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BJP ने दक्षिण के सीपी राधाकृष्णन के ऊपर क्यों खेला दांव, 5 पॉइंट्स में समझें पूरा समीकरण

Vice President Election: प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन से मुलाकात की। पीएम मोदी ने एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने पर उन्हें अपनी शुभकामनाएं दीं।

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प्रधानमंत्री मोदी और सीपी राधाकृष्णन (Photo-IANS)

Vice President Election: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु के अनुभवी नेता सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर एक रणनीतिक दांव खेला है। यह कदम 2026 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) की दक्षिण भारत में पैठ बढ़ाने की कोशिश का हिस्सा है। राधाकृष्णन का चयन न केवल उनकी RSS पृष्ठभूमि और संगठनात्मक कौशल को दर्शाता है, बल्कि यह तमिलनाडु के सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने की रणनीति भी है। आइए, पांच बिंदुओं में समझते हैं कि BJP ने राधाकृष्णन पर क्यों दांव लगाया।

1 तमिलनाडु में 2026 विधानसभा चुनाव का लक्ष्य

तमिलनाडु में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों में BJP अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP का वोट शेयर 11% तक पहुंचा और NDA (AIADMK के साथ) का वोट शेयर 18.2% रहा। राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में चयन तमिलनाडु में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को राष्ट्रीय मंच पर लाकर मतदाताओं को लुभाने की रणनीति है। कोयंबटूर और कोंगु क्षेत्र में BJP-AIADMK गठबंधन पहले ही मजबूत प्रदर्शन कर चुका है और राधाकृष्णन की उम्मीदवारी इस क्षेत्र में गठबंधन की स्थिति को और मजबूत कर सकती है।

2 बढ़ता वोट शेयर और क्षेत्रीय प्रभाव

पिछले कुछ वर्षों में BJP ने तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति बढ़ाई है। 2019 में कोयंबटूर में BJP उम्मीदवार के. अन्नामलई ने 33% वोट शेयर हासिल किया था, जबकि AIADMK 17% पर सिमट गई थी। राधाकृष्णन, जो 1998 और 1999 में कोयंबटूर से सांसद रह चुके हैं, कोंगु क्षेत्र में मजबूत आधार रखते हैं। उनकी उम्मीदवारी से BJP इस क्षेत्र में अपनी पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश कर रही है, खासकर गाउंडर समुदाय के बीच, जो राज्य के 10% से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है।

3 कोयंबटूर का सियासी महत्व

राधाकृष्णन का कोयंबटूर से गहरा नाता है, जहां उन्होंने 1998 में 1.5 लाख और 1999 में 55,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। कोयंबटूर और कोंगु क्षेत्र में गाउंडर समुदाय का प्रभाव है और राधाकृष्णन, अन्नामलई, और AIADMK नेता एडप्पादी पलानीस्वामी इसी समुदाय से हैं। BJP इस साझा जातिगत पहचान का लाभ उठाकर 2026 में इस क्षेत्र से अधिक सीटें जीतने की रणनीति बना रही है। राधाकृष्णन की राष्ट्रीय छवि कोंगु क्षेत्र के मतदाताओं में गर्व की भावना जगा सकती है।

4 RSS को सियासी तरजीह

राधाकृष्णन 16 साल की उम्र से RSS के स्वयंसेवक रहे हैं और उनकी विचारधारा संघ परिवार से गहराई से जुड़ी है। उनकी उम्मीदवारी RSS के प्रभाव को दर्शाती है, खासकर तब जब BJP को हाल के वर्षों में संगठन के दबाव का सामना करना पड़ा है। तमिलनाडु में RSS की शाखाएं और स्वयंसेवक BJP के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं और राधाकृष्णन का चयन संगठन की वैचारिक प्रतिबद्धता को मजबूत करता है। यह कदम RSS को खुश करने के साथ-साथ तमिलनाडु में BJP के संगठनात्मक ढांचे को और मजबूत करेगा।

5 सामाजिक समीकरण साधने की रणनीति

राधाकृष्णन OBC गाउंडर समुदाय से हैं, जो तमिलनाडु के कोंगु क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली है। अन्नामलई को तमिलनाडु BJP अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद गाउंडर समुदाय में कुछ असंतोष था, जिसे राधाकृष्णन की उम्मीदवारी से शांत करने की कोशिश की जा रही है। उनकी साफ छवि और DMK नेताओं के साथ अच्छे संबंध, जैसे कि एमके स्टालिन के परिवार के साथ उनकी मुलाकात, उन्हें एक संतुलित नेता बनाते हैं जो सामाजिक समीकरणों को साध सकता है।

तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव

सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में चयन BJP की तमिलनाडु में 2026 विधानसभा चुनावों के लिए दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। यह कदम कोंगु क्षेत्र में गाउंडर समुदाय को लुभाने, RSS के प्रभाव को मजबूत करने और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को राष्ट्रीय मंच पर लाने की कोशिश है। NDA की संसदीय बहुमत के साथ राधाकृष्णन की जीत लगभग तय है, लेकिन इसका असली प्रभाव तमिलनाडु के मतदाताओं पर होगा।