
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल रूट पर स्वदेशी तकनीक से बनाई जा रही हैं सुरंगें
देहरादून. हिमालय के कच्चे या युवा मिट्टी वाले शिवालिक श्रेणी के कम पथरीले पहाड़ों में प्रकृति व पर्यावरण के अनुकूल सुरंग बनाने की स्वदेशी तकनीक खोजी गई है। पहले पहाड़ों में सुरंग एनएटीएम तकनीक से बनाई जाती थी, लेकिन अब इंजीनियरों ने हिमालयन टनल मैथड को ईजाद किया है। इस तकनीक का पहली बार उत्तराखंड में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक से 125 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन में 104 किलोमीटर सुरंगें बननी हैं।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि सुरंग में स्थिरता लाने के लिए पारंपरिक डिजाइन को बदल कर अर्ध दीर्घवृत्ताकार बनाया है। यानी पहाड़ के दबाव को ही सुरंग की स्थिरता का कारक बनाया है। उन्होंने कहा, 'हम कहते हैं कि पहाड़ महाराज, हमको थोड़ा रास्ता दे दो।'
भारतीय तकनीक पर शोध पत्र तैयार
रेलवे सूत्रों के अनुसार अब तक ऑस्ट्रिया एवं स्विट्जरलैंड की डिजाइन और तकनीक को दुनिया में सबसे श्रेष्ठ माना जाता था, लेकिन कम चट्टान एवं अधिक मिट्टी वाले पर्वतीय क्षेत्र में भारत की हिमालयन टनल मैथड की उन देशों में भी प्रशंसा हो रही है। इस विधि पर शोध पत्र भी तैयार किया गया है। इसे कई बड़े देशों ने साझा करने का अनुरोध किया है। सुरंग बनाने की इस तकनीक का सड़क और अन्य अवसंरचना प्रोजेक्ट में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
दो साल में चलने लगेंगी गाडिय़ां
यह परियोजना सितंबर 2020 में शुरू की गई थी। रेलवे ने दिसंबर 2025 तक रेल संचालन का लक्ष्य रखा है। दो साल में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग की दूरी रेल मार्ग से आधी हो जाएगी। ऋषिकेश से 2 घंटे में कर्णप्रयाग व ४.३० घंटे में बद्रीनाथ पहुंच सकेंगे। यह दूरी तय करने में सड़क मार्ग से आठ घंटे लगते हैं।
प्रोजेक्ट में 17 सुरंगों का होगा निर्माण
प्रोजेक्ट में 17 सुरंगों, 13 सहायक सुरंगों, पांच बड़े पुल, 13 मध्यम पुल एवं 34 छोटे पुल बनाए जा रहे हैं। सबसे बड़ी सुरंग की लंबाई 14.58 किलोमीटर है। परियोजना में रेलवे स्टेशनों की संख्या 12 होगी। सत्रह प्रमुख पुलों पर काम चल रहा है।
जम्बो मशीनों का हो रहा इस्तेमाल
प्रबंधक रविकांत के अनुसार पहाड़ मिट्टी के होने से सुरंग का काम धीरे होता है। टनल बोरिंग मशीन की जगह जम्बो मशीनों से सुरंग बनाई जा रही है। सुरंग का प्रोफाइल ड्रॉ करने के बाद उसकी लाइन से बाहर 12-12 फुट तक पाइप डालते हैं। उनमें कंक्रीट भरते हैं। इससे भूस्खलन की आशंका खत्म हो जाती है। फिर नीचे से रास्ता बनाया जाता है।
Published on:
29 May 2023 12:11 am
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