स्वदेशी उत्पादन का समर्थन: खादी पूरी तरह से स्वदेशी है और इसे स्थानीय कारीगरों द्वारा हाथ से बुना जाता है। प्राकृतिक कपड़ा है, जिसे तैयार करने में किसी भी प्रकार के हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित और टिकाऊ है। गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं, जिससे यह सभी मौसमों में पहनने के लिए उपयुक्त है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान खादी को महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के रूप में अपनाया था। खादी पहनना एक तरह से उन संघर्षशील दिनों को याद करना और आजादी के लिए हमारे पूर्वजों के बलिदानों को सम्मानित करना है।
खादी के कपड़ों को बढ़ावा देने के लिए एसडीएम प्रदीप मिश्रा ने कहा कि इस बार वे स्वयं खादी के वस्त्र पहनेंगे और अपने पूरे स्टॉफ को भी खादी पहनने के लिए प्रेरित करेंगे। यह हमारी आजादी की लड़ाई का प्रतीक है। इसे पहनकर हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देते हैं और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम और बढ़ाते हैं। इससे भारतीय कारीगरों और स्थानीय उद्योगों को समर्थन मिलता है, बल्कि यह पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है।
खादी देश की शान है, और हम इस शान को बनाए रखने के लिए स्वतंत्रता दिवस पर खादी के कपड़े जरूर पहनेंगे। खादी न केवल हमारे स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे राष्ट्रप्रेम और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है। यह बात नगर पुलिस अधीक्षक ख्याति मिश्रा ने कही है। उन्होंने कहा कि पत्रिका द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रप्रेम के लिए आवाहन है। खादी पहनना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि यह हमारे देश के प्रति हमारे समर्पण और सम्मान का प्रतीक है। खादी का उपयोग समाज और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर खादी को प्रोत्साहित करने के लिए नायब तहसीलदार आकाशदीप नामदेव ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने कहा पत्रिका अखबार की पहल सराहनीय है। हम इस स्वतंत्रता दिवस पर खादी के कपड़े अवश्य पहनेंगे। खादी हमारे देश की पहचान है और इसे पहनने से न केवल हम अपने स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को सम्मानित करते हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भी योगदान देते हैं। खादी देश की विरासत को जीवित रखना आवश्यक है। न केवल फैशन स्टेटमेंट है, बल्कि यह हमारे समाज, कारीगरों और हमारे पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है।
जीआरपी टीआई अरुणा वाहने ने कहा कि खादी के कपड़े स्वदेशी होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल और आरामदायक होते हैं, जो किसी भी मौसम में पहनने के लिए उपयुक्त हैं। इस कदम से न केवल प्रशासनिक कर्मचारियों में, बल्कि आम जनता में भी खादी के प्रति जागरुकता आएगी। अगर हर व्यक्ति खादी को अपनी दिनचर्या में शामिल करता है, तो यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में एक महत्वपूर्ण योगदान साबित हो सकता है। खादी हमारे देश की आन-बान व शान का भी प्रतीक है।