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नितिन नबीन की मंजिल: दिल्ली की लॉबिंग नहीं, छत्तीसगढ़ के बूस्टअप-रफ नोट्स ने बनाया मोदी-शाह का ‘पसंदीदा’

Nitin Nabin Secret File: नितिन नबीन की ताजपोशी का राज दिल्ली की लॉबिंग नहीं, बल्कि रायपुर में तैयार किए गए उनके जमीनी 'रफ नोट्स' थे। उनकी इस 'सीक्रेट फाइल' ने साबित कर दिया कि पुख्ता होमवर्क और रणनीति ही सबसे बड़ी सिफारिश होती है।

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भारत

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MI Zahir

Dec 14, 2025

Nitin Nabin Secret File

भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन नबीन। (फोटो: पत्रिका)

Nitin Nabin Secret File: भाजपा ने नितिन नबीन (Nitin Nabin) को बिहार भाजपा की कमान सौंप कर न केवल राज्य, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एक चौंकाने वाला संदेश दिया है। उन्हें ऐन उस दिन कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष (BJP-working-president) घोषित किया गया, जिस दिन कांग्रेस ने रामलीला मैदान में 'वोट चोर- गद्दी छोड़' रैली का आयोजन किया था। इस तरह देश और दुनिया का सारा ध्यान रैली से हट कर नितिन नबीन की ताजपोशी की ओर हो गया। अहम बात यह है कि वे राष्ट्रीय राजनीति के लिए एकदम ताजा और ऊर्जावान चेहरा हैं, जो कार्यकर्ताओं को 'बूस्ट अप' करने और पार्टी को 'बूस्टर डोज' देने में सक्षम हैं। अब तक मीडिया 'जातिगत गणित' और 'ओबीसी बनाम सवर्ण' की बहस में ही उलझा हुआ था, लेकिन 11 अशोक रोड (भाजपा मुख्यालय) और नागपुर (संघ मुख्यालय) के बीच जिस 'तीसरे फैक्टर' पर सहमति बनी, वह किसी के रडार पर नहीं थी। यह स्टोरी नितिन नबीन के नाम की नहीं, बल्कि उस 'गुमनाम टेस्ट' की है, जो पिछले 3 सालों से चल रहा था। इसी वजह से वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की नज़रों में चढ़ गए।

वह 'साइड स्टोरी' जो किसी को पता नहीं: 'द छत्तीसगढ़ मॉडल' (Raipur Politics)

राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार, नितिन नबीन को अध्यक्ष बनाने की पटकथा पटना में नहीं, बल्कि रायपुर (छत्तीसगढ़) के जंगलों और बूथों पर लिखी गई थी। जब उन्हें छत्तीसगढ़(Chhattisgarh News) का सह-प्रभारी बनाया गया, तो यह उनके लिए एक 'लिटमस टेस्ट' था। सूत्रों के मुताबिक, संघ ने एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें नबीन की 'मॉड्यूलर वर्किंग स्टाइल' का जिक्र था। जहां अन्य दावेदार दिल्ली में अपना बायोडाटा दिखा रहे थे, नबीन छत्तीसगढ़ में हारी हुई बाजी पलट रहे थे। "तकनीक के साथ स्वयंसेवक का अनुशासन"-यही वह नया विषय है जिसने उन्हें रेस में सबसे आगे कर दिया। संघ को एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो 'स्मार्टफोन पीढ़ी' (Gen Z) और 'खाकी निकर वाली पुरानी पीढ़ी' के बीच 'ब्रिज' (सेतु) बन सके। नबीन इसमें पूरी तरह फिट बैठे।

संघ-भाजपा संबंध और नया कार्ड (Political Strategy)

सियासी गलियारों में चर्चा है कि 'विरासत और विजन' का संगम नितिन नबीन के पक्ष में होने के कारण सबसे बड़ी बात उनका 'डीएनए' रहा। उनके पिता नवीन किशोर सिन्हा जनसंघ के समय के तपस्वी नेता थे। लेकिन नबीन को केवल पिता के नाम पर यह पद नहीं मिला है।

