नई दिल्ली

ग्लेशियर पिघलने से ज्वालामुखी विस्फोटों का खतरा बढ़ा

जलवायु परिवर्तन : गोल्डश्मिट कॉन्फ्रेंस में पेश शोध में वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

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Jul 08, 2025

वाशिंगटन. जलवायु परिवर्तन के कारण पिघल रहे ग्लेशियर न सिर्फ समुद्र का जलस्तर बढ़ा रहे हैं, दुनियाभर में ज्वालामुखी विस्फोटों का खतरा भी बढ़ा रहे हैं। एक नए शोध के मुताबिक ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखी ज्यादा विस्फोटक रूप से फट सकते हैं। इससे जलवायु परिवर्तन और गंभीर हो सकता है।
प्राग में आयोजित गोल्डश्मिट कॉन्फ्रेंस में मंगलवार को पेश शोध में बताया गया कि दुनियाभर में 245 सक्रिय ज्वालामुखी ग्लेशियरों के नीचे या उनके पांच किलोमीटर के दायरे में मौजूद हैं। इनमें अंटार्कटिका, रूस, न्यूजीलैंड और उत्तरी अमरीका जैसे क्षेत्र शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने दक्षिणी चिली के छह ज्वालामुखियों, विशेष रूप से मोचो-चोशुएंको ज्वालामुखी का अध्ययन किया और पाया कि ग्लेशियरों के पिघलने से इन ज्वालामुखियों की गतिविधियां बढ़ सकती है। अमरीका के विस्कॉन्सिन-मेडसन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता पाब्लो मोरेनो येगर ने बताया कि ग्लेशियर ज्वालामुखियों के विस्फोटों की मात्रा दबाते हैं, लेकिन इनके पिघलने से ज्वालामुखी ज्यादा बार फट सकते हैं।

मैग्मा परतों पर दबाव कम होने के कारण…
शोध में बताया गया कि ग्लेशियरों का भारी वजन पृथ्वी की सतह और इसके नीचे की मैग्मा परतों पर दबाव डालता है। यह दबाव ज्वालामुखी गतिविधियों को नियंत्रित रखता है। जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो यह दबाव कम हो जाता है। इससे मैग्मा और गैसें फैलने लगती हैं। ज्वालामुखी के नीचे दबाव बढ़ता है, जो विस्फोटों का कारण बन सकता है। आइसलैंड में यह प्रक्रिया पहले देखी जा चुकी है।

घटाना होगा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जहां ग्लेशियर और ज्वालामुखी एक साथ मौजूद हैं। अंटार्कटिका, रूस, न्यूजीलैंड और उत्तरी अमेरिका में ज्वालामुखी गतिविधियों की निगरानी बढ़ानी होगी। साथ ही, जलवायु परिवर्तन की रफ्तार घटाने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना जरूरी है, ताकि ग्लेशियरों का पिघलना भी धीमा हो।

Published on:
08 Jul 2025 11:57 pm
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