मुकेश सहारिया, नीमच. नीमच जिला मुख्यालय पर आजादी के बाद से एक ऐसी समस्या ने जन्म लिया था जो नासूर बन चुकी है। या यूं कहें कि जनप्रतिनिधियों ने इसे नासूर बना दिया। जो समस्या स्थानीय स्तर पर हल की जा सकती थी उसे इतना उलझा दिया गया कि ‘अब न निगलते बन रहा और न ही उगलतेÓ। वर्षों से इस क्षेत्र में निवास कर रहे या हजारों वर्गफीट जमीन के मालिक बंगला-बगीचा क्षेत्र में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष करने को विवश हैं। अब एक नया विवाद प्रभारी मंत्री के बयान के बाद खड़ा गया है। इस बीच नगरपालिका परिषद नीमच का वर्ष १९५६ का एक पत्र सामने आया है जिससे नई बहस छिड़ जाएगी।
32 वर्षों में सर्वाधिक भाजपा रही काबिज, समस्या बनी नासूर
बंगला बगीचा समस्या आजादी के बाद से ही हैं, लेकिन इसने विकराल रूप नीमच नगर सुधार न्यास (टीआईटी) के भंग होने के बाद लिया। इसे समस्या को जन्म लिए ३२ वर्ष हो चुके हैं। इन ३२ वर्षों में से २२ वर्ष भाजपा ने प्रदेश में शासन किया और कांग्रेस ने १० वर्ष। ३२ वर्षों में नीमच से भाजपा के विधायक २७ वर्ष रहै। वर्तमान में भी भाजपा के ही विधायक हैं। कांग्रेस के विधायक मात्र ५ साल रहे। इसी प्रकार ३२ में से २७ साल सांसद भी भाजपा के रहे, कांग्रेस की सांसद मात्र ५ साल रहीं। भाजपा के विधायक स्वर्गीय खुमानसिंह शिवाजी १२ वर्ष विधायक रहे। वर्तमान विधायक १४ वर्ष विधायक रहे। इस समयावधि में नीमच जिले के ही तीन वर्षों तक मुख्यमंत्री भी रहे जिनका निवास नीमच भी हैं। इन ३२ वर्षों में केंद्र में कांग्रेस केवल १५ साल रही, जबकि भाजपा और अन्य दल १७ वर्ष सत्ता में रहे और आज भी हैं। नीमच नगरपालिका में ३२ वर्षों में कांग्रेस के व्यक्ति २० वर्षों तक नपाध्यक्ष के पद पर रहे। शेष समय भाजपा और भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासक रहे। इस समयावधि में नीमच नगरपालिका परिषद में भाजपा पार्षदों बहुमत रहा था, जबकि कांग्रेस को पार्षदों का बहुमत नहीं मिला था।
पूर्व सीएम सखलेचा ने शुरू कराई थी कार्रवाई
नीमच की आज नासूर बन चुकी बंगला-बगीचा समस्या के निराकरण के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्रकुमार सकलेचा ने सबसे पहल की थी। सीएम सखलेचा को नपा नीमच के एक वरिष्ठ भाजपा पार्षद (अब दिवंगत) ने जानकारी देकर कार्रवाई के लिए अनुरोध किया था। तत्कालीन सीएम के निर्देशों के बाद तत्कालीन आइएएस (एसडीओ के पद पर नियुक्त) ने कार्रवाई कर बंगला-बगीचे पर कार्रवाई करते हुए सम्पूर्ण जमीनों का नगरपालिका के आधिपत्य में माना था। बंगला बगीचा समस्या को समाधान करने का दावा विगत ३२ वर्षों में कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों (नगरपालिका से लेकर संसद तक) ने किया। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा और ज्वलंत सवाल यह है कि जो समस्या स्थानीय नगरपालिका क्षेत्राधिकार की थी, उसे राज्य शासन को हल करने के लिए क्यों भेजा गया। वर्ष १990 के पूर्व चुनी हुई नीमच नगरपालिका ने तत्कालीन पार्षदों की समस्या को हल करने के लिए एक कमेटी बनाई थी। इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के पार्षद थे। कमेटी ने बहुत ही सकरात्मक और मान्य सुझाव बंगला बगीचा समस्या के समाधान के लिए प्रस्तावित किए गए थे। उसको क्यों कचरे की टोकरी में फेंक दिया गया। आज भी उस पर कोई भी चर्चा नहीं कर रहा हैं, जबकी उस कमेटी के सदस्य आज भी राजनीति में हैं। बंगला बगीचा समस्या का राजनीतिक रूप से तुलनात्मक अध्ययन करना आज आवश्यक हो गया है। ऐसा किया जाता है तो ‘दूध का दूध और पानी का पानीÓ स्पष्ट रूप से हो जाएगा। यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि ३२ वर्ष पूर्व क्या बंगले के निवासी इतने प्रताडि़त थे जितने इस समयावधि में हुए हैं। व्यक्तिगत रूप से बंगला-बगीचा क्षेत्र के रहवासियों से चर्चा करें तो मालूम पड़ेगा कि किस राजनीतिक दल के जनप्रतिनिधियों ने कितनी गंभीरता से इस समस्या को हल करवाने में रुचि दिखाई।
जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से नासूर बना दी समस्या
कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. सम्पत स्वरूप जाजू ने बताया कि बंगला बगीचा का इतिहास और समस्या के निदान के लिए पिछले ३ दशकों में नाममात्र प्रयास हुए हैं। पिछले ८ साल से ट्रिपल इंजन (केंद्र, राज्य और स्थानीय नगर पालिका में) की सरकार है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगना लाजमी है। पिछले कुछ वर्षों में बंगला बगीचा के तथाकथित समाधान का श्रेय लेकर जनप्रतिनिधियों ने जश्न तक मना लिया था। मुख्यमंत्री शिवराजजी का अभिनंदन तक कर दिया गया था। वास्तविकता में आज भी यह समस्या मुंहबाहे खड़ी है। डॉ. जाजू ने इस समस्या पर कुछ सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है नपा में जो प्रशासक बैठे थे वे भाजपा की सरकार द्वारा ही बैठाए गए थे और नियंत्रित थे। यह समस्या करीब 45 वर्ष पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरेंद्रकुमार सखलेचा के कारण पैदा हुई। बंगले बगीचे केंटोनमेंट बोर्ड के अंतर्गत आते थे। नगरपालिका परिषद आजादी के कई वर्षों बाद बनी। मध्यप्रदेश में कई और जगह भी केंटेनमेंट बोर्ड थे। उनके आधिपत्य की जमीनों का विवाद सुलझे कई वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन नीमच की बंगला बगीचा समस्या का समाधान आज तक नहीं होना जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता का जीता जागता प्रमाण है। बंगला बगीचा समस्या तब और गहराई जब नीमच सुधार न्याय को भ्रष्टाचार और अवैध जमीनों के आवंटन के कारण भंग कर नगरपालिका में विलय कर दिया गया। एक समय था जब सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में नीमच शहर एकमात्र सब डिविजन था जहां सरकार की एजेंसियों ने जितनी रहवासी कॉलोनियों विकसित की मध्यप्रदेश के किसी और सबडिविजन नहीं की गईं उस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकारें थीं। नीमच में जमीनों के आसमान छूते भाव विगत दो दशकों में बढ़े हैं। विगत दो दशकों में नीमच में वैध और अवैध कॉलोनियों जिन लोगों ने बसाई ऐसे 90 प्रतिशत लोग विशेष राजनीतिक विचारधारा से जुड़े लोग हैं। टीआईटी के समय केवल दो या तीन ही कॉलोनियां विकसित हुई थी। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि वर्ष 1990 के चुनाव के बाद नीमच में निवास बनाकर रहने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा के बावजूद बंगला बगीचा समस्या समाधान नहीं कर पाए थे, जबकि वर्ष 1990 के चुनाव के समय उनके निकटम व्यक्ति उस समय इस समस्या के लिए भूख हड़ताल तक पर बैठे थे। स्वर्गीय पटवा की सरकार बनने और नीमच में विधायक स्वर्गीय शिवाजी के रहते दोनों ने कभी बंगला बगीचा की कमेटी के प्रस्ताव पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। परिणाम स्वरूप यह समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और आज उसने विकराल रूप ले लिया है।