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तकनीक का कमाल, दो सैटेलाइट की मदद से वैज्ञानिकों ने बना दिया कृत्रिम सूर्यग्रहण

21 करोड़ डॉलर के इस मिशन का नाम प्रोबा-तीन रखा गया है और इसने अभी तक 10 सफल सूर्य ग्रहण बना लिए हैं।

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नई दिल्ली. प्रकृति को समझने के लिए इंसान नैसर्गिक खगोलीय घटनाओं तक को कृत्रिम रूप में दे रहा है। पेरिस एयर शो में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कृत्रिम सूर्य ग्रहण की तस्वीरें जारी की हैं। सूर्य ग्रहण के इस प्रयोग के लिए दो सैटेलाइटों को सटीक ढंग से सूर्य के सामने लाया गया। इन सैटेलाइटों को 2024 में छोड़ा गया था और मार्च 2025 से इन्हें कई बार सूर्य के सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। ये पृथ्वी से कई हजार किलोमीटर ऊपर एक-दूसरे से 492 फीट दूर उड़ रहे हैं। कृत्रिम सूर्य बनाते समय इनमें से एक चांद की तरह सूर्य को ब्लॉक कर देता है और दूसरा अपने टेलीस्कोप से सूर्य के बाहरी वायुमंडल कोरोना का अध्ययन करता है। जुलाई से इस पर वैज्ञानिक प्रयोग शुरू होंगे। 21 करोड़ डॉलर के इस मिशन का नाम प्रोबा-तीन रखा गया है और इसने अभी तक 10 सफल सूर्य ग्रहण बना लिए हैं। रॉयल ऑब्जर्वेटरी ऑफ बेल्जियम के आंद्रे जूकोव ने बताया कि इनमें से सबसे लंबा ग्रहण पांच घंटों तक रहा।

कैसे बनाया कृत्रिम सूर्यग्रहण
ग्रहण के समय कोरोना एक मुकुट या रोशनी के प्रभामंडल जैसा बना देता है। पांच फीट से भी छोटे दोनों सैटेलाइटों के उडऩे की सूक्ष्मता एक मिलीमीटर से कम होना चाहिए, यानी नाखून जितनी। इनको सही दिशा देने के लिए जीपीएस नेविगेशन, स्टार टैकर, लेजर और रेडियो लिंक का सहारा लिया जाता है।

200 ग्रहण बनाए जाएंगे
जुकोव ने बताया प्राथमिक नतीजे उत्साहजनक हैं। यह अविश्वसनीय था। उनका अनुमान है कि पूरे मिश्यान में करीब 200 ग्रहण बनाए जाएंगे, यानी हर हफ्ते औसत दो ग्रहण। इसस वैज्ञानिकों को अध्ययन के लिए 1000 घंटे से भी ज्यादा पूर्व सूर्य ग्रहण की स्थितियां मिलेंगी। इससे ग्रहण के अध्ययन का ज्यादा समय मिलेगा, क्योंकि सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ ही मिनट के लिए पूर्ण ग्रहण होता है, जब चांद सटीक स्थिति में धरती और सूर्य के बीच आ जाता है।