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पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड में 9 साल बाद आया फैसला, तीन लोग दोषी करार

Rajdev Ranjan Murder Case: मुजफ्फरपुर की विशेष सीबीआई अदालत ने वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के नौ साल फैसला सुनाते हुए तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है।

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विशेष न्यायाधीश ने सुनाया अहम फैसला (Photo source- Patrika)

विशेष न्यायाधीश ने सुनाया अहम फैसला (Photo source- Patrika)

Rajdev Ranjan Murder Case: बिहार के सीवान में वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के नौ साल बाद मुजफ्फरपुर की विशेष सीबीआई अदालत ने फैसला सुनाया है। कोर्ट ने शनिवार को तीन आरोपियों को दोषी ठहराया है। वहीं, तीन अन्य को बरी कर दिया। बता दें कि 13 मई, 2016 को एक प्रमुख हिंदी दैनिक के तत्कालीन ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की सीवान में हत्या कर दी गई थी।

सीवान में हुई थी हत्या

हमलावरों ने उन पर दो गोलियां चलाईं, इसके बाद मौके पर ही उनकी मौत हो गई है। हत्याकांड के बाद उनकी पत्नी आशा यादव ने सीवान टाउन पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। इस मर्डर का शक जल्द ही जेल में बंद आरजेडी के बाहुबली नेता और सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन पर गया। हालांकि बाद में अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे।

मुख्य आरोपी की कोविड-19 में हो गई थी मौत

बाद में यह मामला जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया गया। इसमें शहाबुद्दीन को छोड़कर सात आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किए गए थे। मुख्य आरोपी माने जाने वाले शहाबुद्दीन की कोविड-19 महामारी के दौरान मृत्यु हो गई। इस मामले में छह आरोपी शामिल थे - अजहरुद्दीन उर्फ ​​लड्डन मियां, रोहित कुमार सोनी, विजय कुमार गुप्ता, सोनू कुमार गुप्ता, राजेश कुमार और रिशु कुमार जायसवाल। वहीं, एक अन्य आरोपी को किशोर घोषित किया गया और उसके मामले की सुनवाई अलग से हुई।

सीबीआई ने 69 गवाहों से की पूछताछ

इस मामले में लगभग आठ साल की कार्यवाही के बाद सीबीआई ने 69 गवाहों से पूछताछ की और 111 साक्ष्य पेश किए गए। जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश-3 नमिता सिंह ने फैसला सुनाया। फैसले के अनुसार, अजहरुद्दीन उर्फ ​​लड्डन मियां, राजेश कुमार और रिशु कुमार जायसवाल को बरी कर दिया गया, जबकि विजय कुमार गुप्ता, सोनू कुमार गुप्ता और रोहित कुमार सोनी को दोषी पाया गया। तीनों दोषियों को जल्द सजा सुनाई जाएगी।

यह हाई-प्रोफाइल मामला जो कभी सीवान में शहाबुद्दीन के राजनीतिक प्रभाव से जुड़ा था, शुरुआत में पटना की विशेष अदालत (सांसद/विधायक मामले) में सुना गया था, जिसके बाद इसे मुजफ्फरपुर की सीबीआई अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया।