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दिल्ली की हवा को क्या प्रदूषित कर रहा? सर्दी आगमन से पहले प्रदूषण ट्रैक सिस्टम एक्टिव

Decision Support System: भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे द्वारा विकसित DSS मॉडल पता लगाता है कि हवा में मौजूद सूक्ष्म कण पदार्थ यानी PM2.5 और PM10 किन स्रोतों से आ रहे हैं।

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before winter air pollution monitor tracker Decision Support System restarted in Delhi

दिल्ली में सर्दियों से पहले प्रदूषण मॉनीटरिंग सिस्टम सक्रिय।

Decision Support System: दिल्ली में सर्दियों के आगमन के साथ वायु प्रदूषण पर निगरानी और नियंत्रण की कवायद तेज हो गई है। इस दिशा में राजधानी में एक बार फिर वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु निर्णय सहायता प्रणाली (Decision Support System) DSS को सक्रिय कर दिया गया है। यह प्रणाली शहर में प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों की पहचान करने और उनके दैनिक योगदान का अनुमान लगाने में मदद करती है।

क्या है DSS और कैसे काम करता है?

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे द्वारा विकसित DSS एक उन्नत संख्यात्मक मॉडल पर आधारित प्रणाली है। यह मॉडल पता लगाता है कि हवा में मौजूद सूक्ष्म कण पदार्थ यानी PM2.5 और PM10 किन स्रोतों से आ रहे हैं। साथ ही, यह यह भी अनुमान लगाता है कि यदि किसी विशेष स्रोत से उत्सर्जन कम किया जाए तो वायु गुणवत्ता पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा।

ताजा आंकड़े क्या बताते हैं?

5 अक्टूबर को जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, परिवहन क्षेत्र (यातायात) दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदानकर्ता बना हुआ है। यह PM2.5 के कुल स्तरों में 16.96% हिस्सेदारी रखता है। इसके बाद आवासीय उत्सर्जन (4.28%) और औद्योगिक स्रोत (3.11%) का स्थान आता है। दिलचस्प बात यह है कि फिलहाल खेतों में पराली जलाने का प्रदूषण में योगदान बहुत कम सिर्फ 0.22% है। यह आंकड़ा VIIRS सैटेलाइट उपकरण से प्राप्त किया गया है, जो खेतों में आग और अन्य सतही परिवर्तनों की निगरानी करता है।

DSS डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल

हालांकि DSS राजधानी में प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करने का फिलहाल एकमात्र परिचालन ढांचा है, लेकिन इसकी सटीकता को लेकर कुछ चिंताएं बनी हुई हैं। IITM के एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह प्रणाली अभी 2021 में तैयार किए गए उत्सर्जन डेटा पर आधारित है। इसका मतलब है कि दिल्ली में पिछले चार सालों में हुए बदलाव जैसे वाहनों की संख्या, उद्योगों की गतिविधियां या ईंधन पैटर्न में बदलाव DSS के मौजूदा आंकड़ों में पूरी तरह शामिल नहीं हैं।

वायु गुणवत्त प्रबंधन आयोग ने किया था निलंबित

इसी वजह से पिछले साल वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने DSS को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था। हालांकि अब इसे फिर से सक्रिय किया गया है, क्योंकि दिल्ली में प्रदूषण स्रोतों की रियल-टाइम पहचान के लिए यही एकमात्र कार्यशील तंत्र है। दूसरी ओर, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) ने खुद एक रियल-टाइम स्रोत विभाजन अध्ययन शुरू करने का ऐलान किया था, लेकिन उसने अभी तक उस परियोजना को दोबारा शुरू नहीं किया है। IITM का कहना है कि अधिक सटीक अनुमान के लिए नवीनतम उत्सर्जन क्षेत्रों की जानकारी जरूरी है। साथ ही एक नई सूची तैयार की जा रही है, जिसे जल्द DSS में शामिल किया जाएगा।

DSS से मिलने वाले संकेत

DSS 10 किलोमीटर के ग्रिड अंतराल पर आधारित मॉडल है, जो अगले पाँच दिनों (120 घंटे) तक के लिए प्रदूषण का पूर्वानुमान तैयार करता है। इसके जरिए दिल्ली और आसपास के 19 जिलों से होने वाले उत्सर्जन का विश्लेषण किया जाता है। साथ ही, यह बताता है कि दिल्ली के भीतर आठ प्रमुख उत्सर्जन क्षेत्रों से आने वाले प्रदूषण का स्तर कितना है और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने जैसी गतिविधियाँ दिल्ली की हवा को किस हद तक प्रभावित कर रही हैं।

पूर्वानुमान प्रणाली की प्रभावशीलता

ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) के अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली की वायु गुणवत्ता चेतावनी प्रणाली (AQEWS) ने 2023-24 की सर्दियों के दौरान 92 में से 83 बार और 2024-25 के मौसम में 58 में से 54 बार गंभीर वायु प्रदूषण की घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाया। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि DSS को साल भर चालू रखा जाना चाहिए ताकि पूरे वर्ष प्रदूषण के स्रोतों पर नज़र रखी जा सके। फिलहाल यह केवल सर्दियों में सक्रिय रहता है, जब प्रदूषण का स्तर चरम पर होता है।

क्यों खास है दिल्‍ली में DSS सिस्टम?

इस प्रणाली की खासियत यह है कि यह आग की घटनाओं, ईंधन उपयोग और मौसम संबंधी आंकड़ों को जोड़कर अगले तीन दिनों तक दिल्ली की वायु गुणवत्ता का अनुमान लगाने में सक्षम है। पिछली सर्दियों में DSS ने पराली जलाने, पटाखों और अन्य मौसमी कारकों के योगदान का भी तुलनात्मक विश्लेषण किया था। साधारण शब्दों में कहें तो दिल्ली का DSS इस समय प्रदूषण से निपटने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण तकनीकी उपकरणों में से एक है, जो डेटा आधारित निर्णय लेने में सरकार और एजेंसियों को वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है।