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Manipur Violence: सुरक्षाबलों पर भरोसा नहीं कर रहे लोग, मणिपुर पुलिस को भी इनसे दिक्कत। जानिए क्यों

Manipur Violence: मणिपुर में हिंसा रोकने के लिए तैनात सेना के अधिकारियों का कहना है कि यह मामला देखने में जितना लगता उससे गहरा है, उससे पेंचीदा है। मणिपुर लोग सुरक्षाबलों पर भरोसा नहीं जता रहे, मणिपुर पुलिस भी इस मामले में सामंजस्य नहीं बिठा पा रही है, जिस वजह से समय पर इनफार्मेशन मिल नहीं पाता। ऐसे में आइए जानने की कोशिश करते हैं की शांति व्यवस्था स्थापित करने में सुरक्षाबलों के सामने क्या-क्या चुनौतियां सामने आ रही है?

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आखिर मणिपुर के लोग क्यों नहीं कर रहे सुरक्षाबलों पर भरोसा? मणिपुर पुलिस को भी इससे दिक्कत

आखिर मणिपुर के लोग क्यों नहीं कर रहे सुरक्षाबलों पर भरोसा? मणिपुर पुलिस को भी इससे दिक्कत

Manipur Violence: मणिपुर 3 मई से भीषण जातीय हिंसा से जूझ रही है। सरकार की एक भी कदम यहां सही साबित नहीं हो रही। एक महीने से ज्यादा समय से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच चल रही हिंसा के बीच खेमनलोक इलाके में फिर से हिंसा का दौर देखा गया। यह इलाका कुकी बाहुल्य कांगपोकपी की सीमा के करीब है जो इंफाल पूर्व से लगा हुआ है जहां इस समुदाय की अच्छी पकड़ है। ऐसे में शांति बहाल करने की स्थिति को लेकर सुरक्षाबालों की हालत, उस छेद वाली नाव से पानी हटाने जैसी हो गई है, जिसमें से जितना पानी निकाला जाता है, उससे दोगुनी गति से उसमें पानी फिर भर जाता है। ऐसा क्यों हो रहा है, इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है की स्थानीय लोगों को केंद्र द्वारा भेजे गए सुरक्षादलों पर भरोसा नहीं हो पा रहा और दूसरी सबसे बड़ी वजह ये है की दोनों ही समुदाय से संबंध रखने वाले मणिपुर के पुलिसकर्मी अपने-अपने समुदाय के लिए सहानुभूति का भाव रखते हैं। इस वजह से सूचना को पहुंचने में वक्त लग जाता है।




पुलिस और सिक्योरिटी फोर्स आमने-सामने

बता दें कि राज्य की चुराचांदपुर के सुगनु में असम राइफल को भी एक जगह सड़क खुदी हुई मिली। जब उन्होंने स्थानीय पुलिस स्टेशन में इसकी शिकायत दर्ज की तो दोनों के बीच बहस हुई। पुलिस का सीधा आरोप है कि पैरामिलेट्री फोर्स उनके काम में हस्तक्षेप कर रही है। मिडिया में छपी रिपोर्ट बताती है की किस तरह मणिपुर में सुरक्षा बलों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

सुरक्षा बलों का कहना है कि प्रत्येक हिंसा की वारदात में सुरक्षाकर्मियों को कई स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ता है। बड़े अधिकारियों का भी यही कहना है की वो महिलाओं या बच्चों पर लाठीचार्ज नहीं कर सकते हैं। ऐसे में जब तक भीड़ को हटाया जाता है तब तक नुकसान हो चुका होता है। इन घटनाओं से ऐसा लगता है कि लोग राज्य में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं।


मामला जानिए

बता दें कि, अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद पहली बार 3 मई को झड़पें हुई थीं। मेइती समुदाय मणिपुर की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। जनजातीय नागा और कुकी जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं। राज्य में शांति बहाल करने के लिए करीब 10,000 सेना और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है।

लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है, जिस कारण आम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अब तक इस हिंसा में 105 लोगों की जान जा चुकी है और 350 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। केंद्र की मोदी और राज्य की बिरेन सरकार अब तक इस मसले पर पूरी तरह विफल दिखी है। अब वक्त आ गया है कोई सख्त निर्णय लेने का, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब देश के सबसे खुबसूरत राज्यों में से एक राज्य की स्थिति संभाले नहीं संभलेगी।