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इस दिन लुप्त हो जाएगा केदारनाथ धाम, फिर यहां होंगे बाबा भोलेनाथ के दर्शन

सनातन संस्कृति में इस पावन धाम का अत्यधिक महत्व...

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Jagrat Mahadev of universe kedarnath dham katha

Jagrat Mahadev of universe kedarnath dham katha

देश के प्रमुख धामों में से बद्रीनाथ धाम के साथ ही केदारनाथ का नाम भी जुड़ा हुआ है। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ ही एकमात्र जागृत महादेव माना जाता है।

हिमालय की चोटियों के बीच स्थित भोलेनाथ के इस पावन धाम का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है, और यह मंदिर जागृत महादेव भी कहलाता है। केदारनाथ समुद्र तल से 3,553 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पर पहुंचने का रास्ता भी काफी दुर्गम है।

केदारनाथ को जहां भगवान शंकर का आराम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं।

लेकिन क्या आपको पता है कि पुराणों में बद्रीनाथ के साथ ही केदारनाथ के भी रूठने का जिक्र मिलता है। पुराणों अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद पृथ्‍वी पर पाप का साम्राज्य होगा।

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कलियुग अपने चरम पर होगा तब लोगों की आस्था लोभ, लालच और काम पर आधारित होगी। सच्चे भक्तों की कमी हो जाएगी। ढोंगी और पाखंडी भक्तों और साधुओं का बोलबाला होगा।

ढोंगी संतजन धर्म की गलत व्याख्‍या कर समाज को दिशाहीन कर देंगे, तब इसका परिणाम यह होगा कि धरती पर मनुष्यों के पाप को धोने वाली गंगा तक स्वर्ग लौट जाएगी।

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम (Kedarnath Temple) हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण तिर्थस्थल है। उत्तराखंड के हिमालय में केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

इस प्रसिद्ध तीर्थ के बारे में कहा जाता है की यहां आने वाले हर मनुष्य को स्वर्ग के समान अनुभूति होती है। लेकिन क्या आपको पता है केदारनाथ धाम (Kedarnath Temple) से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं।

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इस मंदिर में कई रहस्य ऐसे है जिनके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। केदारेश्वर मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था।

तीन पहाड़ों और 5 नदियों का संगम...
तीन पहाड़ों के बीच केदारेश्वर धाम स्थित है। केदारेश्वर धाम के एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदार, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड का पहाड़ है।

सिर्फ यही नहीं यहां 5 नदियों का संगम भी है, मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का महासंगम है। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी के किनारे है केदारेश्वर धाम, बसा हुआ है।

लुप्त हो जाएंगे बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम...
पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार इस समूचे क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा।

केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे।

पुराणों अनुसार गंगा स्वर्ग की नदी है और इस नदी को किसी भी प्रकार से प्रदूषित करने और इसके स्वाभाविक रूप से छेड़खानी करने का परिणाम होगा संपूर्ण जंबूखंड का विनाश और गंगा का पुन: स्वर्ग में चले जाना।
ऐसे में भविष्य में गंगा नदी पुन: स्वर्ग चली जाएगी फिर गंगा किनारे बसे तीर्थस्थलों का कोई महत्व नहीं रहेगा। वे नाममात्र के तीर्थ स्थल होंगे।

पुराणों के अनुसार वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में 'भविष्यबद्री' नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। वहीं यह भी माना जाता है कि इसके बाद भगवान भोलेनाथ जोशीमठ के पास ही भविष्य केदार में भक्तों को दर्शन देंगे।

वैसे तो भविष्य केदार आज भी मौजूद है। लेकिन कहा जाता है कि उस समय केदारनाथ का मार्ग अवरुद्ध हो जाने के चलते भविष्य केदार में ही भगवान शिव का दर्शन कर आशीर्वाद पाएंगे।

यहां से जुड़ा है लुप्त होने का रहस्य...
मान्यता अनुसार जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। ऐसे में जिस दिन यह टूट कर गिर जाएगा उसी दिन भयानक प्रलय के साथ नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, जिससे धाम जाने का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा।

पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।

400 सालों तक बर्फ में दबा रहा केदारनाथ का मंदिर...
केदारनाथ का मंदिर 400 सालों तक बर्फ में दबा रहा था और जब बर्फ से बाहर निकला तो पूर्णत: सुरक्षित था। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलॉजिकल वैज्ञानिक विजय जोशी के अनुसार 13वीं से 17वीं शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था , जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था।

उसमें यह मंदिर क्षेत्र भी था। वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इसके निशान देखे जा सकते हैं।

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पांडवों ने बनवाया था मंदिर
मंदिर सबसे पहले पांडवों द्वार बनवाया गया था, लेकिन किन्हीं कारणों से यह मंदिर लुप्त हो गया था। इसके बाद मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए आदिशंकराचार्य ने करवाया था।

कहा जाता है मंदिर के पीछे ही आदिशंकराचार्य की समाधि बनाई गई है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। पहले 10वीं सदी में मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर 13वीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।

कटवां पत्थर और शिलाखंडों से बना है मंदिर
केदारेश्वर मंदिर भूरे रंग के विशाल कटवां पत्थर और मजबूत शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। मंदिर का चबूतरा 6 फुट ऊंचा है और इस पर 85 फुट ऊंचे, 187 फुट लंबे और 80 फुट चौड़े खंभे हैं। मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी हैं।

आश्चर्य की बात तो यह है की इतने भारी पत्थरों से मंदिर का रुप कैसे दिया गया होगा। मंदिर की छत खंभों पर रखी गई है, इसमें भी आश्चर्य है की कैसे इतने विशालकाय मंदिर की छत खंभों पर रखी गई है। पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

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केदारनाथ धाम : जागृत महादेव...
केदारनाथ के संबंध में माना जाता है कि इस मंदिर में शिव आज भी जागृत अवस्था में हैं और समय समय पर भक्तों की मदद के लिए अपने चमत्कार दिखाने के साथ ही भक्तों को दर्शन भी देते हैं।

केदारनाथ को ‘जागृत महादेव’ कहे जाने के पीछे एक प्रसंग प्रचलित है। प्रसंग के मुताबिक,बहुत समय पहले एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा पर निकला। रास्ते में जो भी मिलता उससे केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता और मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते महिनों बाद वह केदारनाथ धाम तक पहुंचा।

लेकिन भक्त जब वहां पहुंचा तो उस समय केदारनाथ के द्वार 6 महीने के लिए बंद हो रहे थे और परंपरा के मुताबिक दोबारा ये द्वार 6 महीने के बाद ही खुलते। भक्त ने पंडित जी से इस बात का अनुरोध किया, लेकिन पंडित जी ने परंपरा का पालन करते हुए द्वार को बंद कर दिए, क्योंकि वहां का तो नियम है एक बार द्वार बंद तो बंद।

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पंडित जी ने भक्त से कहा कि वह अपने घर चला जाए और दोबारा 6 महीने के बाद आए। लेकिन भक्त ने उनकी बात नहीं मानी और वहीं पर खड़ा होकर शिव का कृपा पाने की उम्मीद करने लगा। रात में समय भूख-प्यास से उसका बुरा हाल हो गया। इसी दौरान उसने रात के अंधेरे में एक सन्यासी बाबा के आने की आहट सुनी।

बाबा के आने व पूछने पर भक्त ने उनसे समस्त हाल कह सुनाया। बाबा जी को उस पर दया आ गई। वह बोले, “बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरूर करोगे।'' इसके कुछ समय बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब गहरी नींद आ गई।

सुबह सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आंख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा किन्तु वह कहीं नहीं थे। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा? इस बीच कोई नहीं आएगा, यहां लेकिन आप तो सुबह ही आ गये।

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गौर से देखने पर पंडित जी ने उस भक्त को पहचान लिया और पुछा, तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए!

उस आदमी ने आश्चर्य से कहा नहीं, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उन्होंने कहा लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूं।

तुम 6 महीने तक यहां पर जिन्दा कैसे रह सकते हो? इस के बाद व्यक्ति ने पूरी बात बताई और सन्यासी बाबा के बारे में भी बताया, जिसे सुनकर पंडित और सारी मंडली हैरान रह गई।

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