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दक्षिण भारत के राज्य क्यों कर रहे परिसीमन का विरोध! जानिए, इसके पीछे की वजह?

South India opposes delimitation: देश में जैसे ही परिसीमन की बात होती है, दक्षिण भारत में इसके खिलाफ विरोध में आवाज उठनी शुरू हो जाती है।

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 Why South India opposes delimitation What is the reason behind this

केंद्र सरकार द्वारा लाया गया महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद भी 2029 के चुनाव से पहले लागू नहीं होगा। इसके पीछे कारण है बिल में किया गया प्रावधान। दरअसल, केंद्र सरकार ने जब लोकसभा में इस बिल को पेश किया तो उसमें इस बात को रखा कि ये बिल 2026 में परिसीमन के बाद ही लागू हो पाएगा, और जैसे ही परिसीमन की बात होती है।

दक्षिण भारत में इसके खिलाफ विरोध में आवाज उठनी शुरू हो जाती है। इसके पीछे क्या कारण है और दक्षिण भारत के नेता से लेकर आम लोग परिसीमन का विरोध क्यों कर रहे हैं? इससे पहले जान लेते है कि क्या होता है परिसीमन?

क्या होता है परिसीमन?


देश की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक टिप्पणीकार तारा कृष्णास्वामी कहती हैं, "परिसीमन कुछ और नहीं बल्कि यह पता लगाना है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में एक व्यक्ति को कितने लोगों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए।” यह इसलिए किया जाता है कि लोकसभा की सीटें राज्यों को उनकी आबादी के अनुपात में आवंटित हों- या दूसरे शब्दों में, यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक व्यक्ति के वोट का मूल्य समान रहे, चाहे वो किसी भी राज्य के हो।

अभी तक कितनी बार हुआ परिसीमन?

आजादी के बाद से अब तक 4 बार परिसीमन हुआ है, जो कि साल 1952, साल 1963, साल 1973 और 2002 में हुआ था। आखिरी बार जब 2002 में परिसीमन हुआ, तब निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था यानी 70 के दशक से लोकसभा सदस्यों की संख्या 543 ही है। संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि देश में लोकसभा सांसदों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं होगी।

हालांकि, संविधान ये भी कहता है कि हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद होना जरूरी है। किसी राज्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या कितनी होगी? इसका काम परिसीमन आयोग करता है। परिसीमन आयोग का गठन साल 1952 में किया गया था।


तमिलनाडु के CM ने क्या कहा?

महिला आरक्षण विधेयक का स्वागत करते हुए, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने होने वाले परिसीमन को "दक्षिण भारतीय राज्यों के सिर पर लटकी हुई तलवार" करार दिया। इसके साथ ही, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह सुनिश्चित करने को कहा, उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को नुकसान नहीं हो।

क्या है जनसंख्या और परिसीमन का कनेक्शन?

बता दें कि 70 के दशक में जब देश में जनसंख्या नियंत्रण प्रोग्राम आया तो दक्षिण भारत ने तो उसे अपना लिया। लेकिन उत्तर भारत ने उतनी गंभीरता से नहीं लिया। इसका परिणाम ये हुआ कि दक्षिण में जहां लोगों की जनसंख्या में कमी आई। वहीं, उत्तर भारत में जनसंख्या बढ़ गई, जिसका फायदा लोकसभा सीटों के रूप में उत्तर भारत को मिला।


दक्षिण भारत के नेताओं को किस बात का डर?

भारत के प्रतिनिधित्व का उभरता संकट' शीर्षक वाली 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, कम आबादी वाले राज्यों का वर्तमान में लोकसभा में अधिक प्रतिनिधित्व है और यदि 2026 के बाद उनका परिसीमन किया जाता है, तो उन्हें कई सीटों का नुकसान होगा। स्टडी के अनुसार, 2026 के बाद बिहार और उत्तर प्रदेश में अकेले 21 सीटें बढ़ेंगी, जबकि केरल और तमिलनाडु की 16 सीटें कम हो जाएंगी।

लेकिन परिसीमन का एक और छिपा हुआ परिणाम है, और वह है लोकसभा में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या में बदलाव। कृष्णास्वामी बताते हैं कि चूंकि दक्षिणी राज्यों में एससी और एसटी समुदायों के बीच टीएफआर में भी कमी आई होगी, इसलिए लोकसभा में उनकी संख्या भी प्रभावी रूप से बदल जाएगी।

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