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हाईकोर्ट के जजों को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- ‘हम स्कूल प्रिंसिपल की तरह बर्ताव नहीं करना चाहते’

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाईकोर्ट (High Court) के जजों को कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ हाईकोर्ट के जज दिन में सिर्फ एक जमानत के मामले की सुनवाई करते हैं। यह उचित नहीं है। जनता की न्यायपालिका से कई अपेक्षाएं हैं।

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सुप्रीम कोर्ट। (फोटो- IANS)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाई कोर्ट (High Court) के कुछ जजों (judges) को कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ हाईकोर्ट जज अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट की। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वे ‘स्कूल प्रिंसिपल’ की तरह बर्ताव नहीं करना चाहते, लेकिन जजों को आत्म-प्रबंधन प्रणाली विकसित करनी होगी, ताकि फाइलें डेस्क पर लंबित न रहें।

न्यायपालिका से जनता को अपेक्षाएं हैं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई जज दिन-रात मेहनत कर मामलों का उत्कृष्ट निपटारा करते हैं, वहीं कुछ जज जमानत जैसे मामलों में भी एक दिन में केवल एक ही केस सुनते हैं, जो आत्ममंथन योग्य है। पीठ ने कहा कि न्यायपालिका से जनता की जायज अपेक्षाएं हैं, इसलिए व्यापक दिशा-निर्देश तय करना जरूरी है।

जजों के पास होनी चाहिए स्व-प्रबंधन की प्रणाली

जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि हर जज के पास खुद के परीक्षण का एक पैमाना होना चाहिए। उनके पास एक स्व-प्रंबधन प्रणाली होनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो कि उनके डेस्क पर फाइलों की ढ़ेर न लगे। पीठ ने कहा कि मान लीजिए कि कोई जज किसी आपराधिक अपील की सुनवाई कर रहा है, तो हम उससे एक दिन में 50 मामलों का फैसला करने की उम्मीद नहीं करते और एक दिन में एक आपराधिक अपील का फैसला करना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात होगी। लेकिन जमानत के मामले में, अगर कोई जज कहता है कि मैं एक दिन में सिर्फ एक जमानत मामले का फैसला करूंगा, तो उसे आत्मनिरीक्षण की जरूरत है।

सालों से रखा है फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों से जुड़ी अपीलों पर टिप्पणी की है। दरअसल, झारखंड हाईकोर्ट ने कुछ आजीवन और मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों के खिलाफ सालों से फैसला सुरक्षित रखा है। उनकी अपीलों पर फैसला नहीं सुनाया गया है। जस्टिस कांत ने कहा कि कुछ जजों की आदत होती है कि वे मामलों को अनावश्यक रूप से स्थगित कर देते हैं। यह जजों की छवि के लिए खतरनाक हो सकता है और पूर्व में कुछ जजों के साथ ऐसा हुआ भी है।