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गाजरघास के सेवन से पशुुओं को होती है यह परेशानी जो है घातक

अस्थमा व एलर्जी के मरीजों के लिए पीड़ादायक है गाजरघास

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नीमच

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Mukesh Sharaiya

Nov 13, 2022

गाजरघास के सेवन से पशुुओं को होती है यह परेशानी जो है घातक

 इस तरह खाली प्लाटों में फैल रही है गाजरघास।

नीमच. गाजरघास मनुष्यों और फसलों के लिए तो हानिकारक है ही सबसे अधिक अस्थमा, चर्मरोग व सांस से जुड़ी बीमारियों के मरीजों के लिए भी परेशानी का कारण है। गाजरघास से कई प्रकार की एलर्जी भी होती है। गाजरघास के समर्थ में आने भर से शरीर पर इसका असर दिखाई देने लगता है।

फूल आने से पहले नष्ट करना आवश्यक
कृषि वैज्ञानिक डा. एसएस सारंगदेवोत ने बताया कि गाजरघास को चटक चांदनी, गंधी बूटी, पंथारी आदि के नाम से भी जाना जाता है। यह शाकीय पौधा है। एक पौधे से हजारों बीज पैदा होते हैं, जो इस खरपतवार के फैलने में सहायक होते हैं। पत्ते गाजर या गुलदावरी जैसे होते हैं। पत्तियां कटावदार होती हैं। इसमें फूल सफेद रंग के होते हैं। पौधे में फूल जल्दी आ जाते हैं और सात-आठ महीने तक खिले रहते हैं। गाजरघास के नियंत्रण के लिए फूल आने से पहले इसको काटकर या रसायनिक दवा का छिड़काव कर नष्ट किया जाना अतिआवश्यक है। जिला मुख्यालय पर ही मैदान, खाली पड़े प्लाट, सड़क किनारे, खेल मैदानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, आदि स्थानों पर बड़ी मात्रा में गाजरघास ने साम्राज्य स्थापित कर रखा है।

गाजरघास से एक्जिमा, एलर्जी, दमा की शिकायत
डा. सारंगदेवोत ने बताया कि गाजरघास न केवल फसलों बल्कि मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी एक गंभीर समस्या है। इस खरपतवार द्वारा खाद्यान्न फसलों की पैदावार में लगभग 40 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है। इस खरपतवार के लगातार संपर्क में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि जैसी बीमारियां होती हैं। पशुओं द्वारा गाजरघास खाने से उनके दूध में कड़वाहट आने लगती है।

इस तरह कर सकते हैं गाजरघास नष्ट
गाजरघास का नियंत्रण करने के लिए किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि शाकनाशियों के प्रयोग से इस खरपतवार पर नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है। इन शाकनाशी रसायनों में एट्राजिन, डाइयूरॉन, मेट्रिब्यूजिन, 2, 4-डी ग्लायफोसेट व मेटसल्फ्यूरॉन प्रमुख है। गैर फसलीय क्षेत्रों में इस रसायनों की मात्रा निम्न रूप से लगती है। गाजरघास को नष्ट करने के लिए एट्राजिन डाइयूरॉन १.५-३ किग्रा. प्रति हेक्टेयर, डाइयूरॉन 1.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर, मेट्रीब्यूजिन 0.3 से 0.5 प्रतिशत (3 से 5 ग्राम प्रति लीटर पानी) ग्लायफोसेट 1-1.5 प्रतिशत (10-15 मिली प्रति लीटर पानी) और मेटसल्फ्यूरॉन 6 ग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग किया जा सकता है।
- डॉ. सारंगदेवोत, कृषि वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र नीमच