
Ramadan: मुस्लिम धर्मावलंबियों का पवित्र रमजान माह शुरू हो गया है। दिलचस्प है कि 2016 में रमजान के रोजे जून की तपन में थे और साल 2030 में रोजे दिसंबर की सिहरन में आएंगे। केवल रमजान ही नहीं मुस्लिम समाज के अधिकतर त्योहार हर बार अलग-अलग मौसम और अंग्रेजी कलेंडर के अलग-अलग महीनों में आते हैं। जानते हैं क्या है इसका कारण....
तमाम मुस्लिम त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मनाए जाते हैं। इसे हिजरी कैलेंडर कहा जाता है। हिजरी कैलेंडर चंद्रमा के अनुसार चलता है जिसकी औसत महीना 29.5 दिन का होता है जो चंद्रमा के एक चक्र को पूरा करने का समय है। ऐसे में हिजरी वर्ष के बारह महीनों में 354 या 355 दिन ही होते हैं।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के 365 या 366 दिन के मुकाबले हिजरी वर्ष में 10-11 दिन कम होने से रमजान, ईद, बकरीद, मोहर्रम और ईद मिलादुन्नबी हर साल अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से लगभग 10-11 दिन पहले आ जाते हैं। इससे अनेक बार त्योहार का मौसम बदल जाता है।
जी हां, दो कैलेंडर के 10-11 दिनों का अंतर साल-दर-साल जुड़ते-जुड़ते 30 दिन से ज्यादा हो जाता है कि एक ही ग्रेगोरियन वर्ष में दो बार एक ही मुस्लिम त्योहार आ सकता है। वर्ष 2030 में रमजान माह के रोजे दो बार आएंगे- एक बार जनवरी में और फिर दिसंबर में। पिछली बार ऐसा 1997 में हुआ था।
लगभग 32 वर्षों में यह चक्र एक बार पूरा हो जाता है यानी जो मुस्लिम त्योहार जिस महीने या मौसम में आता है उस तारीख के आसपास या उस मौसम में फिर 32 साल बाद ही आते हैं।
रमजान के माह में मुस्लिम लोग रोजे रखते है। इसके साथ ही कुरान की तिलावत और खुदा की इबादत करते हैं। रोजा मुसलमानों के पांच फर्जों में से एक है। इस महीने में मुसलमान इबादत करके अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं।
Updated on:
04 Mar 2025 08:55 am
Published on:
04 Mar 2025 08:51 am
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