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Unnao Rape Case: ‘ऐसा कोई दरवाजा नहीं, जहां हमने…’, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कुलदीप सेंगर की बेटी ने क्या कहा?

उन्नाव रेप केस में कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई गई है, जिसमें सेंगर की उम्रकैद की सजा सस्पेंड की गई थी। सेंगर की बेटी ने सोशल मीडिया पर न्याय की गुहार लगाई है।

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भारत

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Mukul Kumar

Dec 29, 2025

कुलदीप सेंगर। (फोटो- ANI)

उन्नाव रेप केस के दोषी कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें बीजेपी के निष्कासित विधायक की उम्रकैद की सजा को सस्पेंड कर दिया गया था।

अब कुलदीप सेंगर की बेटी ने सोशल मीडिया पर एक खुले खत में न्याय की गुहार लगाई है। सेंगर की बेटी ने अपने एक्स पोस्ट में इशारा किया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जनता के गुस्से पर आधारित था।

मैं थक चुकी हूं- कुलदीप की बेटी

सेंगर की बेटी ने लिखा- मैं यह खत एक बेटी के तौर पर लिख रही हूं, जो थक चुकी है, डरी हुई है और धीरे-धीरे अपना विश्वास खो रही है। लेकिन फिर भी उम्मीद बनाए हुए है क्योंकि अब कहीं और जाने की जगह नहीं बची है।

इशिता सेंगर ने आगे कहा- आठ साल से, मेरे परिवार और मैंने इंतजार किया है। चुपचाप। सब्र से। यह मानते हुए कि अगर हम सब कुछ 'सही तरीके से' करेंगे, तो सच आखिरकार खुद सामने आ जाएगा।

उन्होंने लिखा- हमने कानून पर भरोसा किया। हमने संविधान पर भरोसा किया। हमने भरोसा किया कि इस देश में न्याय शोर, हैशटैग या जनता के गुस्से पर निर्भर नहीं करता है।

जान से मारने की धमकी मिली

इशिता ने आगे आरोप लगाया कि उसे रेप और जान से मारने की धमकियां मिलीं, जिससे वह चुप हो गईं, जबकि उन्हें संस्थानों पर भरोसा था।

उन्होंने लिखा- आज, मैं इसलिए लिख रही हूं क्योंकि वह भरोसा टूट रहा है। मेरे शब्द सुने जाने से पहले ही मेरी पहचान एक लेबल तक सीमित कर दी गई है- 'एक बीजेपी विधायक की बेटी।' जैसे कि इससे मेरी इंसानियत खत्म हो जाती है।

जैसे कि सिर्फ इसी वजह से मैं निष्पक्षता, गरिमा या बोलने के अधिकार की भी हकदार नहीं हूं। जिन लोगों ने मुझसे कभी मुलाकात नहीं की, एक भी दस्तावेज नहीं पढ़ा, एक भी कोर्ट रिकॉर्ड नहीं देखा, उन्होंने तय कर लिया है कि मेरी जिंदगी की कोई कीमत नहीं है।

उन्होंने अपने एक्स पोस्ट में आगे कहा- इन सालों में मुझे सोशल मीडिया पर अनगिनत बार कहा गया है कि मेरा रेप किया जाना चाहिए, मुझे मार दिया जाना चाहिए या सजा दी जानी चाहिए। यह नफरत काल्पनिक नहीं है।

यह रोजाना है। यह लगातार है। और जब आपको एहसास होता है कि इतने सारे लोग मानते हैं कि आप जीने के भी लायक नहीं हैं, तो यह आपके अंदर कुछ तोड़ देता है।

हमने विरोध प्रदर्शन नहीं किए- कुलदीप की बेटी

इशिता ने आगे लिखा- हमने चुप्पी इसलिए नहीं चुनी क्योंकि हम ताकतवर थे, बल्कि इसलिए क्योंकि हमें संस्थानों पर भरोसा था। हमने विरोध प्रदर्शन नहीं किए। हमने टेलीविजन डिबेट में चिल्लाया नहीं।