संघ का वीटो: नया नेता और नई कमान

एक तथ्य यह भी है कि संघ को ऐसा अध्यक्ष चाहिए था जो सरकार (नीतीश कुमार या भविष्य का भाजपा सीएम) के सामने पार्टी की विचारधारा से समझौता न करे। नबीन की छवि एक सौम्य लेकिन 'विचारधारा के प्रति जिद्दी' नेता की है। संघ ने माना कि वे गठबंधन धर्म निभाते हुए भी 'हिंदुत्व के एजेंडे' को खत्म (Dilute) नहीं होने देंगे।

कई दिग्गज, जो रेस से बाहर हो गए (BJP Leadership)

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भाजपा में अध्यक्ष पद के दावेदारों की लिस्ट लंबी थी, लेकिन 'एलिमिनेशन राउंड' में कई बड़े नाम इसलिए बाहर हो गए:

रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad):

क्यों नहीं बने: इनकी छवि शुरू से ही 'इंटलेक्चुअल फेस' और 'नेशनल स्पोक्सपर्सन' की रही। संघ को लगा कि वे कोर्ट और मीडिया के लिए ज्यादा जरूरी हैं। उन्हें 'संगठन का आदमी' मानने के बजाय 'सरकार का आदमी' माना गया।

गिरिराज सिंह (Giriraj Singh)

क्यों नहीं बने: इनकी आक्रामक छवि गठबंधन (JDU) के लिए सहज नहीं थी। पार्टी ने उन्हें 'स्टार प्रचारक' रखना बेहतर समझा, न कि 'कप्तान', ताकि गठबंधन में अनावश्यक टकराव न हो।

राजीव प्रताप रूडी (Rajiv Pratap Rudy)

क्यों नहीं बने: इनकी 'कॉर्पोरेट स्टाइल' कार्यशैली बिहार के ठेठ कार्यकर्ताओं से मेल नहीं खाती। साथ ही, वे सारण की स्थानीय राजनीति में ज्यादा उलझे रहे।

शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain)

क्यों नहीं बने: बिहार जैसे राज्य में कोर हिंदू वोट बैंक को देखते हुए मुस्लिम चेहरा अध्यक्ष बनाना जोखिम भरा था।

अश्विनी चौबे (Ashwini Choubey)

क्यों नहीं बने: इनका स्वभाव काफी 'बागी' और 'स्पष्टवादी' है, जो अध्यक्ष पद के लिए जरूरी कूटनीति से मेल नहीं खाता। साथ ही, गुटबाजी का डर भी एक वजह रही।

अन्य (संजीव चौरसिया/जनक राम/मिथिलेश तिवारी):

क्यों नहीं बने: किसी को जातिगत समीकरण तो किसी को गुटबाजी के डर से रिजेक्ट कर दिया गया। पार्टी को 'परफॉर्मेंस' वाला चेहरा चाहिए था।

चयन व खारिज करने का आधार: 'दिल्ली रूट' vs 'पटना रूट'

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कई नेताओं के न बनने का सबसे बड़ा कारण यह था कि भाजपा में दो रास्ते हैं। एक रास्ता 'दिल्ली' (संसद/मंत्रालय) जाता है और दूसरा 'पटना' (संगठन/बूथ)। ये सभी दिग्गज 'दिल्ली रूट' के यात्री बन गए, जबकि नितिन नबीन ने छत्तीसगढ़ में मेहनत करते हुए 'पटना रूट' को चुना।

भविष्य का रोडमैप कमल खिलाने वाला

बहरहाल, नितिन नबीन का चयन पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम व पुडुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनावों (2026) के मद्देनजर भाजपा की 'आक्रामक यूथ पॉलिसी' का हिस्सा है। उन्हें इसलिए नहीं चुना गया कि वे किस जाति से आते हैं, बल्कि इसलिए चुना गया, क्योंकि वे भाजपा के उस 'ट्रांजिशन फेज' (बदलाव के दौर) का नेतृत्व कर सकते हैं, जहां पार्टी को 'लालू युग' की काट तलाशनी है।