15 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

एक घंटे की दलीलों-नजीरों के बाद लगी महुआ के निष्कासन पर मुहर

- 'पैसे के बदले प्रश्न' को ही समर्पित हो गया लोकसभा का पूरा दिन

2 min read
Google source verification
एक घंटे की दलीलों-नजीरों के बाद लगी महुआ के निष्कासन पर मुहर

एक घंटे की दलीलों-नजीरों के बाद लगी महुआ के निष्कासन पर मुहर

नई दिल्ली। एक तरफ संसदीय परम्पराओं व सदन की गरिमा का तर्क तो दूसरी ओर नियम-कायदों की दलीलों के साथ प्राकृतिक न्याय का सवाल....बीच बीच में शोर शराबा। लोकसभा में शुक्रवार दोपहर लगभग एक घंटे तक चले इस दृश्य के बीच 'पैसे के बदले प्रश्न' मामले में तृणमूल कांग्रेस की सदस्य महुआ मोइत्रा की सांसदी खत्म करने के प्रस्ताव पर ध्वनिमत से मुहर लग गई।

नया संसद भवन पहली बार गवाह बना अनुचित आचरण पर किसी सांसद के निष्कासन का और पूरा दिन सिर्फ एक इसी मसले के नाम समर्पित हो जाने का। वैसे एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट पेश होने से पहले ही सदन में गर्माहट नजर आई। प्रश्नकाल तक नहीं हो सका। पहले दोपहर 12 बजे और फिर दोपहर 2 बजे तक कार्यवाही स्थगित की गई।

सदन की कार्यवाही शुक्रवार को तीसरी बार शुरू हुई तो स्पीकर ओम बिरला ने आरम्भिक वक्तव्य के बाद नियम 316 ई 2 के तहत महुआ मामले में चर्चा की अनुमति दी। विपक्ष चाहता था कि चर्चा के लिए समय दिया जाए। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि 106 पेज की रिपोर्ट व एनेक्चर्स समेत 495 पेज की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए तीन चार दिन का समय मिलना चाहिए। कांग्रेस के मनीष तिवारी ने भी कहा कि वकील के तौर पर कई बार उन्हें अचानक बहस करनी पड़ती है, लेकिन पहली बार उन्हें पढ़े बिना बहस करनी पड़ रही है।

व्हिप जारी करने पर सवाल

तिवारी ने इस मामले में सभी दलों की ओर से व्हिप जारी करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि मामला किसी की सदस्यता पर फैसला करने का है और व्हिप जारी करना ठीक वैसे ही है जैसे कि जज को कहा जाए कि आपको यही फैसला करना है। तिवारी ने नियम 316 के हवाले से कहा कि समिति सदस्य को दोषी ठहरा सकती है, दंड नहीं सुना सकती। अभियुक्त को मौका दिए बिना फैसला प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। भाजपा की हिना गावित व अपराजिता सारंगी ने समिति की सिफारिश को उचित ठहराया।

महुआ को नहीं मिला मौका

तृणमूल कांग्रेस की ओर से सुदीप बंदोपाध्याय व अन्य ने पार्टी की ओर से महुआ को मौका देने का अनुरोध किया, लेकिन संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि साल 2005 के कैश फॉर क्वेरी मामले में भी रिपोर्ट पेश होने वाले दिन ही 10 सांसदों को सदन में मौका दिए बिना निष्कासित कर दिया गया था। स्पीकर ने व्यवस्था दी कि पूर्व में स्थापित परिपाटी के मुताबिक महुआ को मौका नहीं दिया जा सकता। पार्टी की ओर से कल्याण बनर्जी ने अनुच्छेद 182 व दसवीं अनुसूचि समेत कई कानूनी दलीलें देते हुए कहा कि निष्कासन का प्रस्ताव संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। जदयू के गिरधारी यादव व नेशनल कॉन्फ्रेंस के हसनैन मसूदी ने भी निष्कासन प्रस्ताव का विरोध किया।

पंद्रह साल बाद फिर निष्कासन

लगभग 15 साल बाद किसी सांसद को सदन की सदस्यता से निष्कासित किया गया है। इससे पहले 2008 में लोकसभा के भाजपा सांसद बाबू भाई कटारा की मानव तस्करी के मामले में सदस्यता गई थी तो 2005 में 'पैसे के बदले प्रश्न' के स्टिंग ऑपरेशन के बाद लोकसभा के दस व राज्यसभा के एक सदस्य को सांसदी गंवानी पड़ी थी।