
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महरौली पुरातत्व पार्क में स्थित 13वीं सदी की आशिक अल्लाह दरगाह और सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह सहित अन्य ऐतिहासिक धार्मिक संरचनाओं में किसी भी नए निर्माण या मरम्मत कार्य पर रोक लगा दी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ उस याचिका पर सुनवाई की। जिसमें याचिकाकर्ता जमीर अहमद जुमलाना ने पुरातत्व पार्क के भीतर स्थित धार्मिक स्थलों को ध्वस्त होने से बचाने की अपील की थी। अदालत ने कहा कि लोग अवैध रूप से अतिक्रमण कर व्यापारिक गतिविधियां शुरू कर देते हैं। इसके साथ ही, एएसआई को निर्देश दिया गया है कि वह साइट का प्लान तैयार करे ताकि भविष्य में किसी भी तरह के अतिक्रमण को रोका जा सके।
वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की स्टेटस रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि वहां स्थित एक ऐतिहासिक स्मारक लगभग 700 साल पुराना है। इस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने टिप्पणी करते हुए कहा कि लोग अवैध रूप से अतिक्रमण कर व्यावसायिक गतिविधियां शुरू कर देते हैं। उन्होंने ASI को निर्देश दिया कि साइट प्लान तैयार किया जाए ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण रोका जा सके। वहीं, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि कौन सी संरचनाएं हाल ही में बनी हैं और कौन सी प्राचीन हैं।
एक वकील ने तर्क दिया कि ये स्मारक संरक्षित घोषित नहीं किए गए हैं, इसलिए यदि इनका जीर्णोद्धार किया जाता है, तो इसमें कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। हालांकि, बेंच ने स्पष्ट किया कि किसी भी जीर्णोद्धार के लिए मौजूदा कानूनों के तहत अनुमति आवश्यक होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “ASI ने अंतरिम स्टेटस रिपोर्ट पेश की है। मूल संरचना की स्थिति का पता लगाकर उसका सत्यापन किया जाना आवश्यक है। 28 अप्रैल को इस संबंध में सूची तैयार की जाएगी। ASI को आगे की स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, और संबंधित पक्ष अपनी आपत्तियां या प्रस्तुतियां दर्ज कर सकते हैं। वर्तमान स्थल पर किसी भी प्रकार का नया निर्माण नहीं होना चाहिए।”
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने पहले बताया था कि महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर धार्मिक महत्व की दो संरचनाएं मौजूद हैं, जहां मुस्लिम श्रद्धालु प्रतिदिन आते थे। इनमें आशिक अल्लाह दरगाह और सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह शामिल हैं। ASI ने यह भी बताया कि शेख शहीबुद्दीन (आशिक अल्लाह) की कब्र पर एक शिलालेख मौजूद है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि इसका निर्माण वर्ष 1317 ईस्वी में किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है, "पुनर्स्थापना और संरक्षण के दौरान किए गए संरचनात्मक संशोधनों और परिवर्तनों ने इस स्थल की ऐतिहासिकता को प्रभावित किया है।" ASI ने बताया कि यह मकबरा पृथ्वीराज चौहान के किले के पास स्थित है और प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत 200 मीटर के विनियमित क्षेत्र के भीतर आता है। इसलिए, किसी भी मरम्मत, नवीनीकरण या निर्माण कार्य के लिए सक्षम प्राधिकारी से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है।
एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है, “दोनों इमारतों का अक्सर दौरा किया जाता है। श्रद्धालु अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आशिक दरगाह पर दीपक जलाते हैं। वे बुरी आत्माओं और अपशगुन से मुक्ति पाने को चिल्लागाह जाते हैं। यह स्थान एक धर्म विशेष की धार्मिक भावना और आस्था से भी जुड़ा हुआ है।”
याचिकाकर्ता जमीर अहमद जुमलाना ने 8 फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना की अध्यक्षता वाली धार्मिक समिति इस मामले पर विचार कर सकती है। जुमलाना ने तर्क दिया कि यह समिति किसी संरचना की प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व का निर्धारण करने के लिए उपयुक्त मंच नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में जुमलाना ने कहा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने ऐतिहासिक महत्व का आकलन किए बिना अतिक्रमण हटाने के नाम पर संरचनाओं को ध्वस्त करने की योजना बनाई थी।
Published on:
28 Feb 2025 06:05 pm
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