23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

आज से विक्रम संवत 2080 शुरू, वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है भारतीय काल गणना

शुभ शुरुआत : भारतीय कालगणना के आधार पर बदले दुनिया के कैलेंडर  

3 min read
Google source verification
आज से विक्रम संवत 2080 शुरू, वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है भारतीय कालगणना

आज से विक्रम संवत 2080 शुरू, वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है भारतीय कालगणना

जयपुर. देवी दुर्गा के 9 रूपों की उपासना के साथ आज 22 मार्च से हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2080 की शुरुआत हो गई। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर लोगोंं ने घरों में घट स्थापना कर देवी मां से आशीर्वाद के साथ नए साल का स्वागत किया। यों तो दुनिया में कई धर्मों और देशों के लोग अलग-अलग दिन नया साल मनाते हैं लेकिन भारतीय खगोलविदें ने वैज्ञानिक पद्धति से हिंदू नववर्ष के विक्रम संवत का निर्धारण किया। सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी भारतीय काल गणना वर्ष और माह का ही सटीक जबाव नहीं देती, वरन तिथि, ग्रह-नक्षत्र का भी सटीक आकलन करती है। यह कालगणना पूर्णत: विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि एक समय अंग्रेजी कैलेंडर (ग्रिगेरियन कैलेंडर)10 महीनों का होता था। इसके कारण हर वर्ष क्रिसमस का समय बदल जाता था। इसी तरह की गड़बडिय़ों के बाद यूरोपीय देशों ने विक्रम संवत की 12 महीनों की व्यवस्था को स्वीकार किया।

सूर्य और चंद्रमा से होती है गणना

विश्व में सर्वप्रथम भारतीय पंचांग में प्रत्येक वर्ष में 12 मास की व्यवस्था शुरू की गई। इसमें वर्ष की गणना सूर्य पर आधारित होती है और माह का निर्धारण चंद्रमा की गति से होता है। इसी अवधारणा को यूनानियों, अरबों और अंग्रेजों ने भी अपनाया।

वैज्ञानिक पद्धति से रखे महीनों के नाम

हिंदू नवसंवतसर की पद्धति में महीनों के नाम वैज्ञानिक पद्धति से रखे गए। चंद्रमा पूर्णिमा के दिन जिस नक्षत्र में होता है उसी से उस महीने का नाम रखा। जैसे चित्रा में होने पर चैत्र, विशाखा में होने पर वैशाख, श्रवण में होने पर श्रावण और फाल्गुनी में होने पर फाल्गुन। दूसरी ओर अंग्रेजी कैलेंडरों में महीनों के नाम राजा, रानी, देेवता पर रख दिए। इनका कोई वैज्ञानिक या तार्किक आधार नहीं था। इनका प्रकृति के परिवर्तन से भी कोई सरोकार नहीं था।

चार वर्ष में अधिमास की व्यवस्था

पंचांग के निर्धारण में कालगणना एकदम सटीक की गई थी। इस गणना के अनुसार चंद्रमा का बारह राशियों में भ्रमण 354 दिनों में पूरा होता है। इस आधार पर 29 दिनों में चंद्रमा एक राशि का भ्रमण कर लेता है। इसी आधार पर बारह महीनों का विभाजन किया। सूर्य और चंद्रमा की गति के अंतर से हर वर्ष दस दिनों का अंतर आता है। इसके लिए अधिमास की व्यवस्था की गई।

57 वर्ष ईसा पूर्व हुई थी शुरुआत

विक्रम संवत के शुरुआत मालवा के राजा विक्रमादित्य के समय हुई थी। राजा विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रमणकारी शकों पर विजय के उपलक्ष्य में विक्रम संवत प्रारंभ किया था। विक्रमादित्य के राज्य में वाराहमिहिर सहित कई खलोगविद थे। इन्हीं की गणना के बाद ईसा से 57 वर्ष पूर्व विक्रम संवत की शुरुआत की गई।

चैत्र में 15 दिन बाद क्यों?

फाल्गुन पूर्णिमा के बाद चैत्र कृष्ण प्रतिपदा लग जाती है। इसके 15 दिन बाद हिंदू नववर्ष क्यों मनाते है? इसके पीछे मान्यता है कि कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तिथि के15 दिनों तक रहता है। इन दिनों में चंद्रमा के घटने से आकाश में अंधेरा छाने लगता है। सनातन धर्म का आधार हमेशा अंधेरे से उजाले की तरफ बढऩे का रहा है। इसी कारण चैत्र माह में 15 दिन बाद जब शुक्ल पक्ष लगता है। चंद्रमा का आकार बढऩे से आकाश में उजाले भी बढ़ता है। इसी कारण प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष मनाया जाता है।

यह हुआ वर्ष प्रतिपदा

1. चैत्र प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया।

2. इस तिथि को सतयुग का प्रारम्भ हुआ। कालचक्र का पहला दिन।

3. भगवान राम ने बाली का वध किया।

4. महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश में उगादी पर्व इसी दिन।

5. भगवान झूलेलाल की जयंती।

6. द्वापर युग में युधिष्ठिर का राजतिलक।7. आर्य समाज की स्थापना।


बड़ी खबरें

View All

नई दिल्ली

दिल्ली न्यूज़

ट्रेंडिंग