
नौकरियां (प्रतिकात्मक फोटो)
Jobs in India: देश के प्रतिष्ठित आर्थिक शोध संस्थान नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की ताजा रिपोर्ट ने भारत के रोजगार संकट की गंभीर तस्वीर सामने रखी है। रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 से अब तक देश की कामकाजी आबादी में करीब 9 करोड़ की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि में केवल 6 करोड़ नई नौकरियां सृजित हो सकीं। इसका अर्थ है कि हर साल औसतन 50 लाख नौकरियों की कमी बनी हुई है। यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है, जब हर साल 1 से 1.2 करोड़ युवा रोजगार बाजार में प्रवेश कर रहे हैं।
रिपोर्ट बताती है कि 18 से 59 वर्ष आयु वर्ग की कामकाजी आबादी में स्वरोजगार का हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक हो चुका है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। हालांकि, स्वरोजगार से मिलने वाली वास्तविक दैनिक आय में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। 2017-18 से 2023-24 के बीच पुरुषों की औसत वास्तविक दैनिक आय 470-480 रुपए के आसपास स्थिर रही, जबकि महिलाओं के लिए यह लगभग 310 रुपए है। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि महिलाओं की स्वरोजगार से होने वाली वास्तविक आय में गिरावट दर्ज की गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 96 प्रतिशत वर्कफोर्स औपचारिक रूप से अप्रशिक्षित है। केवल 4 प्रतिशत कामगारों को ही औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण मिला है, जबकि जर्मनी और सिंगापुर जैसे देशों में यह आंकड़ा 10 से 13 प्रतिशत है। देश के लगभग 15 हजार आइटीआइ संस्थानों में 36 प्रतिशत सीटें खाली पड़ी हैं, प्लेसमेंट दर महज 0.09 प्रतिशत है और करीब एक तिहाई प्रशिक्षक पद रिक्त हैं।
उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजना के तहत सबसे ज्यादा रोजगार खाद्य प्रसंस्करण और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्रों में सृजित हुए, जबकि बजट का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा इलेक्ट्रॉनिक्स, आइटी हार्डवेयर और ड्रोन जैसे पूंजी-प्रधान क्षेत्रों को मिला। एनसीएईआर का सुझाव है कि वस्त्र, जूता और खाद्य प्रसंस्करण जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों पर फोकस बढ़ाना जरूरी है।
समाधान का रोडमैप
रिपोर्ट बताती है कि सही नीतियों से 2030 तक 1.4-1.8 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां संभव हैं। इसके लिए जरूरी है-
सकारात्मक संकेत
Published on:
15 Dec 2025 06:32 am
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