Patrika Exclusive Interview: मोदी सरकार ने 'एक देश, एक चुनाव' की व्यवस्था लागू करने के लिए पिछले साल पेश दो विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास विचार के लिए भेजा था। समिति के चेयरमैन और राजस्थान के पाली से सांसद पी.पी. चौधरी ने पत्रिका के विशेष संवाददाता से बातचीत में एक देश-एक चुनाव लागू होने के उपायों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि भले संविधान संशोधन के लिए हमारे पास अभी दो तिहाई बहुमत नहीं है, लेकिन हम एक देश-एक चुनाव के लिए जनता के बीच जा रहे हैं। जब जनता खुद आवाज उठाएगी तो सभी राजनीतिक दलों को इसका समर्थन करना पड़ेगा। चौधरी का कहना है कि एक साथ चुनाव के लिए वन टाइम संविधान संशोधन होगा। एक बार कैलेंडर सेट हो जाने के बाद फिर कभी संविधान संशोधन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
जवाब: हमारे पास दो-तिहाई बहुमत है या नहीं, इससे ज्यादा जरूरी सवाल है कि हमारे पास जनसमर्थन है या नहीं। जनता बार-बार चुनाव से ऊब चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि एक देश-एक चुनाव सरकार की नहीं, जनता की इच्छा से होना चाहिए। देश में माहौल बन रहा है। इसलिए सरकार और संगठन इसे जनता की मुहिम बनाने में जुटा है। एक देश-एक चुनाव के लाभ बताए जा रहे हैं। जनता जो चाहेगी, राजनीतिक दलों को वही करना पड़ेगा। हमारी सरकार चाहती है कि जब इतना बड़ा चुनाव सुधार हो रहा है तो जनता की इच्छा से होना चाहिए। जब जनता खुद आवाज उठाएगी तो विरोध करने वाली पार्टियों को भी समर्थन करना पड़ेगा।
जवाब: एक देश-एक चुनाव के लिए लाया गया 129वां संविधान (संशोधन) विधेयक 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 लोकसभा और राज्यों के चुनाव एक साथ कराने के बारे में हैं। बिल पास होने पर राष्ट्रपति प्रस्तावित बदलावों को आगामी लोकसभा (2029) की पहली बैठक की तारीख से लागू कर सकते हैं। इस प्रकार नियत तिथि से 5 साल के अंदर यानी 2034 में एक साथ चुनाव हो सकते हैं। वन टाइम संविधान संशोधन के जरिए यह व्यवस्था होगी कि 2029 से 2034 के बीच जितने भी विधानसभा चुनाव हों, उनका कार्यकाल 2034 तक खत्म मान लिया जाएगा।
जवाब: अगर सरकार गिरती है तो जितना बचा हुआ कार्यकाल होगा, उसके लिए ही चुनाव होगा। मान लीजिए 2034 में चुनाव के बाद 2036 में कोई सरकार गिर गई तो शेष 3 साल के लिए चुनाव होंगे। ताकि 2039 में भी लोकसभा और राज्यों के चुनाव का कैलेंडर मेंटेन रहे।
जवाब: यह निराधार है। हमें जनता को कमतर नहीं आंकना चाहिए। देश का वोटर बहुत समझदार है। कई राज्यों में देखने को मिला है कि जिन मतदाताओं ने राज्य में अलग सरकार चुनी, उन्होंने लोकसभा में दूसरे को वोट दिया। लोकसभा में राष्ट्रीय दलों को वोट देने वाले जरूरी नहीं कि विधानसभा में भी उसी दल को वोट करें।
जवाब: भारत में पार्लियामेंट फॉर्म ऑफ डेमोक्रेसी है, जबकि अमेरिका में एक्जीक्यूटिव फॉर्म ऑफ डेमोक्रेसी है। अमेरिका में भले सरकार चुनाव के दौरान ही जिम्मेदार होती है, लेकिन भारत में सरकार जनता और संसद या विधानसभा के प्रति जिम्मेदार होती है। संसद में सांसद मंत्रियों से सवाल पूछते हैं।
जवाब: अभी संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे किसी सदन का कार्यकाल घटा या बढ़ा सकें। ऐसा करने के लिए संविधान संशोधन करना पड़ेगा। मान लीजिए कि 2034 में एक साथ चुनाव होना है और किसी राज्य का कार्यकाल 2033 में खत्म हो रहा है तो दो तरीके हैं। या तो शेष अवधि के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जाए या फिर शेष अवधि के लिए चुनाव कराया जाए।
जवाब: लोकसभा और राज्यों का चुनाव केंद्र का विषय है। इस पर कानून बनाने के लिए संसद सक्षम है। लोकसभा और राज्यों का चुनाव एक साथ कराने के लिए राज्यों का समर्थन जरूरी नहीं है। अगर पंचायतों और नगर निकायों का भी चुनाव साथ कराना हुआ तो जरूर आधे राज्यों का समर्थन चाहिए होगा। लेकिन अभी जो बिल आया है, सिर्फ लोकसभा और राज्यों के चुनाव एक साथ कराने के लिए है।
जवाब: अगर संविधान संशोधन 2029 में लागू हो गया तो सभी को मानना ही पड़ेगा। कोई इसका विरोध नहीं कर सकता। कोर्ट में भी कोई जाएगा तो मामला टिक नहीं पाएगा, क्योंकि सब कुछ संवैधानिक नियम-कायदों के तहत होगा।
जवाब: एक देश-एक चुनाव का मतलब एक दिन में चुनाव कराना नहीं है। चरण में आगे भी चुनाव होंगे। लोकसभा के साथ विधानसभा जोड़ दो तो कौन-सा ज्यादा मैन पावर लगाना पड़ेगा? दस प्रतिशत अतिरिक्त संसाधन लगाने पड़ेंगे। ईवीएम डबल हो जाएगी।
जवाब: लोकसभा और राज्यों के चुनाव साथ कराने से 10 से 20 प्रतिशत मतदान बढ़ जाएगा। अगर पंचायत और नगर निकायों का भी चुनाव साथ कराएंगे तो आंकड़ा 30 प्रतिशत जा सकता है। जहां-जहां चुनाव साथ होते हैं, वहां मतदान प्रतिशत बढऩे के उदाहरण हैं। बार-बार चुनाव से 5-6 लाख करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। आचार संहिता लगने से विकास कार्यों पर असर पड़ता है। शिक्षकों की ड्यूटी लगने से पढ़ाई बाधित होती है। बार-बार चुनाव की अनिश्चितता से इनवेस्टमेंट पर भी असर पड़ता है।
Published on:
18 Jun 2025 09:53 am