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हराम का माल लेकर आई है, कितनों से…युवक को भारी पड़ी ये टिप्पणी, वकील को कोर्ट में मिली फटकार

Tis Hazari Court: दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने युवक की टिप्पणी को अमर्यादित माना और टिप्पणी करने वाले युवक को दोषी करार दिया। अदालत ने कहा “हराम शब्द ऐसा नहीं है जो केवल सामान या संपत्ति के संदर्भ में प्रयोग होता हो। यह शब्द एक मेहनती और ईमानदार महिला की शीलता पर सीधा आघात करता है और यह उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए पर्याप्त है।”

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Tis Hazari Court: हराम का माल लेकर आई है, कितनों से...युवक को भारी पड़ी ये टिप्पणी, वकील को कोर्ट में मिली फटकार

दिल्‍ली की तीस हजारी कोर्ट ने युवक को महिला के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने का दोषी पाया। (फोटोः सोशल मीडिया)

Tis Hazari Court: दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि 'हराम' जैसे शब्द का प्रयोग किसी महिला के सम्मान और शीलता को ठेस पहुंचा सकता है, विशेषकर तब जब यह संदर्भ अपमानजनक हो। अदालत ने यह टिप्पणी भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए की, जिसमें एक व्यक्ति पर एक महिला को अपमानित करने और उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप था। तीस हजारी कोर्ट का यह फैसला समाज में लैंगिक समानता और महिलाओं की सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक मील का पत्थर माना जा सकता है।

पहले जानिए क्या था मामला?

यह मामला एक व्यक्ति द्वारा एक महिला पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी से जुड़ा था। आरोपी ने कथित तौर पर महिला से कहा, “हराम का माल लेकर आ गई है, कितनों से… आई है।” यह कथन न केवल अशोभनीय था, बल्कि इसमें महिला के चरित्र पर सीधा आक्षेप किया गया था। महिला ने इस बारे में शिकायत दर्ज कराई। जिसके बाद मामला अदालत में पहुंचा।

मुख्य महान्यायिक दंडाधिकारी (जेएमएफसी) करणबीर सिंह ने मामले की सुनवाई करते हुए साफ कहा कि ‘हराम’ शब्द का प्रयोग केवल किसी वस्तु के गलत तरीके से अर्जित होने को दर्शाने के लिए नहीं, बल्कि यह अपमानजनक रूप में भी किया जाता है। उन्होंने कहा, “हराम शब्द ऐसा नहीं है जो केवल सामान या संपत्ति के संदर्भ में प्रयोग होता हो। यह शब्द एक मेहनती और ईमानदार महिला की शीलता पर सीधा आघात करता है और यह उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए पर्याप्त है।”

सीजेएम ने बताई अमर्यादित शब्द की परिभाषा

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने बताया कि भले ही बचाव पक्ष ने इस तर्क को रखा कि अभियोजन पक्ष ने किसी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की, लेकिन शिकायतकर्ता की गवाही सुसंगत, विश्वसनीय और दृढ़ थी। अदालत ने इस बात को खास महत्व दिया कि शिकायतकर्ता ने अपने बयान में कोई बदलाव नहीं किया और उसने सीआरपीसी की धारा 164 के अंतर्गत दिए गए बयान को पूरी तरह कायम रखा।

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जज ने कहा कि “कितनों से… आई है” जैसे शब्द न केवल महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि यह उसके चरित्र पर आक्षेप करते हैं। ऐसे शब्दों का सीधा संकेत यह है कि महिला अविवेकपूर्ण और असंयमी है, जो सामाजिक और नैतिक रूप से अस्वीकार्य है। अदालत ने माना कि ऐसे शब्द किसी भी महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकते हैं और समाज में उसकी छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

शब्दों का चयन मर्यादित होना जरूरी

इन सभी तथ्यों और कानूनी तर्कों के आधार पर अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 509 (किसी महिला की मर्यादा का अपमान करने हेतु शब्द, संकेत या कार्य) के तहत दोषी करार दिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि भाषा का चयन सामाजिक मर्यादाओं के भीतर रहकर होना चाहिए और सार्वजनिक रूप से किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाना कानूनन अपराध है।