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सोशल मीडिया पर वीडियो या स्टेटस डालना गुनाह नहीं…हाईकोर्ट ने रद कर दी याचिका, जानें क्या थी शिकायत?

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई करते हुए जमानत निरस्त करने के लिए नियम समझाएं हैं। इसके साथ आरोपी की जमानत जारी रखते हुए शिकायतकर्ता की याचिका खारिज कर दी।

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Celebrating on social media after getting bail is not crime says Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट।

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसमें शिकायतकर्ता ने एक आरोपी पर जमानत मिलने के बाद सोशल मीडिया पर जश्न मनाने का आरोप लगा दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए साफ किया है कि किसी आरोपी द्वारा जमानत मिलने के बाद सोशल मीडिया पर खुशी जाहिर करना या वीडियो पोस्ट करना अपने आप में जमानत रद्द करने का आधार नहीं बन सकता। अदालत ने कहा कि जब तक ऐसे पोस्ट या वीडियो में शिकायतकर्ता को धमकाने, डराने या न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की मंशा स्पष्ट रूप से न झलकती हो, तब तक इन्हें संदेह की नजर से नहीं देखा जा सकता।

यह निर्णय जस्टिस रविंदर दुदेजा ने जफीर आलम द्वारा दायर एक याचिका पर सुनाते हुए दिया। इस याचिका में जफीर आलम ने मनीष नामक आरोपी की जमानत रद्द करने की मांग की थी। मामला नरेला इंडस्ट्रियल एरिया पुलिस स्टेशन का है, जिसमें मनीष पर आईपीसी की धारा 436 (आगजनी), 457 (घुसपैठ), 380 (चोरी) और 34 (साझा आपराधिक मंशा) के तहत केस दर्ज है।

शिकायतकर्ता ने क्या लगाए थे आरोप?

जफीर आलम का आरोप था कि जमानत मिलने के बाद मनीष और उसके साथियों ने सोशल मीडिया पर हथियारों के साथ वीडियो डाले, अप्रत्यक्ष धमकियां दीं और इलाके में डर का माहौल बनाया। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि यह सब जमानत की शर्तों का उल्लंघन है और इसका उद्देश्य उन्हें डराना है। उन्होंने यह भी कहा कि 12 जून 2025 को सह-आरोपी को उनके घर के बाहर देखा गया था, जिससे उनकी सुरक्षा को खतरा महसूस हुआ। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि इन आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस या प्रत्यक्ष सबूत पेश नहीं किए गए। न तो कोई वीडियो क्लिप अदालत में जमा की गई और न ही किसी पुलिस रिपोर्ट का उल्लेख हुआ जिसमें धमकी की पुष्टि हो।

जमानत के बाद जश्न मनाना गुनाह नहीं

अदालत ने कहा कि जमानत मिलना किसी व्यक्ति के लिए राहत का क्षण होता है और इस खुशी को सोशल मीडिया पर साझा करना स्वाभाविक है। जस्टिस दुदेजा ने कहा, “सिर्फ कुछ स्क्रीनशॉट्स या स्टेटस अपडेट्स को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि उनका उद्देश्य शिकायतकर्ता को डराना या धमकाना था।” कोर्ट ने यह भी कहा कि जमानत रद्द करने के लिए ठोस और असाधारण परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, जैसे आरोपी द्वारा न्याय प्रक्रिया में दखल देना, गवाहों को धमकाना या प्रभावित करना, जमानत की शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन करना। इनमें से कोई भी परिस्थिति इस मामले में साबित नहीं हुई।

सबूतों की कमी में याचिका खारिज

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि शिकायतकर्ता ने न तो किसी पुलिस थाने में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई और न ही कोई ऐसा सबूत पेश किया जिससे यह सिद्ध हो सके कि मनीष की सोशल मीडिया गतिविधियों से उन्हें प्रत्यक्ष तौर पर खतरा या डर महसूस हुआ। इस कारण अदालत ने माना कि यह याचिका कयासों और अनुमानों पर आधारित है। न्यायालय ने कहा कि केवल सोशल मीडिया पर जमानत का जश्न मनाना या सामान्य पोस्ट डालना किसी अपराध या जमानत की शर्तों के उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आता। अतः मनीष की जमानत रद्द करने का कोई ठोस आधार नहीं बनता।

पूरा मामला क्या है?

दरअसल, मनीष पर आरोप है कि उसने अपने साथियों के साथ मिलकर नरेला इंडस्ट्रियल एरिया में एक फैक्ट्री में घुसपैठ कर आगजनी और चोरी की थी। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे अदालत से जमानत मिल गई। जमानत के बाद उसके सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो और पोस्ट सामने आए, जिनमें वह दोस्तों के साथ जश्न मनाते दिखाई दिया। इन्हीं पोस्ट को आधार बनाकर शिकायतकर्ता ने यह कहते हुए याचिका दायर की कि आरोपी धमकी भरा माहौल बना रहा है। अंततः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा “सोशल मीडिया पर खुशी व्यक्त करना किसी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का हिस्सा है, जब तक कि उसमें अपराध या धमकी की नीयत न हो।” अदालत ने याचिका को सबूतों के अभाव में खारिज करते हुए मनीष की जमानत बरकरार रखी।