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बिहार में SIR होगा रद्द! सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अगर यह बात सच निकली तो…

Bihar SIR Row: वोटर लिस्ट रीविजन के मुद्दे को लेकर विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। मंगलवार को भी विपक्ष ने संसद के बाहर एसआईआर को लेकर विरोध प्रदर्शन किया।

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भारत

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Ashib Khan

Aug 12, 2025

SIR मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई (Photo-ANI)

Bihar Voter List Row: बिहार में जारी एसआईआर को लेकर संसद से लेकर सड़क तक संग्राम जारी है। सुप्रीम कोर्ट में वोटर लिस्ट रीविजन को लेकर मंगलवार को सुनवाई हुई। इस दौरान एससी ने कहा कि यदि बिहार मतदाता सूची में अवैधता सिद्ध हो जाती है तो इसके परिणामों को सितंबर तक रद्द किया जा सकता है। वहीं SC की यह टिप्पणी विपक्ष के लिए सकारात्मक बात मानी जा रही है, क्योंकि SIR पर विपक्ष लगातार सवाल खड़े कर रहा है और संसद में भी इस मुद्दे पर बहस की मांग कर रहा है।

सड़क से संसद तक संग्राम जारी

वोटर लिस्ट रीविजन के मुद्दे को लेकर विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। मंगलवार को भी विपक्ष ने संसद के बाहर एसआईआर को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने सरकार और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। विपक्ष का कहना है कि भाजपा और चुनाव आयोग मिलकर वोट चोरी कर रहे हैं, जनता के अधिकार छीन रहे हैं। 

SC में हुई सुनवाई

एसआईआर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले में सुनवाई की। इस दौरान जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या एसआईआर का उपयोग फर्जी मतदाताओं को खत्म करने के लिए किया जा सकता है। इस पर याचिकाकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने जवाब दिया कि घर-घर जाकर जांच करने पर अधिकारी किसी भी घर में एक भी नया नाम नहीं ढूंढ पाते।

नोटबंदी का किया जिक्र

इस दौरान योगेन्द्र यादव ने नोटबंदी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कम से कम नोटबंदी के दौरान, भारतीय रिजर्व बैंक ने अधिसूचनाएं जारी की थीं। यादव के मुताबिक बिहार में एसआईआर फेल रहा है।

सिंघवी ने दी ये दलीलें

SIR के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यदि लोग संभावित रूप से वैध नागरिक हैं और उनका नाम पहले से ही मतदाता सूची में है, तो चुनाव आयोग इस धारणा को पलट नहीं सकता और सारा भार मतदाताओं पर नहीं डाल सकता। 

EC ने लोगों पर डाली जिम्मेदारी

उन्होंने कहा कि गहन पुनरीक्षण के नाम पर चुनाव आयोग ने अपनी नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्तिगत मतदाताओं पर डाल दी है और ऐसा विधानसभा चुनावों से पहले दो महीने की सीमित अवधि में किया जा रहा है।