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Manipur Assembly Election 2022: AFSPA को लेकर फिर उठा सियासी शोर, क्या चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा यह स्पेशल एक्ट

मणिपुर में विधानसभा चुनाव के पहेल AFSPA पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है. कांग्रेस ने कहा है कि अगर वह शासन में लौटती है तो वह इस कानून को हटा देगी.

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AFSPA in Manipur Election: मणिपुर में चुनावों को लेकर तैयारी जोरो पर है. यहां चुनाव प्रचार के दौरान पूर्वोत्तर में विकास की कहानी के किस्सों का जिक्र लगातार हो रहा है. लेकिन अब चुनाव में मणिपुर को लेकर एक स्पेशल एक्ट का भी जिक्र होने लगा है. हाल में ही नागालैंड में हुई हिंसा के बाद वहां से AFSPA कानून को हटाने की बात शुरू हो गई. इसे लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम और नागालैंड के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग भी की थी. नागालैंड सरकार के अनुसार राज्य में AFSPA को हटाने के लिए समिति बना दी गई है. जिसकी सिफारिशों के आधार पर राज्य में AFSPA को वापस लिया जा सकता है.

बीजेपी के लिए मुश्किल बना मणिपुर में AFSPA मुद्दा
मणिपुर में सता पर काबिज बीजेपी ने कांग्रेस के 15 साल के शासन को खत्म किया था. अब मणिपुर और उत्तर पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा उनके राज्यों से AFSPA हटाने की मांग हो चुकी है. दरअसल, कांग्रेस ने इस मुद्दे को बेहतर तरीके से पकड़ा है और अपने चुनावी कार्यक्रम में यह ऐलान कर रही है कि अगर राज्य में उनकी पार्टी सत्ता में वापस आती है तो वह तत्काल रूप से AFSPA को निरस्त कर देगी. कांग्रेस द्वारा चुनावी रैलियों में यह वादा करने से अब यह मुद्दा राज्य में चर्चा का एक बड़ा विषय बन गया है. मणिपुर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ने बताया कि कांग्रेस शासन ने 7 विधानसभा क्षेत्रों से AFSPA हटा दिया, अगर कांग्रेस 2022 में सत्ता में वापस आती है तो पहली कैबिनेट बैठक में मणिपुर के पूरे राज्य से अफस्पा को तत्काल और पूर्ण रूप से हटाने पर निर्णय लिया जाएगा.

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क्या है AFSPA कानून
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट संसद द्वारा पारित एक कानून है, जिसे वर्ष 1958 में लागू किया गया था. इस कानून को भारत के अशांत क्षेत्रों में लागू किया जाता है. मतलब जिस राज्य में राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन कानून व्यवस्था संभालने में सक्ष्म नहीं होती है वहां पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों को भेजा जाता है. जब यह कानून बना था तब इसे अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड के ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सैन्‍य बलों को इस कानून के जरिए स्पेशल पावर दी गई थीं. हालांकि कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून जम्मू-कश्मीर में भी लागू किया गया.

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