महाराष्ट्र में शिंदे सरकार ने जहां बुधवार को 15 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा, वहीं अगले दिन गुरुवार को कैबिनेट बैठक कर ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर की सीमा 8 लाख से बढ़ाकर 15 लाख करने का प्रस्ताव भी पास किया है। इन दोनों प्रस्तावों पर केंद्र को अंतिम निर्णय लेना है. राज्य की जिन जातियों को ओबीसी में शामिल करने की तैयारी है, उनमें बड़गुजर, सूर्यवंशी गूजर, कपेवार, तेलंगा आदि शामिल हैं। इन जातियों की आबादी करीब 10 लाख बताई जाती है। एक आंकड़े के मुताबिक, राज्य में 38 प्रतिशत से अधिक ओबीसी मतदाता हैं। राज्य में मराठों को ओबीसी में शामिल करने करने की लंबे समय से मांग उठती रही है। आंदोलन भी कई बार हो चुके हैं। ऐसे में मराठा को छोड़कर अन्य 15 जातियों को ओबीसी में शामिल करने के मायने तलाशे जा रहे हैं। माना जा रहा है कि जिस तरह से भाजपा ने हरियाणा में गैर जाट राजनीति के जरिए सफलता पाई, उसी तरह से महाराष्ट्र में गैर मराठा राजनीति के जरिए पार्टी एक बड़े वोटबैंक को पाले में लाना चाहती है।
दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा नेतृत्व एनडीए को करारा झटका लगा था। 48 सीटों में कांग्रेस नेतृत्व महाविकास अघाड़ी को जहां 30 सीटें मिली थीं, वहीं एनडीए को सिर्फ 17 सीटों से संतोष करना पड़ा था, जिसमें से भाजपा के खाते में सिर्फ 9 सीट आई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में एनडीए को 23 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। जिसके बाद से भाजपा राज्य के जातीय समीकरणों को साधने में जुटी है।