हमने पुतले नहीं जलाए या हैशटैग ट्रेंड नहीं किए। हमने इंतजार किया क्योंकि हमें विश्वास था कि सच को तमाशे की जरूरत नहीं होती। उस चुप्पी की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ी? हमारी गरिमा को टुकड़ों-टुकड़ों में छीन लिया गया है।

पिछले आठ सालों से हर दिन हमारा अपमान किया गया है, मजाक उड़ाया गया है और हमें अमानवीय बनाया गया है। हम आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से थक चुके हैं, एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस भागते रहे, चिट्ठियां लिखते रहे, फोन करते रहे, अपनी बात सुने जाने की भीख मांगते रहे।

ऐसा कोई दरवाजा नहीं, जहां हम नहीं गए

कुलदीप की बेटी ने आगे लिखा- ऐसा कोई दरवाजा नहीं था जिस पर हमने दस्तक न दी हो। ऐसा कोई अधिकारी नहीं था जिसके पास हम न गए हों।

ऐसा कोई मीडिया हाउस नहीं था जिसे हमने न लिखा हो। और फिर भी किसी ने नहीं सुना। इसलिए नहीं कि तथ्य कमजोर थे। इसलिए नहीं कि सबूतों की कमी थी। बल्कि इसलिए कि हमारा सच असुविधाजनक था। लोग हमें 'ताकतवर' कहते हैं।

सेंगर ने आगे लिखा- मैं आपसे पूछती हूं कि किस तरह की ताकत एक परिवार को आठ साल तक बेजुबान रखती है? किस तरह की ताकत का मतलब है कि आप चुपचाप बैठे रहें, एक ऐसे सिस्टम पर भरोसा करते रहें जो आपके अस्तित्व को स्वीकार करने को भी तैयार नहीं लगता, जबकि आपका नाम रोजाना कीचड़ में घसीटा जा रहा हो?

एक ऐसा डर जिसे जानबूझकर पैदा किया गया

कुलदीप की बेटी ने आगे लिखा- आज मुझे जो बात डराती है, वह सिर्फ अन्याय नहीं है, बल्कि डर है। एक ऐसा डर जिसे जानबूझकर पैदा किया गया है। एक ऐसा डर जो इतना जोरदार है कि जज, पत्रकार, संस्थान और आम नागरिक सभी चुप रहने के लिए मजबूर हैं।

एक ऐसा डर जिसे यह पक्का करने के लिए बनाया गया है कि कोई भी हमारे साथ खड़े होने की हिम्मत न करे, कोई भी हमारी बात सुनने की हिम्मत न करे, और कोई भी यह कहने की हिम्मत न करे, 'आइए तथ्यों को देखें।'

यह सब होते हुए देखकर मैं अंदर से हिल गई हूं। अगर सच्चाई को गुस्से और गलत जानकारी से इतनी आसानी से दबाया जा सकता है, तो मुझ जैसा इंसान कहां जाए? अगर दबाव और लोगों का उन्माद सबूतों और सही प्रक्रिया पर हावी होने लगे, तो एक आम नागरिक के पास सच में क्या सुरक्षा है?

मैं किसी को धमकी देने के लिए नहीं लिख रही- कुलदीप की बेटी

उन्होंने आगे कहा- मैं यह चिट्ठी किसी को धमकी देने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं यह चिट्ठी सहानुभूति पाने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं इसलिए लिख रही हूं क्योंकि मैं बहुत डरी हुई हूं और क्योंकि मुझे अब भी विश्वास है कि कोई, कहीं, इतना ध्यान जरूर देगा कि हमारी बात सुने।

उन्होंने आगे लिखा- हम कोई एहसान नहीं मांग रहे हैं। हम इसलिए सुरक्षा नहीं मांग रहे हैं कि हम कौन हैं। हम न्याय मांग रहे हैं क्योंकि हम इंसान हैं। कृपया कानून को बिना किसी डर के बोलने दें।

कृपया सबूतों की जांच बिना किसी दबाव के होने दें। कृपया सच्चाई को सच्चाई माना जाए, भले ही वह लोकप्रिय न हो। मैं एक बेटी हूं जिसे अब भी इस देश पर विश्वास है। कृपया मुझे इस विश्वास पर पछतावा न होने दें। सादर, एक बेटी जो अब भी न्याय का इंतजार कर रही है।