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Unnao Rape Case: कुलदीप सेंगर ‘लोक सेवक’ नहीं? दिल्ली हाईकोर्ट ने उम्रकैद सस्पेंड कर दे दी जमानत, जानिए बड़ी वजह

Suspended:दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्नाव रेप केस में दोषी कुलदीप सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया है। कोर्ट ने माना कि विधायक POCSO एक्ट के तहत 'लोक सेवक' नहीं है, इसलिए उन पर उम्रकैद वाली सख्त धाराएं लागू नहीं होतीं।

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भारत

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MI Zahir

Dec 25, 2025

Unnao Rape Case

उत्तर प्रदेश के उन्नाव में नाबालिग लड़की से बलात्कार मामले के आरोपी भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर। फोटो: AI Generated)

Public Servant: उत्तर प्रदेश के उन्नाव में आठ साल पहले एक नाबालिग लड़की के साथ हुए बलात्कार के मामले ने पूरे देश को हिला दिया था। इस मामले के मुख्य आरोपी (Unnao Rape Case Verdict 2025) पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को 2019 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन अब दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है। कोर्ट ने सेंगर की सजा को उनकी अपील लंबित रहने तक निलंबित (Sengar Life Sentence Suspended) कर दिया और उन्हें सशर्त जमानत (Kuldeep Sengar Bail News) दे दी। हालांकि, सेंगर अभी जेल से बाहर नहीं आएंगे, क्योंकि पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के दूसरे मामले में उन्हें 10 साल की सजा अलग से काटनी पड़ रही है।

पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत हो गई थी(Delhi High Court POCSO Ruling)

यह मामला साल 2017 का है, जब उन्नाव की एक नाबालिग लड़की ने कुलदीप सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया था। पीड़िता का अपहरण कर दुष्कर्म किया गया था। जब परिवार ने शिकायत करने की कोशिश की तो उन पर दबाव डाला गया। बाद में पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत हो गई थी। मामला इतना गंभीर हो गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच सीबीआई (CBI) को सौंपी गई और ट्रायल दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया। साल 2019 में ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को पॉक्सो (POCSO) एक्ट और आईपीसी ( IPC)की धाराओं के तहत दोषी ठहराया। कोर्ट ने उन्हें 'लोक सेवक' मानते हुए कड़ी सजा दी थी, क्योंकि अपराध के समय वे विधायक थे।

हाईकोर्ट ने सजा क्यों निलंबित की ? (Public Servant Definition MLA)

दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 23 दिसंबर 2025 को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने प्रथम दृष्टया माना कि कुलदीप सेंगर को पॉक्सो एक्ट की धारा 5(c) के तहत 'लोक सेवक' (Public Servant) नहीं माना जा सकता। इस धारा में लोक सेवक द्वारा नाबालिग पर हमला करने पर उम्रकैद जैसी कड़ी सजा देने का प्रावधान है। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट में लोक सेवक की परिभाषा 'भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम' से अलग है और विधायक इसमें स्पष्ट रूप से शामिल नहीं होते। इसलिए उन पर यह गंभीर धाराएं लागू नहीं होतीं।

न्यूनतम सजा पूरी कर चुके हैं सेंगर

कोर्ट ने पाया कि सेंगर नवंबर 2025 तक 7 साल 5 महीने जेल में काट चुके हैं। पॉक्सो एक्ट की सामान्य धारा 4 में न्यूनतम सजा 7 साल है, जो वे पूरी कर चुके हैं। चूंकि अपील की सुनवाई लंबी चल सकती है, इसलिए सजा निलंबित करना कोर्ट को उचित लगा। कोर्ट ने जमानत पर कई सख्त शर्तें लगाई हैं – पीड़िता के घर से 5 किलोमीटर दूर रहना, दिल्ली में ही निवास करना, पीड़िता या उसके परिवार को धमकी न देना और उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना।

पीड़िता और परिवार का दर्द

इस फैसले से पीड़िता और उसके परिवार को गहरा झटका लगा है। पीड़िता ने इसे अपने परिवार के लिए 'काल' बताया और कहा कि इससे उनकी सुरक्षा को खतरा बढ़ गया है। उन्होंने इंडिया गेट पर प्रदर्शन किया और राहुल गांधी से मुलाकात कर मदद मांगी। पीड़िता अब सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। कई सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी नेता भी इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक रसूख वाले लोगों को इस तरह राहत मिलना न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाता है।

इस मामले में अब आगे क्या होगा ?

सीबीआई ने भी फैसले का विरोध किया है और जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने की घोषणा की है। कुछ वकीलों ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है कि हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाए। पीड़िता की सुरक्षा पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर है, लेकिन परिवार का कहना है कि अब खतरा और बढ़ गया है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में जाएगा जहां अंतिम फैसला होगा।

कानूनी बहस और समाज पर असर

यह फैसला एक बड़ी कानूनी बहस छेड़ रहा है – क्या विधायक या चुने हुए जनप्रतिनिधि 'लोक सेवक' की श्रेणी में आते हैं? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक तकनीकी व्याख्या है, जिसका फायदा शक्तिशाली लोगों को मिल सकता है। दूसरी तरफ, कोर्ट ने 'अपील के अधिकार' और 'जेल में बिताए गए समय' को आधार बनाया है। समाज में यह सवाल उठ रहा है कि पीड़िताओं को न्याय कब मिलेगा? ऐसे मामलों में सुरक्षा और त्वरित सुनवाई (Fast-track trial) की जरूरत पर जोर बढ़ रहा है।