
SIR मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई (Photo-IANS)
सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए चुनाव आयोग के प्रयास को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान SC ने स्पष्ट किया कि आधार को नागरिकता के निर्विवाद प्रमाण के रूप में नहीं माना जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि चुनाव आयोग के पास मतदाता के रूप में पंजीकरण के लिए उपयोग किए जाने वाले आवेदन पत्र, फॉर्म 6 में प्रविष्टियों की शुद्धता निर्धारित करने की अंतर्निहित शक्ति है।
पीठ ने कहा कि आधार का उद्देश्य सीमित है। मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई करते हुए पूछा, "आधार लाभ प्राप्त करने के लिए कानून द्वारा बनाया गया है। सिर्फ़ इसलिए कि किसी व्यक्ति को राशन के लिए आधार दिया गया है, क्या उसे मतदाता भी बनाया जाना चाहिए? मान लीजिए कोई पड़ोसी देश का निवासी है और मजदूरी करता है, तो क्या उसे वोट देने की अनुमति दी जानी चाहिए?"
वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने इस सुझाव को खारिज कर दिया कि चुनाव आयोग को एक "डाकघर" की तरह काम करना चाहिए तथा प्रत्येक फॉर्म 6 को स्वतः स्वीकार कर लेना चाहिए। पीठ ने पूछा, "आप कह रहे हैं कि चुनाव आयोग एक डाकघर है जिसे प्रस्तुत फॉर्म 6 को स्वीकार करना चाहिए और उसमें आपका नाम भी शामिल करना चाहिए।"
वहीं इस दौरान कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया आम मतदाताओं पर असंवैधानिक बोझ डालती है, जिनमें से कई को कागजी कार्रवाई में परेशानी हो सकती है और नाम हटाए जाने का खतरा भी हो सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह अभ्यास मूलतः लोकतंत्र को प्रभावित करता है।
वहीं पीठ ने कहा कि मतदाता सूची से किसी भी नाम को हटाने से पहले उचित सूचना दी जानी चाहिए। न्यायालय ने तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में एसआईआर को अलग-अलग चुनौती देने के लिए समय-सीमा भी निर्धारित की।
Published on:
27 Nov 2025 07:36 pm
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