
Strobilanthes callosa: दक्षिणी गुजरात में सह्याद्री पर्वतमाला की गोद में स्थित तापी जिला कई तरह की वन संपदा से परिपूर्ण है। क्षेत्र में कई संपदा तो ऐसी हैं, जिनका स्थानीय ग्रामीण और आदिवासी लंबे समय तक इंतजार करते हैं। स्ट्रोबिलैंथ्स कैलोसस (कारवी के फूल) भी ऐसी ही वनस्पति है, जो करीब दस वर्ष बाद बड़ी संख्या में उगी है। इस विशेष किस्म के फूलों का शहद उत्पादन में बड़ा महत्व है। इसी के चलते मधुमक्खी पालन केंद्र से जुड़े किसान और स्थानीय लोगों को इससे रोजगार भी मिला है। वन विभाग भी इनकी मदद कर रहा है। यह फूल अपने औषधीय गुणों के कारण खास है। किसान अशोक पटेल ने बताया कि सूरत और तापी जिले में 3 हजार से ज्यादा मधुमक्खी के बॉक्स रखे गए हैं। पटेल के पास 6 हजार मधुमक्खियों के बॉक्स और उनमें लगभग 20 करोड़ से ज्यादा मधुमक्खियां हैं।
सूरत जिला वन विभाग के डीसीएफ आनंदकुमार के मुताबिक, औषधीय गुणों से भरपूर फूलों के उपयोग के लिए मधुमक्खियों के बॉक्स रखवाए गए हैं। इन फूलों से मधुमक्खियां शहद का संग्रह करेगी। साथ ही इनका अन्य स्थलों पर परागण भी करेगी, जिससे यह फूल आसपास के क्षेत्रों में और अधिक मात्रा में उगेंगे। जंगली मधुमक्खी द्वारा एकत्र कारवी शहद अन्य किस्म के शहद की तुलना में अधिक गाढ़ा और गहरा रंग होता है और पेट की बीमारियों को दूर करने में उपयोग लिया जाता है।
यह फूल स्ट्रोबिलैन्थेस प्रजाति के हैं, जिसका वैज्ञानिक वर्णन पहली बार 19वीं सदी में किया गया था। इस प्रजाति की लगभग 350 किस्म पाई जाती है, जिनमें से कम से कम 46 किस्म भारत में मिलती है। स्ट्रोबिलैन्थेस कैलोसस के तने मजबूत होते हैं, जिनका उपयोग इसकी पत्तियों के साथ आमतौर पर स्थानीय आदिवासी अपनी झोपडिय़ों के निर्माण में छप्पर सामग्री के रूप में भी करते हैं।
औषधीय महत्व भी कारवी पौधे का उपयोग स्थानीय आदिवासी और ग्रामीण सूजन संबंधी विकारों के इलाज के लिए एक पारंपरिक औषधीय पौधे के रूप में करते हैं। कुचली हुई पत्तियां और इसका रस पेट की बीमारियों के लिए अचूक इलाज माना जाता है। यह पौधा वैज्ञानिक शोध का विषय है, जिसे देसी चिकित्सा में सूजन-रोधी और रोगाणुरोधी हर्बल दवा के रूप में उपयोगी माना जाता है।
Updated on:
30 Sept 2024 08:41 am
Published on:
30 Sept 2024 08:07 am
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