तिवाड़ी ने यह बातें सोमवार को सदन में भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पर चर्चा में भाग लिया। इस दौरान तिवाड़ी ने कहा कि संविधान की यह 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा इसलिए है क्योंकि नया संसद भवन बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्य को पूरा किया और सांस्कृतिक भारत की प्राण प्रतिष्ठा नए भवन में कर तमिलनाडु के सेंथोल स्थापित किया। तिवाड़ी ने कहा कि चर्चा के दौरान विपक्ष एकलव्य को लेकर गुरु द्रोणाचार्य की आलोचना कर रहा है, लेकिन उन्हें नहीं पता कि जब द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अंगूठा मांगा तो गुरु के तौर पर द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अमर कर दिया। आज केंद्र सरकार ने एकलव्य के नाम पर हज़ारों स्कूलों की शुरुआत की है। विपक्ष गुरु की महिमा नहीं जानते, संविधान निर्माता डॉ अम्बेडकर को अम्बेडकर नाम देने वाले भी उनके गुरु ही थे।
तिवाड़ी ने संविधान निर्माताओं को भावांजलि देते हुए कहा कि संविधान निर्माण के समय 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए। वे सभी प्राचीन और वैदिक काल के भारत की महत्वता जानते थे, जो उस समय संविधान सभा की बहस को पढ़कर साफ़ पता चलता है। तिवाड़ी ने कहा कि भारत में लिखित संविधान की प्राचीन परम्परा रही है, ऐसा बिलकुल नहीं है कि 1947 के बाद ही भारत एक गणतांत्रिक देश बना हो, इसके कई उदाहरण संविधान सभा के निर्माण के समय की बहस पढ़ने और सुनने पर पता चलता है।
विरोध करने वालों को पता नहीं कि मनुस्मृति क्या है
तिवाड़ी ने कहा कि आज विपक्ष के लोग बार बार हाथ में मनुस्मृति की पुस्तक उठा कर विरोध करते है, उन्हें ये तक नहीं पता की आख़िर मनुस्मृति वास्तव में है क्या? तिवाड़ी ने कहा कि भारत में वैदिक काल से ही स्मृतियों के रूप में लिखित क़ानून रहा है, जो की प्रत्येक सौ साल में बदला जाता रहा है। इस हिसाब से लगभग 5000 वर्ष पुरानी मनुस्मृति सबसे पहली और याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे आख़िरी स्मृति रही। ये वैदिक काल के भारत के लिखित क़ानून की पुस्तक है और आज का संविधान जिसे डॉ अम्बेडकर ने लिखा है, यह वर्तमान की स्मृति है।