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Bihar : तेजस्वी यादव की ‘कांग्रेस’ से करीबी मगर कन्हैया कुमार से दूरी, जानिए इनसाइड स्टोरी

Tejashwi Yadav Kanhaiya kumar: बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कांग्रेस से तो खूब प्यार जताते हैं, राहुल गांधी भी उन्हें बहुत अच्छे लगते हैं। लेकिन बिहार से ही ताल्लुक रखने वाले एक कांग्रेसी नेता से हमेशा दूरी बना कर चलते हैं, वो नेता हैं कन्हैया कुमार। जिनके साथ तेजस्वी यादव मंच साझा नहीं करते। आखिर ऐसा क्यों है? जानिए इसकी इनसाइड स्टोरी -

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Tejashwi Yadav Kanhaiya kumar : बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार के बीच दूरी कायम है। हर मौके पर कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले तेजस्वी यादव आज भी कन्हैया कुमार के साथ मंच साझा करने से गुरेज कर रहे हैं। इस बात की पुष्टि फिर से बुधवार को उस वक्त हुई जब पटना के बापू सभागार में प्रजापति समन्वय समिति की ओर से आयोजित कार्यक्रम के दौरान हुई जब इस कार्यक्रम का उद्घाटन तेजस्वी यादव को करना था, लेकिन इस कार्यक्रम में कन्हैया कुमार को भी बुलाया गया था। इस कारण से एन मौके पर तेजस्वी यादव ने दूरी बना ली। जिसके बाद इन बातों को और बल मिला।

तेजस्वी यादव के कार्यक्रम में नहीं आने की खबर फैलते ही मौके पर मौजूद लोगों के बीच यह गुफ्तगू होने लगी कि कन्हैया कुमार के आने के कारण तेजस्वी यादव ने इस कार्यक्रम से दूरी बना ली। इधर, तेजस्वी के कार्यक्रम से दूरी बनाए जाने के सवाल पर जब मीडियाकर्मियों ने मौके पर मौजूद RJD कोटे के मंत्री इसरायल मंसूरी से तेजस्वी यादव के इस कार्यक्रम में नहीं आने की वजह जाननी चाही तो इसरायल मंसूरी सवाल को टालते नजर आए। क्यूंकि इस सवाल का जवाब उनके पास भी नहीं था। वहीं कन्हैया भी इस सवाल से बचते नजर आए और यह कह कर चुप्पी साध ली कि शांति से कार्यक्रम का संचालन होने दीजिए।

कन्हैया से लालू-तेजस्वी को क्यों है दिक्कत?

तेजस्वी यादव कन्हैया कुमार के साथ मंच साझा करने के इच्छुक क्यों नहीं हैं? अगर आपके मन में यह सवाल उठता है तो बता दें कि, 2019 लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार ने बेगूसराय से भाजपा के गिरिराज सिंह के खिलाफ वामपंथी उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था। वामपंथी नेताओं ने तब आरजेडी से अनुरोध किया था कि वह इस सीट से अपना उम्मीदवार न उतारे।

लेकिन, आरजेडी द्वारा वहां से उम्मीदवार खड़ा किए जाने के बाद कन्हैया कुमार चुनाव हार गए। ऐसा इसलिए हुआ कि महागठबंधन के वोट कन्हैया कुमार और आरजेडी प्रत्याशी के बीच बंट गए। जिसका फाएदा गिरिराज सिंह को हुआ। उसी समय से इन दोनों के बीच तल्खी शुरू हो गई थी। ये हुआ सिक्का का एक पहलू, अब दूसरी पर आते हैं।

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लालू को डर कहीं कन्हैया बिहार में तेजश्वी के लिए चुनौती न पेश करे

कन्हैया कुमार काफी पढ़े-लिखे और बोलने में काफी तेज-तरार हैं। वही तेजस्वी यादव महज 9वीं पास हैं और कई मौकों पर यह देखा गया है कि वह बोलने में असहज हो जाते हैं।धीरे-धीरे वह अपनी इन कमियों पर काम कर रहे हैं। लेकिन अभी भी कन्हैया कुमार की तुलना में वह कई मामलों में बहुत पीछे हैं।

ऐसे में अगर कन्हैया कुमार की अपना पैर बिहार की राजनीति में जमा लेते हैं तो सबसे तगड़ी चुनौती वाह तेजस्वी यादव के लिए पेश करेंगे। इस बात का भान लालू यादव को पूरी तरह से है। इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कन्हैया कुमार को हराने के लिए बेगूसराय से आरजेडी का कैंडिडेट खड़ा कर दिया था। ताकि कन्हैया कुमार के राजनीतिक कैरियर में हार का एक दाग लग जाए।

वहीं दूसरी ओर कन्हैया कुमार मुस्लिम वोटरों में भी काफी लोकप्रिय हैं। ऐसी स्थिति में अगर बिहार में कांग्रेस की स्थिति अच्छी होती है तो आरजेडी का सबसे तगड़ा वोट बैंक खिसक कर कांग्रेसमें चला जाएगा तो आरजेडी के लिए यह खतरा बन सकता है। क्योंकि मुस्लिम वोट के जरिए ही आरजेडी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन पाई है। इन्हीं सब डरों के चलते लालू यादव नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव एक मंच पर आए।

क्योंकि जब दोनों एक मंच पर आएंगे और जनता को संबोधित करेंगे तो पता चल जाएगा कि कौन कितने पानी में है, किस में कितनी काबिलियत है और किसको उस अनुसार क्या मिला है। क्योंकि अगर तेजस्वी यादव लालू यादव के पुत्र ना होते तो उन्हें कितने लोग पहचानते यह तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन कन्हैया कुमार ने अपनी खुद की पहचान बनाई है। अपना खुद का फैन बेस तैयार किया है, जो बहुत बड़ी बात है।

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