने लगे हैं। पास में ही कर्नाटक हाईकोर्ट, राजभवन, चिन्नास्वामी स्टेडियम और इन्हें जोड़ती चमकदार सड़कें विकसित कर्नाटक की भव्यता का अहसास कराती हैं। सत्ता के केंद्र और उसके आसपास बिखरी चमक और ऐश्वर्य के उलट दूर देहातों की हालत चिंताजनक है। खेतों में दरारें पड़ी हैं और सूखे से त्रस्त किसानों की निगाहें कभी आसमान तो कभी सत्ता के इन्हीं गलियारों की तरफ उम्मीदों के साथ उठ रही हैं। बार-बार किसान हितैषी योजनाओं के नाम और खुशहाली के दावे सुनाई पड़ते हैं, पर जेब खाली और भविष्य अंधकारमय लगता है। सवाल है कि क्या लोकसभा चुनावों में किसानों के हालात पर ईमानदारी से बात होगी?

चुनाव की घोषणा से चंद मिनट पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने तूर के कटोरे कलबुर्गी में ऐलान किया कि उनकी सरकार राज्य को कृषि एवं उद्योग का हब बनाएगी। कलबुर्गी से आने वाले कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी पार्टी की दो और न्याय गारंटियां घोषित कीं, जिनमें कृषि उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का संकेत दिया। लेकिन चुनाव विधानसभा के हों या लोकसभा के, मतदान करीब आने के साथ असली मुद्दों पर बातें कम होने लगती हैं, निजी हमले ज्यादा होने लगते हैं।

राष्ट्रवाद और गारंटी का चश्मा

इस बार भी राष्ट्रवाद, हिंदुत्व व जातीय समीकरण को मुख्य हथियार के रूप में आजमाया जा रहा है। राज्य के अधिकांश तालुक सूखे के कारण गंभीर संकट में हैं, पर भावनाओं को छूने वाली बातें ज्यादा हैं। विश्लेषकों का कहना है कि किसानों की हालत जैसे गंभीर मुद्दे पर बात करने का जोखिम कोई पार्टी नहीं उठाएगी। हर चीज को राष्ट्रवाद या गारंटी के चश्मे से दिखाने की कोशिश होगी।

किसान फिर नजरअंदाज!

उत्तर कर्नाटक के कई लोकसभा क्षेत्र, जहां 7 मई को मतदान होगा, सूखे से त्रस्त हैं। इनमें धारवाड़, बागलकोट, हावेरी, चित्रदुर्ग आदि प्रमुख हैं। मवेशियों को बेचने की समस्या यहां हाल ही में बड़े पैमाने पर देखी गई। पर इस पर कोई चर्चा नहीं है। कांग्रेस गारंटी कार्यक्रमों को, तो भाजपा विकसित भारत के संकल्प के साथ राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दे रही है।

पिछड़ापन स्थायी समस्या

कलबुर्गी के किसान येलप्पा कहते हैं कि सभी नेता स्थानीय समस्याओं से वाकिफ हैं। बीदर, कलबुर्गी, रायचूर, कोप्पल और बल्लारी में पिछड़ापन स्थायी समस्या है। कई चुनाव आए और गए। हालात कितने बदले, सब जानते हैं।

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