
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे द्वारा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणियों ने कानूनी और राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। दुबे ने आरोप लगाया था कि "सुप्रीम कोर्ट देश को अराजकता की ओर ले जा रहा है" और "मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना देश में हो रहे गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार हैं।" इन टिप्पणियों के बाद एक वकील ने अटॉर्नी जनरल से आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कॉन्टेम्प्ट) की कार्रवाई शुरू करने की मंजूरी मांगी है। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या रुख अपनाया और क्या हो सकता है आगे का घटनाक्रम।
20 अप्रैल, 2025 को बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई संजीव खन्ना पर निशाना साधते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रहा है और देश में धार्मिक युद्ध भड़का रहा है। उनकी यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता पर सवाल उठाने और राष्ट्रपति व राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय करने के फैसले के संदर्भ में आई थी। दुबे ने यह भी कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाना है तो संसद को बंद कर देना चाहिए।
इन बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और AIMIM ने इसे सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर हमला बताया। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने इसे "अपमानजनक" करार दिया, जबकि AAP की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेते हुए दुबे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट के एक वकील, अनस तनवीर, जो वक्फ अधिनियम मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक हैं, ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को पत्र लिखकर निशिकांत दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की अनुमति मांगी। पत्र में कहा गया कि दुबे की टिप्पणियां "बेहद अपमानजनक और खतरनाक रूप से उकसाने वाली" हैं। यह भी आरोप लगाया गया कि सांसद ने सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता और गरिमा पर हमला किया और जनता में असंतोष भड़काने की कोशिश की। यह याचिका अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15(1)(बी) के तहत दायर की गई है।
अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई औपचारिक बयान या स्वत: संज्ञान (सुओ मोटो) कार्रवाई शुरू नहीं की है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में अपनी गरिमा और स्वतंत्रता पर हमले को गंभीरता से लिया है। उदाहरण के लिए, 2024 में एक याचिका में पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का नाम शामिल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया था और याचिकाकर्ता को नाम हटाने का निर्देश दिया था।
निशिकांत दुबे के बयान पर मचे बवाल के बाद बीजेपी ने खुद को इससे अलग कर लिया। पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने 20 अप्रैल, 2025 को X पर पोस्ट कर कहा कि दुबे और एक अन्य बीजेपी सांसद दिनेश शर्मा की टिप्पणियां निजी हैं और पार्टी इनका समर्थन नहीं करती। नड्डा ने कहा, "बीजेपी इन बयानों को पूरी तरह खारिज करती है और दोनों नेताओं को भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से बचने का निर्देश दिया गया है।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि बीजेपी न्यायपालिका का सम्मान करती है और इसे लोकतंत्र का मजबूत स्तंभ मानती है।
विपक्ष ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बीजेपी "न्यायपालिका को धमकी दे रही है" और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसे बयानों पर रोक लगानी चाहिए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि बीजेपी सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने की कोशिश कर रही है, खासकर तब जब कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे मामलों में सरकार के खिलाफ फैसले दिए हैं। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे "बीजेपी की प्रॉक्सी हमला" करार दिया।
Published on:
21 Apr 2025 01:51 pm
बड़ी खबरें
View Allबिहार चुनाव
राष्ट्रीय
ट्रेंडिंग
