
शिवहर विधानसभा सीट (Photo-Patrika)
Shivhar Assembly Seat: बिहार के उत्तरी क्षेत्र में स्थित शिवहर जिला न केवल राज्य का सबसे छोटा जिला है, बल्कि इसकी राजनीति भी उतनी ही अनोखी और चौंकाने वाली रही है। शिवहर विधानसभा सीट पर जनता ने कभी किसी पार्टी या उम्मीदवार पर लंबे समय तक भरोसा नहीं जताया। लगभग हर चुनाव में यहां से नया चेहरा विधानसभा पहुंचता है। यह परंपरा दर्शाती है कि शिवहर की जनता प्रत्याशी के कामकाज और व्यवहार को प्राथमिकता देती है, न कि जातीय या दलगत समीकरणों को।
शिवहर जिला तिरहुत डिवीजन के अंतर्गत आता है और इसे 6 अक्टूबर 1994 को सीतामढ़ी से अलग करके स्वतंत्र जिला बनाया गया था। यह जिला उत्तर और पूर्व में सीतामढ़ी, दक्षिण में मुजफ्फरपुर और पश्चिम में पूर्वी चंपारण से घिरा है। केवल 443 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस जिले की आबादी लगभग 6.56 लाख है, जिसमें पुरुषों की संख्या 3.46 लाख और महिलाओं की 3.09 लाख है। शिवहर में कुल पांच ब्लॉक—शिवहर, पिपराही, पुरनहिया, डुमरी कटसारी और तरियानी—हैं। जिले में 53 पंचायतें और 203 गांव शामिल हैं।
शिवहर को धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां स्थित बाबा भुवनेश्वर नाथ मंदिर एक अति प्राचीन शिव मंदिर है, जिसे द्वापर युग का माना जाता है। स्थानीय मान्यताओं और ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण एक ही पत्थर को तराश कर किया गया था। कोलकाता हाईकोर्ट के एक निर्णय और 1956 में प्रकाशित गजट में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। मंदिर के पास स्थित तालाब का निर्माण 1962 में छतौनी गांव के संत प्रेम भिक्षु ने करवाया था।
शिवहर विधानसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 3.14 लाख से अधिक है। 2020 के चुनाव में राजद के चेतन आनंद ने 36,686 वोटों से जीत हासिल की थी। उन्होंने जेडीयू के तत्कालीन विधायक मोहम्मद सरफुद्दीन को हराया था, जो 2015 में चुने गए थे। 2010 में यह सीट जेडीयू के पास गई थी जबकि उससे पहले 2005 में राजद ने जीत दर्ज की थी। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि शिवहर की जनता हर बार अपने विधायक को परखती है और असंतुष्टि होने पर बदलाव करने में देर नहीं लगाती।
2025 के आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है और सभी प्रमुख दल शिवहर में अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं। जनता किसे चुनती है, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतिहास यह साफ करता है कि शिवहर की राजनीति में स्थायित्व नहीं, बदलाव ही परंपरा रही है।
Published on:
27 Jul 2025 05:44 pm
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