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RSS की शाखा में शामिल हो सकते हैं मुसलमान! मोहन भागवत ने रखी ये शर्त

मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि RSS की विचारधारा में पूजा पद्धति या धार्मिक रीति-रिवाजों के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है।

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भारत

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Anish Shekhar

Apr 07, 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया है, जो सुर्खियों में छा गया है। उन्होंने कहा कि मुसलमान भी RSS में शामिल हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए एक शर्त है—उन्हें "भारत माता की जय" के नारे को स्वीकार करना होगा और भगवा झंडे का सम्मान करना होगा। यह बयान न सिर्फ संघ की विचारधारा को लेकर चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि देश के सांस्कृतिक और सामाजिक माहौल में भी एक नई बहस को जन्म दे रहा है।

भागवत बोले- सबका स्वागत है

बनारस की पवित्र धरती पर, जहां गंगा की लहरें और मंदिरों की घंटियां आध्यात्मिकता का आलम बिखेरती हैं, मोहन भागवत ने एक सभा को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने स्पष्ट किया कि RSS की विचारधारा में पूजा पद्धति या धार्मिक रीति-रिवाजों के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। उनके शब्दों में, "संघ का दरवाजा भारत के हर संप्रदाय, समुदाय और जाति के लिए खुला है। चाहे कोई हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो या ईसाई—सबका स्वागत है। लेकिन एक बात साफ है, जो लोग खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं, उनके लिए यहां जगह नहीं है।"

RSS का एक मुस्लिम विंग मौजूद

यह जानना भी जरूरी है कि RSS के पास मुस्लिम समुदाय के लिए पहले से ही एक विंग मौजूद है—मुस्लिम राष्ट्रीय मंच। यह संगठन राष्ट्रवादी मुस्लिमों का एक मंच है, जो RSS की विचारधारा से प्रेरित है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को विश्व के सबसे अच्छे संगठनों में से एक होने का गौरव प्राप्त है। इसके राष्ट्रीय संयोजक मुहम्मद अफजल हैं, जबकि इंद्रेश कुमार इसके मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। यह मंच उन मुस्लिम नागरिकों को एकजुट करता है जो भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित हैं, और यह दर्शाता है कि संघ की विचारधारा में समावेशिता का एक पहलू पहले से मौजूद है।

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'हमारी संस्कृति एक है'

मोहन भागवत ने आगे कहा, "पंथ, जाति और संप्रदाय की पूजा पद्धतियां भले ही अलग-अलग हों, लेकिन हमारी संस्कृति एक है। भारत माता की जय का नारा और भगवा झंडा उस संस्कृति के प्रतीक हैं। जो इनका सम्मान करेगा, वह संघ का हिस्सा बन सकता है।" उनके इस बयान से यह संदेश साफ झलकता है कि RSS अपनी वैचारिक नींव को मजबूत रखते हुए भी समावेशिता की बात कर रहा है, लेकिन अपनी शर्तों के साथ।